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Showing posts from December, 2020

वैलेंटाइन डे ही क्यों?हर दिन मेरा प्रेम पर्व है।

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 खास दिवस के लिए कभी मोहताज नहीं,  करूं प्यार की बात  छुपा कोई राज नहीं।  है अनोखा प्यार का रूप स्वरूप,  चिर निराकार, ब्रह्म अनूप  अभिव्यक्ति का नहीं, अनुभूति का नाम है प्यार , अव्यक्त ईश्वरीय साक्षात्कार का एहसास है प्यार । आवश्यकता ही नहीं, जिसे किसी उद्दीपन की , एकांत प्रेमी की योग साधना है प्यार।  त्रिकुटी में नहीं लगाना  पड़ता है ध्यान,  जीवन की हर क्रिया में है विद्यमान।  योग हो, वियोग में हो  ,या हो संयोग , जीवन की औषधि, जीवन का रोग , मुक्ति में भुक्ति , त्याग में प्राप्ति, का नाम है ,प्यार।  हार में जीत का, जीत में हार का, नाम है प्यार । ढाई अक्षर सरल सा, नीलकंठ के गरल सा,  विष में अमृत सा ,ईश्वर का उपहार है, प्यार । आंसुओं की प्रलय सा, सांसो में विलय सा,  वाणी की वीणा सा, ध्रुपद  और धमार   है ,प्यार।  प्राणों के गंधमागध में प्रसरित ,त्रिविध बयार है, प्यार । हरि की अद्भुत लीला  सा ,अपरंपार है ,प्यार । मैं प्रेमी  हूं ,मुझे गर्व है ,हर दिन मेरा प्रेम पर्व है। पश्चिम के पुजारी तो मा...

उनका और हमारा शौक़

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      भावनाओं से खेलने का , वो शौक़ पै शौक़ फरमाते हैं,  हम आहत भावनाओं से ,दर्द में भी मुस्कुराते हैं। और वे शौक़ पै शौक़ फरमाते हैं।  नजरें तो  उन्हीं की  नीची होनी थी, उनकी करतूतों से,  खेलने का शौक है ना,उन को सब के  जीवन से।  उनकी करनी पर ,ना जाने क्यों हम ही सिर झुकाते हैं। और वे, शौक़ पै शौक़ फरमाते हैं। दर्द के गहरे कुएं से निकली, हमारी आंहों पे,  खिंच जाती है मुस्कान ,उनके होठों पे,  और हम उनकी ही, मुस्कान के लिए ही कराहते हैं ,। और वह, शौक़ पे शौक़  फरमाते हैं,।  शौक़ हमको भी है, उनके खिलखिलाने का,  तभी तो हर गम को, अपनेपन से अपनाते हैं।  और वह, शौक़ पे शौक़  फरमाते हैं । चाहत में आजमाते हैं, सभी वफा को,  और हम, बेवफाई को ही, आजमाते हैं , और वह ,शौक़ पे शौक़ फरमाते हैं। कृति- सरला भारद्वाज

डायरी के पन्ने

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     डायरी के पन्ने पलटते ही,  अविस्मृत अंक पर नजर पड़ते ही  पढ़ तुम्हारी कूट भाषा , मन में जग जाती थी आशा । अक्षरों को जोड़कर मन इतराता  था , बिना पंख के उड़ता था इठलाया था।  अब न जाने इस नजर को क्या हुआ ? क्यों छाया रहे हर तरफ धुंधला धुआं?  डायरी के पन्ने पलटते ही ,  बिखरे वर्णों को देखकर,  बीती बातों को सोच कर , क्यों फैल जाती हैं पुतलियां?  ना डायरी बदली ना पन्ने ना मैं,  और  ना मेरा मन , फिर भी अर्थ कैसे बदल गए ,इन शब्दों के?  बदल कैसे गया हमारा नजरिया ? जब कि तुम अब  भी मेरे  हो सांवरिया।  कृति -सरला भारद्वाज 29-12-20  

तुम मेरे -------

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      नहीं तुम मेरे प्रीतम नहीं हो सकते।  भावनाओं से शून्य तुम उर के निकट नहीं हो सकते।  नहीं तुम मेरे प्रियतम नहीं हो सकते ! मेरी कल्पनाओं का कुमार था इस तरह' फूलों में शूलों में,  सफलताओं और  भूलों में , कभी भी न घबराता था ,और ना ही  इतराता था। बस अलमस्त योगी की तरह, सबको राह दिखाता था।  निष्कपट मुस्काता था, आगे बढ़ते जाता था।  धोखा देना उसकी फितरत न थी । कली कली पर मडराना उसकी आदत न थी।  शौक उसका था  निराला,प्यारा सा वह,भरोसे वाला ।  एक ही कुमुदिनी में बंधकर ,निज सर्वस्व समर्पित कर । किसी को अपना बनाने की, भावनाओं को समझने की,  इंसान को परखने की, तुम में तो वह क्षमता कहां ? घर उजाड़ कर दूसरों का, अपना बसाते हो जहां । रंग बदलने की आदत, जो तुम नहीं खो सकते।  फिर भला कैसे तुम मेरे प्रीतम  कैसे हो सकते ? नहीं तुम मेरे प्रियतम नहीं हो सकते !  कृति -सरला भारद्वाज

क्रिया कलाप ब्लाग

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  29//12/20  कक्षा दशम  1. कक्षा क्रिया कलाप- प्रथम  व्याकरण -वाक्य-  छात्र नाम -कार्तिक 1. छात्र नाम- आकाश।  2.2.Kartik  goyal  २/१०/२१ 8,9,10,के सभी छात्रों को सूचित किया जाता है कि इस माह का विशेष आकर्षण हिंदी   प्रतिदर्श (माडल ) प्रतियोगिता है । अतः निर्धारित तिथि से पूर्व ही माडल बनाकर अभिव्यक्त करें (प्रिजैंटैशन दे) माडल निर्माण का फाइनल टच हिंदी कक्षा में ही करें ताकि मैं आपकी वीडियो बना सकूं। हर विषय विंदु माडल ग्रुप में बनाना है। अपने अपने ग्रुप बनाने‌ हेतु विषयाचार्य जी से सहयोग लें। ये वीडियो माडल निर्माण और प्रिजैंटैशन दोनों की होंगी जो यू ट्यूब और एफ बी पर आप जीवन भर देख सकेंगे। अतः जोरदार तैयारी करें। कक्षाओं के माडल विषय👇 8- वर्णमाला। शब्द विचार। समास। वचन, लिंग, पुरुष,निपात। भाषा लिपि, व्याकरण। 9- वाक्य भेद अर्थ के आधार पर। समास अलंकार। संवाद विज्ञापन उपसर्ग प्रत्यय 10-  रस  वाक्य रचना के आधार पर वाच्य पद परिचय साभार 🙏 हिंदी विभाग। क्रिया कलाप सह संयोजिका सरला भारद्वाज

दिल की पतंग उड़ने दो ना।

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     दिल की पतंग डोर तेरे हाथों,ढीलीकर उड़ने दो ना। जादूई हाथों से छूकर, रंगीं सपने बुनने दो‌  ना।  सपनों ही सपनों में उड़कर, कुछ अठखेली करने दो ना।  कर स्वीकार हृदय को मेरे ,मर कर भी जीने दो ना। मन में घुटतीं कुछ बातों को ,ओठों पर आने दो ना। मदमाते प्याले ओठों के, अब थोड़ा पीने दो ना। जख्म छिपा रखें जो हमने ,उनको भी सिलने दो ना। सुनसां पगडंडी का रस्ता, उपवन से जुड़ने दो ना।  उपवन की कोमल कलियों पर ओस विंदु पड़ने दो ना।  कुम्हलाई कोपलों को फिर से , वर्षा कर खिलने दो ना । रोम रोम पर गुंजित होकर, रस बसंत घुलने दो ना।  कृति -सरला भारद्वाज ४-५-१२  

ये 👀 आंखें

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    चिर  विरहन  ये  आंखें। अटपटी ये आंखें।  ये आंखें । थी ये कितनी चंचल ,अल्हड़, मस्तानी। थोड़ी इनमें शैतानी थी, थोड़ी इनमें नादानी। थोड़ी सी हठीली, और थोड़ी सी शर्मीली।  थोड़ी सी भोली और थोड़ी सी गर्वीली। पर इन्हे अब क्या हुआ स्तब्ध हैं? क्या किसी के जुर्म पर ये क्रुद्ध हैं?  नहीं ये लालिमा क्रोध की नहीं ,कई रातों से यह सोई नहीं।  इकटक इक छलिया का पंथ निहारतीं ।  पथरीली ये आंखें-------------  ना जाने कब इस गलियारे से,प्रियतम गुजरेगा दबे पांव, शायद मुड़ कर वो देखेगा, ना झलक सही,निरखेंगी छांव। बस इसी आस में ये विरहन, पलकों को नहीं झपकतीं हैं।   अपलक ये आंखें------  जल गई सब हस्ती, दूर हो गई मस्ती,  खत्म हुई नादानी ,दूर हुई शैतानी।  बढ़ गई है हठ। टूटे शीशे के टुकड़ों में जुल्मी की छवि परखने को,  भ्रमित भी हैं, हर टुकड़े में अलग छवि है । इन छवियों में ,उसका अपना कौन है ? किससे पूछें ?टूटा शीशा मौन है ? खुद से अनजान, बाढ़ से परेशान।   सूजीं सीं ,ये  आंखें ---------- चिर विरही  ये आंखें।। कृति...

छा गया अंधेरा

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        डूब गया सूरज छा गया अंधेरा, तमन्नाओं के मरघटों में गमों का बसेरा। गहन काली लम्बी रात ,दूर है सवेरा।  डू ब गया सूरज छा गया अंधेरा, तमन्नाओं के मरघटों में गमों का बसेरा। गमों से जूझने को, आशादीप जलाये, सन्नाटे दूर करने को ,नगमे गुनगुनाये। आह !दीप की परिधियों में भी आंधियों का डेरा। डूब गया सूरज छा गया अंधेरा, तमन्नाओं के मरघटों में गमों का बसेरा। आंधियों से ,दीप भभका, आग फैली चारों ओर, स्वाह सब कुछ कर डाला, बचा न जीवन का कोई छोर,  शेष रह गया याद में,राख- ख़ाक ढेरा।। डूब गया सूरज छा गया अंधेरा, तमन्नाओं के मरघटों में गमों का बसेरा।

बहुत कठिन है

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   काजल से कालिमा,  खून से लालिमां ,दूर करना जितना कठिन है । उतना ही कठिन है तुम्हें जिंदगी से दूर करना । सागर से लहरें ,पानी से तरलता ,दूर करना जितना कठिन है । उतना ही कठिन है दिल से तेरे एहसासों को दूर करना । सांसो से जिंदगी ,एहसासों से बंदगी ,दूर करना जितना कठिन है ।जहन  से तेरे ख्याल दूर करना उतना कठिन है । गमों से उदासी ,खुशियों से चहचहाहट, दूर करना जितना कठिन है।आंखों से तेरा चेहरा हटाना उतना कठिन है।  आसमा से नीलिमा पेड़ों से हरीतिमा हटाना, जितना कठिन है । भावों और विचारों से हटाना तुझे इतना कठिन है। कृति- (सरला भारद्वाज) 15-10-16

कितना अरसा गुजर गया

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                           १*नवकिसलय से अधर तुम्हारे,स्वर लहरी पर थिरके थे।  कुंम्हलित मन के फूल हमारे,पा फुहार ज्यों महके थे।  छेड़ी तान सुरों की जब, तब,नासापुट वह फूले थे , याद हमें है, ठीक तरह ,तब मस्ती में हम झूले थे ।  उसअनुपम छवि के दर्शन को पागल मन फिर तरस गया।  देखे बिना तुम्हें मनमोहन, कितना अरसा गुजर गया।   २*घुंघराली वो लटें तुम्हारी, मुख पर जब लहराती  थी,  नील गगन में ज्यों शशि पर, घनघोर घटा घहराती थी।  तब तुम से घनश्याम और  मेरा मन था बस हरी धरा।   अब है यह घनघोर घटा, पर हृदय  हमारा तृषित धरा । बोलो तो तुम कब बरसोगे, सावन आकर  फिर बरस गया।  देखे बिना तुम्हें मनमोहन कितना अरसा गुजर गया।  (सरला भारद्वाज *1-2-18)

नमो नमो की हवा चली

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   चली चली फिर हवा चली । नमो-नमो की हवा चली । घर में घुसि आतंकी मारे,  चर्चा विश्व में गली गली  चली चली फिर हवा चली । नमो नमो की हवा चली।  कछु पूछे कितने मारे , कछु बोलें पेड़ उखारे।  खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे,  गर्म दूध से जली जली।  चली चली फिर हवा चली।  नमो नमो की हवा चली।  भारत के शेर दहाड़े।  दुश्मन का सीना फाड़े । कछु के सीना पर सांप लोट रहे,  एयर स्ट्राइक हुइ भली भली।।  चली चली फिर हवा चली । नमो नमो की हवा चली।  राष्ट्रहित में बटन दबाओ,  दुश्मन को धूल चटाओ।  षड्यंत्री जाएं सलाखों के पीछे ।  कमल खिले जो गली गली।। (सरला भारद्वाज ) मौलिक रचना 

जय हो भारत के सपूत

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    ""भारत के शूरवीर , अभिनंदन "" अपनी कायराना हरकत को , कर ले याद तू  पाक , मरा हुआ  जमीर है तेरा , करतूतें   नापाक। याद दिलाना चाहूं तुझको,अपने वीरों गाथा, जिनके बल पर ऊंचा होता ,भारत मां का माथा। घाव कभी भर सकते नहीं। वीर कभी मर सकते नहीं। हां शहादत पै भारत मां पलकें भिगोती है, हर क्षण  भारत की मिट्टी  में वीरों को  ही ,बोती है। गंगा यमुना की धरती का हर कण- कण है चंदन। जिसकी मांटी में जन्मा है, वर्धमान अभिनंदन।   वीर प्रसूता भारत मां के रण बांके   अभिनंदन, सकल विश्व में चर्चित परचित ,तेरे शौर्य को वंदन। घुसकर दुश्मन की लंका में, तूने बिगुल बजाया, आतंकवाद के अब्बाओं का, फिर सीना थर्राया। बदली गिरगिट चाल भेड़िया ने, तू ना घबराया, 56 इंची सीना पर केसरिया ध्वज गर्वाया। गाये गीत तिरंगा तेरे ,गंगा जमुन जलधारा, वर्तमान का सूरज तू, शोभा की आंखों का तारा। महक उठी भारत की मांटी, जिसका कण कण चंदन , वीर शिवा से ,परम वीर को, शत शत है अभिनंदन।  सरला भारद्वाज।

अवध में आइ गये रघुवीर

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     अवध में आइ गए रघुवीर । जाइ के कानन, जीत दशानन , हरि  लयी संतन पीर ।। अवध में आइ गए रघुवीर।। बैठ  विमान ,पुष्पक पर प्रभु जी,  संग अनुज रणधीर । मांत जानकी वाम विराजत,  उतरे सरयू तीर ।। अवध में आइ   गए रघुवीर ।। दुल्हन सी  अब सजी अयोध्या,  भागी मन की पीर।  घर-घर दीपक की माला ज्यों,  जगमग -जगमग हीर।।  अवध में आइ गए रघुवीर ।। आज अमावस बनी पूर्णिमा,  पुलकित हुए शरीर,  सरला हरी दर्शन की प्यासी।  पुनि पुनि होय अधीर।। सरला भारद्वाज  11- 8-20

प्रेम

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   प्रेम, प्यार ,इश्क ,और मुहब्बत,संयोग, वियोग,बिछुड़न और मिलन। कुछ भी नहीं ,वास्तव में अपनी ही कल्पनाओं की दुनिया का शाब्दिक भ्रम । वास्तविकता ये है कि केवल और केवल ,अलग अलग रूप में खुद को ही चाहता है इंसान।। आपकी आत्मा में बसा संगीत ,मोहन को ढूंढता है, और ढूंढती है काव्य कल्पना मैथिलीशरण या सूर को।। ज्ञान की पिपासा ढूढती है चाणक्य को। संस्कारित सौंदर्य बोध तलाशता है कभी राम को कभी ज्ञानी वशिष्ठ को। इन सब का मिला जुला आवरण ओढे देख ,किसी नट को प्रेम की मंज़िल मान लेता है मन। जबकि प्रेम तो खुद से ही करता है मन।। परिकल्पनाओं से परे ,आवरण के पीछे दिख जाता  जब है वात्स्यायन, बिखर जाता है संगीत,टूट जाता है मन का सितार।  हट जाता है भ्रम का पर्दा, पीड़ा जरुर होती है,पर, खुद को ही चाहता रहा वह हमेशा ,जान जाता हैै इंसान।।  सरला भारद्वाज  21-12 20 रात्रि 1:20

कन्यादान

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                 अभ्यास प्रश्न                           

बच्चे काम पर जा रहे हैं।

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                       5  समाज के लोगों की उदासीनता का क्या कारण है ?