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Showing posts from May, 2025

सुदामा चरित

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              मित्रता           काव्य -पहेली  पहले भी शान थी, अब भी शान है, सचमुच ही दोस्तो , मेरा भारत महान है । आई है मुझको याद एक मित्रता की बात, जिसके समान विश्व में कोई नहीं मिशाल, राजा था एक मित्र,दूजा बहुत दरिद्र, पर मित्रता निभी कि भाई हो गया कमाल, किस्सा वहीं सुनाऊं ,सुनिए धर के ध्यान है । सचमुच ही दोस्तो मेरा भारत महान है। कवि -श्री प्रेमचंद शर्मा जिरौलिया  सुदामा चरित (नरोत्तम दास) सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह को नहिं सामा॥ द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा। पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥ शीश-सिर पगा-पगडी  झगा-कुर्ता उपानह -जूते द्विज-ब्राहमण दुर्बल -कमजोर चकिसों -चकित होकर वसुधा -धरती  अभि रामा-प्रसन्नता,आराम ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥ देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल...

सुदामा चरित

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    सुदामा चरित कविता का भावार्थ सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥ द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा। पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥ सुदामा चरित भावार्थ:  इस पद में कवि ने सुदामा के श्रीकृष्ण के महल के द्वार पर खड़े होकर अंदर जाने की इजाज़त मांगने का वर्णन किया है। श्रीकृष्ण का द्वारपाल आकर उन्हें बताता है कि द्वार पर बिना पगड़ी, बिना जूतों के, एक कमज़ोर आदमी फटी सी धोती पहने खड़ा है। वो आश्चर्य से द्वारका को देख रहा है और अपना नाम सुदामा बताते हुए आपका पता पूछ रहा है। ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥ देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥  सुदामा चरित भावार्थ:   द्वारपाल के मुँह से सुदामा के आने का ज़िक्र सुनते ही श्रीकृष्ण दौड़कर उन्हें लेने जाते हैं। उनके पैरों के छाले, घाव और उनमें चुभे कांटे देखकर श्रीकृष्ण को कष्ट होता है, व...

भक्त कवि और राज धर्म

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                  ‌                                           सरला भारद्वाज 30/5/23        भक्ति कालीन कवि तुलसीदास,तात्कालिक स्थितियां और राजधर्म विश्लेषण- साहित्य समाज का दर्पण है ऐसा हम सभी बचपन से पढ़ते कहते और सुनते आए हैं। यह उक्ति कितनी खरी उतरती है ?यह चिंतन का विषय है। दर्पण में वैसा ही दिखता है ,जैसा होता है। तो आज मुझे लगा क्यों ना भक्तिकालीन काव्य साहित्य के दर्पण में समाज का नैतिक, राजनीतिक, व्यवहारिक , वैज्ञानिक  पक्ष देखा जाए। विश्लेषण किया जाए कि आखिर भक्ति कालीन कवि कोरे भक्त ही थे, या भक्त होने के साथ-साथ एक सच्चे समाज सुधारक, लोक नायक, बेबाक वक्ता, राजनैतिक विश्लेषक भी थे। आइए सर्वप्रथम इन सभी बिंदुओं को एक ही ग्रंथ और कवि के रचना साहित्य में खोजने का प्रयास करते हैं। आइए सर्वप्रथम खोज करते हैं राम चरित मानस और तुलसी के कृतित्व से, जो भारतीय आचरण निर्माण एवं नैतिक मूल्यों का स्रोत है ।जहां ज...

भारत के वीर , आपरेशन सिंदूर

 बजा दीनों डंका, जलाय दीनीं लंका, भारत के वीर सपूत बड़े ही रणबंका, भारत के वीर सपूत  बड़े रण बंका, नर के इंद्र ने नदी सुखाई, सिंधु नदी संधी ठुकराई, बनि बिजली व्योमिका गहराई, कर्नल कुरैषी ने योजना बनाई, आतंकिस्तानी  धरती थर्राई , आपरेशन सिंदूर दुहाई, जबाब दीनों ढंग का , रही ना कोई शंका, भारत के वीर सपूत बड़े ही रण बंका। सरला भारद्वाज  8:15pm

आपरेशन सिंदूर ,जय बजरंगबली

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चली चली फिर पवन चली, जय पवन पुत्र बजरंगबली, सिया राम के परम दुलारे, सिंदूरी तन , सिंदूर रखवारे, अट्टहास करि गरजी सेना, जला दयी  आतंक पुरी। हाहाकार मचाया दियो पल में, जाय घेरे आतंकी घर में, संधानों  ब्रह्मोस बाण तब , सहम गयी आतंक पुरी, संग तिहारे दुर्गा काली, रण चंडी राफेलों वाली, ध्वज केसरिया फहरा दीनों राष्ट्र धर्म निज बतला दीनों, हाथ मलै आतंक पुरी। सरला भारद्वाज 6pm

मियां नसरुद्दीन 11हिंदी आरोह

पाठ- मियां नसरुद्दीन   प्रश्न. 1. मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है? उत्तर: मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा कहा गया है, क्योंकि वे मसीहाई अंदाज में रोटी पकाने की कला का बखान करते हैं। वे स्वयं भी छप्पन तरह की रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका खानदान वर्षों से इस काम में लगा हुआ है। वे रोटी बनाने को कला मानते हैं तथा स्वयं को उस्ताद कहते हैं। उनका बातचीत करने का ढंग भी महान कलाकारों जैसा है। अन्य नानबाई सिर्फ रोटी पकाते हैं। वे नया कुछ नहीं कर पाते। प्रश्न. 2. लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं? उत्तर: लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास इसलिए गई थी क्योंकि वह रोटी बनाने की कारीगरी के बारे में जानकारी हासिल करके दूसरे लोगों को बताना चाहती थी। मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन तरह की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर थे। वह उनकी इस कारीगरी का रहस्य भी जानना चाहती थी। प्रश्न. 3. बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी? उत्तर: लेखिका ने जब मियाँ नसीरुद्दीन से उनके खानदानी नानबाई होने का रहस्य पूछा तो ...

काले मेघा पानी दे

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                धर्मवीर भारती (1926-1997) एक प्रमुख भारतीय कवि, लेखक, नाटककार और सामाजिक विचारक थे. वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. उनकी रचनाएँ कविता, उपन्यास, नाटक और गद्य सहित विविध रूपों में हैं.  प्रमुख बातें: जन्म: 25 सितंबर 1926, इलाहाबाद. मृत्यु: 4 सितंबर 1997. कार्य: कवि, लेखक, नाटककार, सामाजिक विचारक, पत्रकार. प्रमुख रचनाएँ: उपन्यास: गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा. नाटक: अंधा युग. कविता: दूसरा सप्तक में शामिल, अंधा युग. कहानी: चाँद और टूटे हुए लोग, बंद गली का आखिरी मकान. अन्य: धर्मयुग पत्रिका के प्रधान संपादक. पुरस्कार: पद्मश्री (1972).  काले मेघा पानी दे  पाठ का प्रतिपाद्य व सारांश प्रतिपादय – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में प्रचलित विश्वास और विज्ञान के अस्तित्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास की अपनी क्षमता। इनके महत्व के विषय में पढ़ा-लिखा वर्ग परेशानी में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में धारणा रची है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा (15 दिन), बीत चुका है। ऐसे...

कक्षा 12 हिंदी में मोस्ट इंर्पोटेंट

  हिंदी 12  बोर्ड के  सर्वाधिक संभावित प्रश्न- पिछले 5 वर्षों में लगातार पूछे गए- पद्य भाग- अध्याय एक-आत्म परिचय ,दिन जल्दी जल्दी ढलता है 1.दिन जल्दी-जल्दी ढलता है कविता का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए। उत्तर -दिन जल्दी-जल्दी ढलता है कविता में कवि ने प्रेमकी  व्याकुलता और व्यग्रता है ।पथिक को अपने प्रिय जनों से जल्दी मिलने की चाह है। इसलिए वह जल्दी-जल्दी चलने का प्रयास करता है। ठीक इसी प्रकार  पंछी अपने बच्चों से मिलने के विषय में सोचते ही अपने पंखों में गति भर लेते हैं।वे जल्दी से जल्दी अपने बच्चों के पास नीड़ की ओर लौट रहे हैं परन्तु कवि अकेला है ।उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है इसलिए उसके कदमों की चाल शिथिल है।मन में व्याकुलता है। कवि बच्चन का मानना है कि जीवन में गति का कारण प्रेम है। 2.पंथी क्या सोच रहा है और क्यों? कविता में कवि पक्षियों की तरह अपने घर लौटने को आतुर क्यों नहीं? उत्तर -पंथी सोच रहा है कि दिन भर चलकर अब मैं अपनी मंजिल के समीप पहुंचने वाला हूं परंतु मंजिल तक पहुंचने से पहले कहीं रात न हो जाए।  फिर अचानक से विचार आता है कि इन पक...

कहानी -झुनझुना वाले बाबा

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 *कहानी* *झुनझुना वाले बाबा* एक परिवार में सब बड़े मिलजुलकर रहते थे ,साथ हंसते गाते और सहयोग भाव से आगे बढ़ते जाते थे। सभी को समान सम्मान और अवसर मिलते थे ।एक दिन उस परिवार उम्रदराज असक्त व्यक्ति ने धुंधली दृष्टि के कारण दूषित जल पी लिया। संवेदनशील परिवार को आत्मबोध हुआ कि बाबा को कोई कष्ट न हो ,और एक झुनझुना थमा दिया और कहा कि जब भी कभी कोई आवश्यकता हो इस झुनझुने को बजा देना ,हम दौड़े चले आएंगे। बाबा को झुनझुना आवश्यकता के लिए बजाना था पर झुनझुने पर दूसरों को दौड़ाने में उन्हें आनंद आने लगा।अब वे बाबा झुनझुना यूं ही बजाने लगे।अब उन्हें एक नयी तरकीब सूझी , झुनझुना के तारों से टेड़ा मेड़ा एक चश्मा बनाया और अपने ईर्ष्यालु मित्र को पहनाया और कहा कि इस झुनझुने में बड़ी ताकत है ।सब नाचते हैं इसके आगे। इससे बना यह चश्मा भी कमाल है !इसे पहनकर जरा मेरे खेतों पर जाओ और मेरे परिवार को लहलहाती फसल में क्या कमी है बताओं! झुनझुने की झनक के नशा में ईर्ष्यालु मित्र दौड़ा। लहलहाती फसल को देखकर छाती पर सांप लोट गया ।उसने कहा-फसल कुछ ज्यादा ही लहलहाती है।लगता है पडौस के खेत की शक्ति खींच ली हैं।यह ...

आपरेशन सिंदूर

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  नाहर हर भारत का बच्चा, खा जाएगा तुझे पकड़ के कच्चा, सुन ले पाकिस्तान, आंख उठाई भारत पर जो , घर में घुसकर मारेंगे ,मिट जाएगा नामों निशान। बहुत गा लिया शांति का गीत, जाग उठी अब जंग की प्रीत, धर्म पूछकर तुमने मारा, ले दहशतगर्दी का सहारा, मांगों का सिंदूर उजारा, अगला वार भी देख हमारा, थर्रा उठा नापाक तुम्हारा, पानी रोकें या हम छोड़े , दाग के गोले , तुमको फोड़े, हाय हाय चिल्लाओगे,पर निकलेंगे ना प्रान, आंख उठाई भारत पर जो, घर में घुसकर मारेंगे ,मिट जाएगा नामों निशान, सरला भारद्वाज (पथिक) 7/5/2025 7:25pm

आप सब कुछ कर सकते हैं -प्रेरक प्रसंग

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                           ध्यान से पढ़ें , ध्यान से गुने कोलंबिया विश्वविद्यालय में गणित के एक कोर्स के दौरान एक छात्र कक्षा में सो गया। जब उसकी नींद खुली, तो उसने देखा कि प्रोफेसर ने व्हाइटबोर्ड पर दो समस्याएँ लिखी थीं। उसने सोचा कि ये होमवर्क हैं, इसलिए वह उन्हें अपनी नोटबुक में नोट कर के घर ले गया। जब उसने उन समस्याओं को हल करने की कोशिश की, तो वे उसे बेहद कठिन लगीं। लेकिन उसने हार नहीं मानी। घंटों लाइब्रेरी में बैठकर उसने संदर्भ पुस्तकों की मदद से अध्ययन किया और अंततः वह एक समस्या को हल करने में सफल हो गया, भले ही यह काफी चुनौतीपूर्ण था। अगली कक्षा में प्रोफेसर ने जब होमवर्क के बारे में कुछ नहीं पूछा, तो वह चकित हुआ और खड़ा होकर पूछा, "सर, आपने पिछले लेक्चर में दिए गए असाइनमेंट के बारे में कुछ क्यों नहीं पूछा?" प्रोफेसर ने उत्तर दिया, "असाइनमेंट? वो तो मैंने केवल ऐसे उदाहरण के तौर पर लिखी थीं जिन्हें अभी तक वैज्ञानिक हल नहीं कर पाए हैं।" छात्र चौंक गया और बोला, "लेकिन मैंने उनमें से एक को हल कर लिया है! मैंने इस ...

बाजार दर्शन

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  प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकारों में जैनेंद्र कुमार (२ जनवरी, १९०५- २४ दिसंबर, १९८८) का विशिष्ट स्थान है। वह हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक के रूप में मान्य हैं। जैनेंद्र अपने पात्रों की सामान्यगति में सूक्ष्म संकेतों की निहिति की खोज करके उन्हें बड़े कौशल से प्रस्तुत करते हैं। उनके पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ इसी कारण से संयुक्त होकर उभरती हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों में घटनाओं की संघटनात्मकता पर बहुत कम बल दिया गया मिलता है। चरित्रों की प्रतिक्रियात्मक संभावनाओं के निर्देशक सूत्र ही मनोविज्ञान और दर्शन का आश्रय लेकर विकास को प्राप्त होते हैं।[8] जैनेन्द्र कुमार जन्म 1905[1][2][3][4][5] कौड़ियागंज मृत्यु  1988,[1][2][3][4][5] 1990  नागरिकता भारत,[6] ब्रिटिश राज, भारतीय अधिराज्य  पेशा लेखक प्रसिद्धि का कारण मुक्तिबोध  पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार,[7] पद्म भूषण   पाठ -बाजार दर्शन कक्षा 12 - May 05, 2025   जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित बाजार दर्शन" पाठ व्यंग्य लेख है  जिसमें जैनेंद्र कुमार ने बाजार की प्रक...