मास फागुन आ गया

  



ढप बजाता मास फागुन आ गया है।

प्रेमियों के मुदित मन को भा गया है।

रंग की छिटकन की सुधि से रसिक मन इठलाये हैं।

आम्र तरु के झुरमुटों में,पिक के दल इतराये हैं।

संयोगी स्वर गायें फाग, बिरहन के मन सुलगी आग।

विश्वास के सख्त नाखून से, 

खुरच कर जो घट पटल पै लिख दिया,

अवधि अधार कालिख ने उसको ,और गहरा कर दिया। 

दरक चुका घट ,झरने लगी है लौन,

मुंडेरी पर बैठा कागा रहता मौन।

आज फिर मन भर आया,हाय प्रवासी नहीं आया।

 नयन की गंगा में घुलकर,बहचला विश्वास,

बह चली है आस ,शेष हैं निश्वास।

कैसा फागुन मास?


 सरला भारद्वाज (पथिक)

२२-३-१४



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