दिल की पतंग उड़ने दो ना।
दिल की पतंग डोर तेरे हाथों,ढीलीकर उड़ने दो ना।
जादूई हाथों से छूकर, रंगीं सपने बुनने दो ना।
सपनों ही सपनों में उड़कर, कुछ अठखेली करने दो ना।
कर स्वीकार हृदय को मेरे ,मर कर भी जीने दो ना।
मन में घुटतीं कुछ बातों को ,ओठों पर आने दो ना।
मदमाते प्याले ओठों के, अब थोड़ा पीने दो ना।
जख्म छिपा रखें जो हमने ,उनको भी सिलने दो ना।
सुनसां पगडंडी का रस्ता, उपवन से जुड़ने दो ना।
उपवन की कोमल कलियों पर ओस विंदु पड़ने दो ना।
कुम्हलाई कोपलों को फिर से , वर्षा कर खिलने दो ना ।
रोम रोम पर गुंजित होकर, रस बसंत घुलने दो ना।
कृति -सरला भारद्वाज
४-५-१२
Comments
Post a Comment