सूरज है तू

  


सूरज है तू,

राजा है मनमर्जी का, न संध्या का न ऊषा का।

सीमा भी कहां है तेरी, कल्पना से परे है तू।

सूरज है तू।

 सरल पथ पर  चलना तुझे गंवारा कहां,

टिका रहे एक ही धुरी पर स्वभाव कहां,

अनंत रश्मियों और ज्योती का स्वामी है तू।

सूरज है तू।

अनुपम उपमाओं से विभूषित,

 फिर भी पराबैंगनी से प्रदूषित,

कामनाओं का पोषक  रजनियों का शोषक है तू।

सूरज है तू।

अनगिनत तबुस्सुमों को सोख के ,

भर देता बदलियों के नयनों को जल से।

दूर रहकर भी तपाता और तड़पाता है तू।

सूरज है तू।


सरला भारद्वाज

16/6./20


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