कैसे बतायें?
सवाल ये नहीं कि वो किसे चाहता है,
बात ये है कि दिल उसे चाहता है।
करना चाहता है मन उससे अनगिनत बातें,
पर उसके रुख को देख मन रुक और ठिठक जाताहै।
उलझा ही रहना चाहता है मन उसी में,
एक अजीब सी उलझन में मन उलझ जाता है।
महसूस करना चाहता है मन उसकी बाहों का दबाब,
पर दबा -दबा राज ही दबाब बन जाता है।
समा जाना चाहता है तन मन उसमें ही,
अनकही बात को वो समझ कहां पाता है।
बात समझाने की होती तो समझाते साहिब
समझदार भी नासमझ बन जाता है।
पूछता है वो मेरी नफरतों का हिसाब,मुझसे,
वो ही मैं हूं , मैं ही वो है,वो समझ नहीं पाता है।
करूं मैं शिकवा जो , रब से उसकी जफ़ओं का,
तो ये मेरी ही वफा की ही तौहीन होगी।
होता जुदा वो मेरी सासों से , तो बताते साहिब,
कैसे बतायें? हर धड़कन में वही तो धड़क धडक जाता है।
सरला भारद्वाज (पथिक)
१९-१-२१
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