तुम मेरे -------

     


नहीं तुम मेरे प्रीतम नहीं हो सकते।

 भावनाओं से शून्य तुम उर के निकट नहीं हो सकते।

 नहीं तुम मेरे प्रियतम नहीं हो सकते !

मेरी कल्पनाओं का कुमार था इस तरह' फूलों में शूलों में,

 सफलताओं और  भूलों में ,

कभी भी न घबराता था ,और ना ही  इतराता था।

बस अलमस्त योगी की तरह, सबको राह दिखाता था।

 निष्कपट मुस्काता था, आगे बढ़ते जाता था।

 धोखा देना उसकी फितरत न थी ।

कली कली पर मडराना उसकी आदत न थी।

 शौक उसका था  निराला,प्यारा सा वह,भरोसे वाला ।

 एक ही कुमुदिनी में बंधकर ,निज सर्वस्व समर्पित कर ।

किसी को अपना बनाने की, भावनाओं को समझने की,

 इंसान को परखने की, तुम में तो वह क्षमता कहां ?

घर उजाड़ कर दूसरों का, अपना बसाते हो जहां ।

रंग बदलने की आदत, जो तुम नहीं खो सकते।

 फिर भला कैसे तुम मेरे प्रीतम  कैसे हो सकते ?

नहीं तुम मेरे प्रियतम नहीं हो सकते !

 कृति -सरला भारद्वाज



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