नैनों की क्या बात कहूं

 

निज नैनोंं की  क्या बात कहूं?

तरसते हैं, बरसते हैं,देख तुझको हरषते  हैं,

हिय में हिलोरें लेती पीर,

ले आते भर -भर के नीर,

पर तुम्हारे नयन हैं अद्भुत निराले,

चित चुराते ,मन को भाते, मधु के प्याले।

अटकते हैं, मटकते हैं, अपना दामन झटकते हैं।

तोड़ते,स्वजनों की धीर,

छेड़ती जब मुरलिया,मीठे स्वरों के तीर।


सरला भारद्वाज (पथिक)

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