ये 👀 आंखें

  

 चिर  विरहन  ये  आंखें।

अटपटी ये आंखें।

 ये आंखें ।

थी ये कितनी चंचल ,अल्हड़, मस्तानी।

थोड़ी इनमें शैतानी थी, थोड़ी इनमें नादानी।

थोड़ी सी हठीली, और थोड़ी सी शर्मीली।

 थोड़ी सी भोली और थोड़ी सी गर्वीली।

पर इन्हे अब क्या हुआ स्तब्ध हैं?

क्या किसी के जुर्म पर ये क्रुद्ध हैं? 

नहीं ये लालिमा क्रोध की नहीं ,कई रातों से यह सोई नहीं।

 इकटक इक छलिया का पंथ निहारतीं ।

 पथरीली ये आंखें------------- 

ना जाने कब इस गलियारे से,प्रियतम गुजरेगा दबे पांव,

शायद मुड़ कर वो देखेगा, ना झलक सही,निरखेंगी छांव।

बस इसी आस में ये विरहन, पलकों को नहीं झपकतीं हैं।

  अपलक ये आंखें------ 

जल गई सब हस्ती, दूर हो गई मस्ती, 

खत्म हुई नादानी ,दूर हुई शैतानी।

 बढ़ गई है हठ।

टूटे शीशे के टुकड़ों में जुल्मी की छवि परखने को,

 भ्रमित भी हैं, हर टुकड़े में अलग छवि है ।

इन छवियों में ,उसका अपना कौन है ?

किससे पूछें ?टूटा शीशा मौन है ?

खुद से अनजान, बाढ़ से परेशान।

  सूजीं सीं ,ये  आंखें ----------

चिर विरही  ये आंखें।।


कृति__सरला भारद्वाज













Comments

Popular posts from this blog

कैदी और कोकिला

class 7th 8th and 9thसमास अर्थ परिभाषा प्रकार और उदाहरण ,पहचान