Posts

Showing posts from January, 2021

क्या आप जानते हैं? (द्वितीय अंक)

Image
  ये श्लोक  तो आप सभी ने पढ़़ा होगा,पर क्या इसका वास्तविक और गंभीर अर्थ आपको  ज्ञात है ?  इसका अर्थ पढ़कर चौंक जाएंगे आप..!" " त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ! त्वमेव विद्या, द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देवदेव !!" सरल-सा अर्थ है-- 'हे भगवान ! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो, तुम ही मेरे देवता हो !' बचपन से प्रायः यह प्रार्थना हम सबने पढ़ी है। मैंने 'इस रटे हुए श्लोक '  का अर्थ कम से कम 50 मित्रों  और अनगिनग छात्रों से पूछा होगा, 'द्रविणं' का क्या अर्थ है..? संयोग देखिए एक भी न बता पाया, अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी। एक ही शब्द “द्रविणं” पर  सोच में पड़ गए। द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति..! द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता, आखिर 'लक्ष्मी' भी कहीं टिकती है क्या..? कितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका 'वरीयता क्रम' भी..! ज़रा देखिए ...

पूर्वानुमति परीक्षा कक्षा 7 ,हिन्दी

                                  पूर्णांक.80                 पूर्वानुमानित परीक्षा हिंदी विषय प्रश्न पत्र                          कक्षा सप्तम् विद्यार्थी ध्यान दें इस प्रश्न पत्र में दिए गए निर्देशों के अनुसार उत्तर लिखें । लेख की स्पष्टता अनिवार्य है। जो गद्यांश पद्यांश आपको धुंधले या ब्लर दिखाई दे रहे हैं,तो उन्हें एक बार टिप करेंगे, तो वह स्पष्ट दिखाई देने लगेंगे। अपठित गद्यांश.  1.   निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए। (2+1+2)   किसी देश की समाज की उन्नति का आधार वहां के नागरिकों की सच्चरित्रता, परिश्रमशीलता तथा नैतिक मूल्य होते हैं।  परंतु बड़े दुख का और सोचनीय विषय है कि हमारे भारत मैं और स्वार्थी लोगों की संख्या बढ़ती चली जा रही है।  स्वार्थ लिप्सा ही भ्रष्टाचार की जननी है ,और भौतिक ऐश्वर्य की लालसा ही इसका जनक है।  कि...

मुबारक हो सब को होली का त्यौहार

Image
    गुजिया की बहार लिए, रंगों की फुहार लिए, और अपनो का प्यार लिए  गिले शिकवे भूलकर,खोलो दिल के द्वार। मुबारक हो सब को होली का त्यौहार। १.रसिकों की भीड़ में, गलियां हुई तंग, सांवरे की नगरी मे घुटने लगी भंग, तन भिगोय मन भिगोय सावरें के रंग, दूर हुआ मन मुटाव प्यार अपरम्पार। मुबारक हो सब को होली का त्यौहार। २.ढप बजाते झूमते गायें चलो धमार,  हंसगुल्लों का ले हुर्राटा पिचकारी की मार मुबारक हो सब को होली का त्यौहार। ३..होली के रंग में ,चढती हुई भंग में, भूल नहीं जाना। भारत की रंगत को और भी बढाना, फूले फले अपना देश,छाये ऐसी बहार । मुबारक हो सब को होली का त्यौहार। सरला भारद्वाज 6- 2-21

तुम नहीं आये

Image
   फूल गयी सरसों,बीत गयी बरसों, पर तुम नहीं आये। १..हर पल दिन रैन, सुनने को तरसू बैन, तरस गये नैन, मन को न आवै चैन, गोकुल की बस्ती में, फागुन की मस्ती में, काजलमय नयन नीर,निर्झर बरसाये। पर तुम नहीं आये। २..कलियों के हृदय  खिले, प्रियतम मधुकर जो मिले, कोयल का कण्ठ छेड़े,रस बसंत तान, रसवंती कलियां गायें, राग रति गान, स्मृति की डोरियां ,खींचतीं हैं प्रान। आ भी जाओ निष्ठुर, बैठी पलकें बिछाए। तुम क्यों नहीं आये। सरला भारद्वाज ।(पथिक) १५-२-१५

मास फागुन आ गया

Image
   ढप बजाता मास फागुन आ गया है। प्रेमियों के मुदित मन को भा गया है। रंग की छिटकन की सुधि से रसिक मन इठलाये हैं। आम्र तरु के झुरमुटों में,पिक के दल इतराये हैं। संयोगी स्वर गायें फाग, बिरहन के मन सुलगी आग। विश्वास के सख्त नाखून से,  खुरच कर जो घट पटल पै लिख दिया, अवधि अधार कालिख ने उसको ,और गहरा कर दिया।  दरक चुका घट ,झरने लगी है लौन, मुंडेरी पर बैठा कागा रहता मौन। आज फिर मन भर आया,हाय प्रवासी नहीं आया।  नयन की गंगा में घुलकर,बहचला विश्वास, बह चली है आस ,शेष हैं निश्वास। कैसा फागुन मास?  सरला भारद्वाज (पथिक) २२-३-१४

नैनों की क्या बात कहूं

Image
  निज नैनोंं की  क्या बात कहूं? तरसते हैं, बरसते हैं,देख तुझको हरषते  हैं, हिय में हिलोरें लेती पीर, ले आते भर -भर के नीर, पर तुम्हारे नयन हैं अद्भुत निराले, चित चुराते ,मन को भाते, मधु के प्याले। अटकते हैं, मटकते हैं, अपना दामन झटकते हैं। तोड़ते,स्वजनों की धीर, छेड़ती जब मुरलिया,मीठे स्वरों के तीर। सरला भारद्वाज (पथिक)

जौर्ज पंचम की नाक

Image
  

कैसे बतायें?

Image
सवाल ये नहीं कि वो किसे चाहता है, बात ये है कि दिल उसे चाहता है। करना चाहता है मन उससे अनगिनत बातें, पर उसके रुख को देख मन रुक और ठिठक जाताहै। उलझा ही रहना चाहता है मन उसी में, एक अजीब सी उलझन में मन उलझ जाता है। महसूस करना चाहता है मन उसकी बाहों का दबाब, पर दबा -दबा राज ही दबाब बन जाता है। समा जाना चाहता है तन मन उसमें ही, अनकही बात को वो समझ कहां पाता है।  बात समझाने की होती तो समझाते साहिब  समझदार भी नासमझ बन जाता है। पूछता है वो मेरी नफरतों का हिसाब,मुझसे, वो ही मैं हूं , मैं ही वो है,वो समझ नहीं पाता है। करूं मैं शिकवा जो , रब से उसकी जफ़ओं का, तो ये मेरी ही वफा की ही तौहीन  होगी। होता  जुदा वो मेरी सासों से  , तो बताते साहिब, कैसे बतायें? हर धड़कन में वही तो धड़क धडक जाता है। सरला भारद्वाज (पथिक) १९-१-२१

विचार करे और योगदान में पीछे न रहें

Image
 

भाग का भाग

Image
    दोष उसका भी नहीं है ,दोष मेरा भी नहीं, वक्त का ही दोष था,भाग्य का ही दोष है। दो अलग-अलग वृत्ति और संस्कार मिल गये थे राह में। चाहा तो उसने भी था,चाहते तो हम  भी हैं,  फासले हैं सोच के। एक अनहद नाद में मन मस्त था,और वह विद्ध्वंश में ही व्यस्त था। यत्न से वीणा बनी  थी,जिसके टूटे तार हैं। बेसुरे सुर हो गये सब, बिखरे बिखरे राग हैं। चाह मेरी सुकृति थी ,उसने समझी विकृति। हम हैं प्रेमी साधना के, उसने समझी वासना। साधना से आ मिटाकर , साधना साधन बनाई। इतना भी होता अगर तो कुछ नहीं, नेह के कंकरीले पथ में,छावं की तो आस थी, जानकर और समझकर भी, मृगमरीची प्यास थी। था उसी में सुख हमें संतोष था,अपने छलिया के लिए मैं खेल की तो वस्तु थी। पर अरे !इस भ्रम ने मुझे ,घायल किया, खेल में भी खेल इक चलता रहा। वक्त अपने हाथ ही मलता रहा। अब हृदय का शूल हूं मैं। सोची-समझी भूल हूं मैं, भूल हूं तो क्या हुआ? उन चरण की धूल हूं मैं। दोष  किसको दूं भला निज भाग का, मेरे हिस्से का मिला ही भाग है। हो गया निस्तेज तन कब का भला, किंतु फिर भी मन जली एक आग है ।। प्रेम के पथ में मिला जो पथिक को,आज मु...

पटल पर तुम्हारा चित्र

  इस हृदय के पटल पर,एक ही प्रतिबिंब था, प्रियतम तुम्हारा। मन मोहक मुस्कुराता ,कल्पित निश्छल चेहरा तुम्हारा। स्पष्टता थी उसमें,न भ्रम ना कोई छलावा। पर अरे !छलिया ,ये तूने क्या किया? इस घट को भी ,दधि घट, तूने समझ लिया। कर दिया न, छल के पत्थर से आघात। और फिर चाहे, ना नयना बनैं प्रपात। आशाओं का ,मक्खन बिखर गया। विश्वास की माटी ,का घट दरक गया। अनगिनत छवियां ,बनी उसमें तुम्हारी। और  अब चकरा रही, बुद्धी हमारी। कौन सा प्रतिबिंब, असली है तुम्हारा? जानते हम ,गिरगिटी मन है तुम्हारा। आस अब ना है तुम्हारी, और ना विश्वास है। ये तो बस ,गहरे कुएं का ,मौनमय उच्छ्वास है। चाहत है बस ,चाह नहीं, मुझको तुम्हारी। जीतकर भी हार है ,बस ये तुम्हारी।  सरला भारद्वाज १० -१ -२१

वंदना ,अर्चना

Image
                                 वंदना क्रम                            प्रातः स्मरण https://youtu.be/smxAbMOeT4g (विद्या भारती सम्पूर्ण वन्दना) कराग्रे वसते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती। करमूले तु गोविंद: प्रभाते करदर्शनम्।।     समुद्र वसने देेेवी पर्वत स्तन  मण्डलेेेे, विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शम् क्षमस्व मे। ,  विशेष -प्रातः जागरण के उपरांत, अपने हाथ की हथेलियों और रेखाओं में तीनों देवों की कल्पना करनी चाहिए। हाथ के अग्रिम भाग में लक्ष्मी जी ,मध्य भाग में सरस्वती जी, और हाथ के मूल भाग, मणिबंध में भगवान श्री कृष्ण गोविंद ,या नारायण की कल्पना करके, प्रातः अपने हाथों का दर्शन करें, और इस श्लोक को बोलें तत्पश्चात अपने दैनिक कार्य प्रारंभ करने चाहिए।    ( सरस्वती विद्या मंदिरों में स्मरण कराने और संस्कार डालने हेतु यह श्लोक सर्वप्रथम कराया जाता है।)   १. ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी, भानु शशि भूम...

सुबह क्या करें ?क्या न करें? क्या आप जानते हैं? (प्रथम अंक)

Image
          - -- ?क्या आप जानते हैं?   प्रातः जागरण के उपरांत क्या करें? और क्या ना करें? *यह प्रश्न पढ़ कर अलग-अलग लोगों के मन में अलग-अलग विचार उठ रहे होंगे।  ''मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना: ।" आइए इस लेख में हम जानते हैं ,कि प्रातः जागने के उपरांत हमें क्या-क्या करना चाहिए, और क्या क्या नहीं करना चाहिए। तो  इस सवाल का जवाब जानते हैं ,हम अध्यात्म, शरीर विज्ञान ,और आयुर्वेद, को ध्यान में रखते हुए। *सूर्य उदय से पूर्व ही जागरण उत्तम होता है।उगते सूर्य के दर्शन करें,ताकि शुभ मंगल का सूर्य हमारे जीवन में हमेशा उदित रहे। *सूर्य उदय के पश्चात जागने से शरीर में पित्त बढ़ता है,और स्वास्थ्य के लिए कफ, पित्त और बात,का संतुलन (बैलैंश) अति आवश्यक है। *मित्रों जागरण के उपरांत 2 मिनट बैठें, अचानक से बिस्तर से उठ कर जमीन पर न चलें। क्योंकि रात भर के सोने के उपरांत हमारे शरीर के तापमान में और पृथ्वी के तापमान में अंतर होता है। पहले अपने शरीर के तापमान को, स्वयं  को सामान्य करें । 2 मिनट बैठें तदुपरांत निम्नलिखित मंत्र को बोलते हुए सर्वप्रथम अपने हाथों का दर्शन ...

धनराज पिल्लै

Image
       

माटी वाली

Image
                  

वीर कुंवर सिंह

Image
  सारांश    वीर कुंवर सिंह के वीरता पूर्ण रणकौशल की कहानी सुनने और जानने हेतु,  नीचे दी गई, लिंक पर, क्लिक करें वीडियो देखकर जाने अपने भारत के गौरव को       https://youtu.be/sujJhfchLx0 प्रश्न 1.  वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएं आप को प्रभावित करती हैं? उत्तर-  वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएं में प्रभावित करती हैं - उनका रण कौशल ,उनका साहस, उनकी वीरता, उनकी दया ,उनकी उदारता ,और की समाज सेवा प्रवृत्ति ,उनकी देशभक्ति ,उनकी बहादुरी आदि।   प्रश्न 2.     बचपन में वीर कुंवर सिंह को कौन-कौन सी काम करने में मजा आता था?क्या उन्हें उन कामों से स्वतंत्रता संग्राम में मदद मिली? उत्तर-     बचपन में वीर कुंवर सिंह को घुड़सवारी ,तलवारबाजी, कुश्ती ,आदि में बहुत आनंद आता था। उनके बचपन के यही शौक आगे चलकर स्वतंत्रता  काम आए।  जिसके कारण उन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाई।                उत्तर - अनेक प्रसंगों सेे पता चलता है कि वी...