कुछ तो लोग कहेंगे (लोग क्या -क्या कहते हैं,, लो कर लो बात!)

  


आज रह रह के मन एक गीत गुनगुना रहा है।

"कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।'' 

पर विचारणीय ये है कि ये कहना भी तो कुछ अर्थपूर्ण और तर्कसंगत हो।कोई भी ऐरा गैरा कुछ भी कह जायेगा और हम यों ही सुन लें मान लें।  मुश्किल भी है और------------

 अब क्या बताये आपको,और  किस तरह लिखूं ये बात।क्यों  कि बात  है बड़ी अटपटी और बड़ी ही गरिष्ठ।हुआ यह कि धर्म और कर्म दोनों ही द्रष्टिकोण से हम ठहरे राम आदर्श अनुगामी।सो धर्म-कर्म क्षेत्र के निर्वहन हेतु सेवा सेतु मे गिलहरी सा पुण्य अर्जित करने हेतु निकल पड़े धनसंचयन हेतु,  व्यवस्था और योजना के अनुसार नगर आगरा में।

श्रद्धालुओं की कमी न थीं उम्मीद से बढ़कर पुन्यात्माओं ने पुण्य कमाने का प्रयास किया,

पर-- एक सज्जन अपने श्रद्धा सुमन  अर्पित करते हुए बोले-यह धन संग्रह तो आप उस चोर -मोदी के लिए कर रहे हो। कौड़ी सी हमारी आंखें आश्चर्य से फैल कर पकौड़ी सी हो गयी !हमने पूछा आपका क्या चुराया मोदी ने ? निर्लज्जता से लजाते हुए उन्होंने ने अपनी विद्वता  और बुध्दि की प्रखरता का उद्घोष करते हुए  ,साक्ष्य प्रस्तुत करते हुवे कहा - अरे!वह तो बचपन से ही चोर है,वह तो  बचपन में अपने घर से  ही एक किलो सोना लेकर भागा था।

हमने आकुलता और व्याकुलता से पूछा क्या आप मोदी के बचपन के साथी हैं? लज्जा को लजाते हुए खीसें निपोरते वे अपनी प्रकाण्ड विद्वता सिद्ध करते हुए बोले-नहीं, मुझे किसी ने बताया था,तभी तो आज वह राजा बना बैठा है।

हमारे ज्ञान चक्षु खुल गये। 

मन हुआ उनकी सात परिक्रमा कर चारों धामों का पुण्य उसी क्षण कमा लूं। निरुत्तर हो उनके कथन की पुष्टि करते हुए  हमने कहा- सही कहा आपने भाई साहब,उसकी मां ने वो सोना घर -घर  बर्तन पोंछा करके इक्कठा किया होगा, या फिर मोदी के पिताजी ने रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने से कमाये रूपयों से खरीदा होगा। मुझे भी किसी ने एक बात बताई थी ज़रा ध्यान से सुनिए ।

वे सुनने लगे- हम कहने -

किसी इंटरव्यू में दो पदों की नियुक्ति के लिए आप जैसे दो विद्वान बैठे थे।

 अब समस्या ये थी कि तीन उम्मीदवारों में से दो उसके सगे सम्बन्धी थे और तीसरा योग्य अधिक था ,तो प्रश्न कैसे पूछे जाय माथा पच्ची होने लगी। आख़िर तय हुआ- 

उन्होंने पहले से लिखवाया -कबूतर आ आ  आ ।

दूसरे से लिखवाया -कबूतर जा  जा जा ।

अब बारी थी योग्य व्यक्ति की 

तो उससे लिखवाया -कबूतर  को पुचकार ते हुए जो साउण्ड निकलती है उसे लिखना है।(  आप सभी समझ पा रहे हो,मैं भी उस ध्वनि को  लिखने में असमर्थ हूं, केवल प्रयोग का विषय है)

मेरा वाक्य पूर्ण भी न हुआ था, कि बीच में ही वे महोदय तपाक से बोले--किस बेबकूफ ने ये सवाल पूछ लिया ?ये भी कोई सवाल है?

 हमने कहा -जिसने आपको मोदी वाली बात बताई।क्यों कि आप का प्रस्तुत तर्क भी तर्क नहीं।आप को श्रद्धा निधि नहीं देनी तो कोई बात नहीं, पर कम से कम अपनी आंखें और विवेक तो खोल के रखिए।

इस बीच बहुत श्रद्धालु उन्हे घी गुड से पूजने के लिए एकत्रित हो गये  थे।

हम मुस्कुराते गुननाते आगे बढ लिए--

राम काज कीन्हे बिना मोहि कहां विश्राम।

 सरला भारद्वाज

१७-१-२०२१.


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