क्या आप जानते हैं? (द्वितीय अंक)
ये श्लोक तो आप सभी ने पढ़़ा होगा,पर क्या इसका वास्तविक और गंभीर अर्थ आपको ज्ञात है ? इसका अर्थ पढ़कर चौंक जाएंगे आप..!" " त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ! त्वमेव विद्या, द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देवदेव !!" सरल-सा अर्थ है-- 'हे भगवान ! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो, तुम ही मेरे देवता हो !' बचपन से प्रायः यह प्रार्थना हम सबने पढ़ी है। मैंने 'इस रटे हुए श्लोक ' का अर्थ कम से कम 50 मित्रों और अनगिनग छात्रों से पूछा होगा, 'द्रविणं' का क्या अर्थ है..? संयोग देखिए एक भी न बता पाया, अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी। एक ही शब्द “द्रविणं” पर सोच में पड़ गए। द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति..! द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता, आखिर 'लक्ष्मी' भी कहीं टिकती है क्या..? कितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका 'वरीयता क्रम' भी..! ज़रा देखिए ...