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सूरज है तू

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   सूरज है तू, राजा है मनमर्जी का, न संध्या का न ऊषा का। सीमा भी कहां है तेरी, कल्पना से परे है तू। सूरज है तू।  सरल पथ पर  चलना तुझे गंवारा कहां, टिका रहे एक ही धुरी पर स्वभाव कहां, अनंत रश्मियों और ज्योती का स्वामी है तू। सूरज है तू। अनुपम उपमाओं से विभूषित,  फिर भी पराबैंगनी से प्रदूषित, कामनाओं का पोषक  रजनियों का शोषक है तू। सूरज है तू। अनगिनत तबुस्सुमों को सोख के , भर देता बदलियों के नयनों को जल से। दूर रहकर भी तपाता और तड़पाता है तू। सूरज है तू। सरला भारद्वाज 16/6./20

आयौ बसंत

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            आयौ बसंत आयौ बसंत,            मधुमय संदेशा लायौ बसंत।  महक उठे बन बाग बगीचा, चहुंओर नवरंग उलीचा। क्रूर कोरोना से मुक्ति को                         कोविशील्ड लायौ बसंत।                          आयौ बसंत आयौ बसंत। खुलने लगे बंद विद्यालय, गूंज उठे फिर से ज्ञानालय।  वाणी के अवतरण दिवस संग, ।                         फाग राग लायौ बसंत।                      आयौ बसंत आयौ बसंत ।  अमुंवा की डाली बौराई, देखि देखि कोयल इतराई। छेडी पंचम तान सुरों की, कुहुकि कुहुकि गावै बसंत। जन जन के मन भायौ बसन्त।                                  ‌सरला भारद्वाज १३-२-२१ पिछले वर्ष की स्वरमयी कोशिश...

मनचला भंवरा

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    कभी इस फूल पै ,कभी उस फूल पै, भंवरा तो मंडराते, हर फूल पै। जूही तो ये समझे ,छलिया  प्यार करता है,  प्यार के जो नाम को बेजार करता है । वासना  की वृत्ति  से ,प्रहार करता है,  कहता कि कलियों पै ,उपकार करता है। होवै ना अफसोस ,जिसे किसी भूल पै। भंवरा तो मडराये हर फूल पै। कलियां कुचल होवै , तृप्ति  उसकी  वार करना पींठ पर ही, वृत्ति  उसकी भावनाओं को जो, तार तार करता है। कहता है बाग को, बहार करता है। फूल है गुलाब का, पसंद उसको , करेगा ये शौक कभी, तंग उसको। पड़ जाएगा जो पंख ,कभी शूल पै। भंवरा तो मंडराये ,हर फूल पै। सरला भारद्वाज  10/2/10 https://youtu.be/CCrqvfIzOJk  दोस्तो अजीब संयोग है, अभी रिलीज हुआ यार मेरा तितलियां सांग मेरे द्वारा लिखित कविता और उसकी धुन से हूबहू मिलता है ।  जो मैंने 2010 में लिखी थी ।लिंक पर जाकर मैच कर सकते है।  

आभार

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खुल गयी पोल

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 ढोल ओ ढोल।                                   सरला भारद्वाज -५-२--२१ खुल गयी रे तेरी पोल। ऊपर से जितना सुघड़, चुस्त, दुरुस्त ,रंगीन,  कसा हुआ नियंत्रित दिखता है तू, अंदर उससे कहीं अधिक बदरंग और , खोखलेपन का है तुझ मैं झोल। ढोल ओ ढोल। खुल गयी रे तेरी पोल। समझें सब तेरी तिरकिट को,  जीवन में गति देने वाली।  लेकिन गुणी समझते हैं बस ताली ,खाली। तेरा अस्तित्व तो सधी अंगुलियों की थिरकन से है, और मस्तिष्क की सुंदर कल्पना शक्ति से है। गरवा नहीं, इतरा नहीं, अपने खोखले आदर्श का ढोल पिटपा नहीं। लयबद्ध यति,गति मम वृत्ति है, बलि लेकर आवरण ओढना तेरी प्रबृत्ति है। ऋण चुका पायेगा उसका,  बलि दे अपनी बन गयी  तेरा खोल। ढोल ओ ढोल। खुल गयी रे तेरी पोल। जिसे समझता है निज गुंजन। वो बलि की पीड़ा के बोल। ढोल ओ ढोल। खुल गयी रे तेरी पोल।

कुछ तो लोग कहेंगे (लोग क्या -क्या कहते हैं,, लो कर लो बात!)

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   आज रह रह के मन एक गीत गुनगुना रहा है। "कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।''   पर विचारणीय ये है कि ये कहना भी तो कुछ अर्थपूर्ण और तर्कसंगत हो।कोई भी ऐरा गैरा कुछ भी कह जायेगा और हम यों ही सुन लें मान लें।  मुश्किल भी है और------------  अब क्या बताये आपको,और  किस तरह लिखूं ये बात।क्यों  कि बात  है बड़ी अटपटी और बड़ी ही गरिष्ठ।हुआ यह कि धर्म और कर्म दोनों ही द्रष्टिकोण से हम ठहरे राम आदर्श अनुगामी।सो धर्म-कर्म क्षेत्र के निर्वहन हेतु सेवा सेतु मे गिलहरी सा पुण्य अर्जित करने हेतु निकल पड़े धनसंचयन हेतु,  व्यवस्था और योजना के अनुसार नगर आगरा में। श्रद्धालुओं की कमी न थीं उम्मीद से बढ़कर पुन्यात्माओं ने पुण्य कमाने का प्रयास किया, पर-- एक सज्जन अपने श्रद्धा सुमन  अर्पित करते हुए बोले-यह धन संग्रह तो आप उस चोर -मोदी के लिए कर रहे हो। कौड़ी सी हमारी आंखें आश्चर्य से फैल कर पकौड़ी सी हो गयी !हमने पूछा आपका क्या चुराया मोदी ने ? निर्लज्जता से लजाते हुए उन्होंने ने अपनी विद्वता  और बुध्दि की प्रखरता का उद्घोष करते हुए  ,साक्ष्य ...

क्या आप जानते हैं? (द्वितीय अंक)

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  ये श्लोक  तो आप सभी ने पढ़़ा होगा,पर क्या इसका वास्तविक और गंभीर अर्थ आपको  ज्ञात है ?  इसका अर्थ पढ़कर चौंक जाएंगे आप..!" " त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ! त्वमेव विद्या, द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देवदेव !!" सरल-सा अर्थ है-- 'हे भगवान ! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो, तुम ही मेरे देवता हो !' बचपन से प्रायः यह प्रार्थना हम सबने पढ़ी है। मैंने 'इस रटे हुए श्लोक '  का अर्थ कम से कम 50 मित्रों  और अनगिनग छात्रों से पूछा होगा, 'द्रविणं' का क्या अर्थ है..? संयोग देखिए एक भी न बता पाया, अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी। एक ही शब्द “द्रविणं” पर  सोच में पड़ गए। द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति..! द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता, आखिर 'लक्ष्मी' भी कहीं टिकती है क्या..? कितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका 'वरीयता क्रम' भी..! ज़रा देखिए ...