उनका और हमारा शौक़

     


भावनाओं से खेलने का , वो शौक़ पै शौक़ फरमाते हैं, 

हम आहत भावनाओं से ,दर्द में भी मुस्कुराते हैं।

और वे शौक़ पै शौक़ फरमाते हैं।


 नजरें तो  उन्हीं की  नीची होनी थी, उनकी करतूतों से,

 खेलने का शौक है ना,उन को सब के  जीवन से।

 उनकी करनी पर ,ना जाने क्यों हम ही सिर झुकाते हैं।

और वे, शौक़ पै शौक़ फरमाते हैं।


दर्द के गहरे कुएं से निकली, हमारी आंहों पे,

 खिंच जाती है मुस्कान ,उनके होठों पे,

 और हम उनकी ही, मुस्कान के लिए ही कराहते हैं ,।

और वह, शौक़ पे शौक़  फरमाते हैं,।


 शौक़ हमको भी है, उनके खिलखिलाने का,

 तभी तो हर गम को, अपनेपन से अपनाते हैं।

 और वह, शौक़ पे शौक़  फरमाते हैं ।


चाहत में आजमाते हैं, सभी वफा को,

 और हम, बेवफाई को ही, आजमाते हैं ,

और वह ,शौक़ पे शौक़ फरमाते हैं।

कृति- सरला भारद्वाज

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