काले मेघा पानी दे
धर्मवीर भारती (1926-1997) एक प्रमुख भारतीय कवि, लेखक, नाटककार और सामाजिक विचारक थे. वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. उनकी रचनाएँ कविता, उपन्यास, नाटक और गद्य सहित विविध रूपों में हैं.
पाठ का प्रतिपाद्य व सारांश
प्रतिपादय – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में प्रचलित विश्वास और विज्ञान के अस्तित्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास की अपनी क्षमता। इनके महत्व के विषय में पढ़ा-लिखा वर्ग परेशानी में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में धारणा रची है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा (15 दिन), बीत चुका है। ऐसे में खेती व अन्य कार्यों के लिए पानी न हो तो जीवन चलाना मुश्किल हो जाता है। यदि विज्ञान इन चुनौतियों का निबटारा नहीं कर पाता तो भारतीय समाज किसी-न-किसी जुगाड़ में लग जाता है, छल करता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा तथा बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है।
सारांश – लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धडंग बच्चे शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। यह दस-बारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लैंगोटी पहनकर ‘गंगा मैया की जय’ बोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। इस मंडली को इंदर सेना या मेढक-मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं –
काले मघा पानी द पानी दे, गुड़धानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा काले मेधा पानी दे।
काले मेघा पानी दे
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न.1.
लोगों ने लड़कों की टोली की मेढक-मंडली नाम किस आधार पर दिया? यह टोली अपने आपको इंदर सेना कहकर क्यों बुलाती थी? (CBSE-2009)
उत्तर:
गाँव के कुछ लोगों को लड़कों के नंगे शरीर, उछल-कूद, शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ से चिढ़ थी। वे इसे अंधविश्वास मानते थे। इसी कारण वे इन लड़कों की टोली को मेढक-मंडली कहते थे। यह टोली स्वयं को ‘इंदर सेना’ कहकर बुलाती थी। ये बच्चे इकट्ठे होकर भगवान इंद्र से वर्षा करने की गुहार लगाते थे। बच्चों का मानना था कि वे इंद्र की सेना के सैनिक हैं तथा उसी के लिए लोगों से पानी माँगते हैं ताकि इंद्र बादलों के रूप में बरसकर सबको पानी दें।
प्रश्न 2.
जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया? (CBSE-2010, 2011)
उत्तर:
यद्यपि लेखक बच्चों की टोली पर पानी फेंके जाने के विरुद्ध था लेकिन उसकी जीजी (दीदी) इस बात को सही मानती है। वह कहती है कि यह अंधविश्वास नहीं है। यदि हम इस सेना को पानी नहीं देंगे तो इंदर हमें कैसे पानी देगा अर्थात् वर्षा करेगा। यदि परमात्मा से कुछ लेना है तो पहले उसे कुछ देना सीखो। तभी परमात्मा खुश होकर मनुष्यों की इच्छाएँ पूरी करता है।
प्रश्न 3.
पानी दे, गुड़धानी दे मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग क्यों की जा रही है?
उत्तर:
गुड़धानी गुड़ व अनाज के मिश्रण से बने खाद्य पदार्थ को कहते हैं। बच्चे मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग करते हैं। पानी से प्यास बुझती है, साथ ही अच्छी वर्षा से ईख व धान भी उत्पन्न होता है, यहाँ ‘गुड़धानी’ से अभिप्राय अनाज से है। गाँव की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित होती है जो वर्षा पर निर्भर है। अच्छी वर्षा से अच्छी फसल होती है जिससे लोगों का पेट भरता है और चारों तरफ खुशहाली छा जाती है।
प्रश्न 4.
गगरी फूटी बैल पियासा इंदर सेना के इस खेलगीत में बैलों के प्यासा रहने की बात क्यों मुखरित हुई है? (CBSE-2014, 2015)
उत्तर:इस खेलगीत में बैलों के प्यासा रहने की बात इसलिए मुखरित हुई है कि एक तो वर्षा नहीं हो रही। दूसरे जो थोड़ा बहुत पानी गगरी (घड़े) में बचा था। वह भी घड़े के टूटने से गिर गया। अब घड़े में भी कुछ पानी नहीं बचा। इसलिए बैल प्यासे रह गए। बैल तभी खेत-जोत सकेंगे जब उनकी प्यास बुझेगी। हे मेघा! इसलिए पानी बरसा ताकि बैलों और धरती दोनों की प्यास बुझ जाए! चारों ओर खुशी छा जाए।
प्रश्न 5.इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय क्यों बोलती है? नदियों का भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्त्व है? (CBSE-2011)
उत्तर:वर्षा न होने पर इंदर सेना सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलती है। इसका कारण यह है कि भारतीय जनमानस में गंगा, नदी को विशेष मान-सम्मान प्राप्त है। हर शुभ कार्य में गंगाजल का प्रयोग होता है। उसे ‘माँ’ का दर्जा मिला है। भारत के सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश में नदियों का बहुत महत्त्व है। देश के लगभग सभी प्रमुख बड़े नगर नदियों के किनारे बसे हुए हैं। इन्हीं के किनारे सभ्यता का विकास हुआ। अधिकतर धार्मिक व सांस्कृतिक केंद्र भी नदी-तट पर ही विकसित हुए हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी, बनारस, आगरा आदि शहर नदियों के तट पर बसे हैं। धर्म से भी नदियों का प्रत्यक्ष संबंध है। नदियों के किनारों पर मेले लगते हैं। नदियों को मोक्षदायिनी माना जाता है।
प्रश्न 6.रिश्तों में हमारी भावना-शक्ति बँट जाना विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुधि की शक्ति को कमज़ोर करती है। पाठ में जीजी के प्रति लेखक की भावना के संदर्भ में इस कथन के औचित्य की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
लेखक का अपनी जीजी के प्रति गहरा प्यार था। वह अपनी जीजी को बहुत मानता था। दोनों में भावनात्मक संबंध बहुत गहरा था। लेखक जिस परंपरा कां या अंधविश्वास का विरोध करता है जीजी उसी का भरपूर समर्थन करती है। धीरे-धीरे लेखक और उसकी जीजी के बीच की भावनात्मक शक्ति बँटती चली जाती हैं। लेखक का विश्वास डगमगाने लगता है। वह कहता भी है कि मेरे विश्वास का किला ढहने लगा था। उसकी जीजी लेखक की बुधि शक्ति को भावनात्मक रिश्तों से कमजोर कर देती है। इसलिए लेखक चाहकर भी किसी बात का विरोध नहीं कर पाता । यद्यपि वह विरोध जताने का प्रयास करता है लेकिन अंत में उसे जीजी के आगे समर्पण करना पड़ता है।
प्रश्न 7..
क्या इंदर सेना आज के युवा वर्ग का प्रेरणा स्रोत हो सकती है? क्या आपके स्मृति-कोश में ऐसा कोई अनुभव है। जब युवाओं ने संगठित होकर समाजोपयोगी रचनात्मक कार्य किया हो, उल्लेख करें।
उत्तर:
हाँ, इंदर सेना आज के युवा वर्ग के लिए प्रेरणा-स्रोत हो सकती है। यह सामूहिक प्रयास ही है जो किसी भी समस्या को सुलझा सकता है। सामूहिक शक्ति के कारण ही बड़े-बड़े आंदोलन सफल हुए हैं। ‘वृक्ष बचाओ’, महात्मा गांधी के आंदोलन, जेपी आंदोलन आदि युवाओं की सामूहिक शक्ति के कारण ही सफल हो सके हैं। आज भी युवा यदि संगठित होकर कार्य करें, तो अशिक्षा, आतंकवाद, स्त्री-अत्याचार जैसी समस्याएँ शीघ्र समाप्त हो सकती हैं। समाजोपयोगी रचनात्मक काय सबधी अनुभव विद्यार्थी स्वय लिखें।
प्रश्न 8.
तकनीकी विकास के दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। कृषि समाज में चैत्र, वैशाख सभी माह बहुत महत्त्वपूर्ण हैं पर आषाढ़ का चढ़ना उनमें उल्लास क्यों भर देता है?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की लगभग 78 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। इसलिए तकनीकी विकास के बाद भी बहुत कुछ कृषि पर निर्भर रहता है। कृषि के लिए सभी महीने महत्त्वपूर्ण हैं। लेकिन इनमें से वैशाख महीना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी महीने में कटाई प्रारंभ होती है। यदि इस महीने में धूप खिली रहे, बरसात न हो, तो धन धान्य भरपूर होता है। किसानों के चेहरे खिले रहते हैं। इसलिए आषाढ़ का चढ़ना किसानों में उल्लास भर देता है। वह बेहद खुश हो जाता है।
प्रश्न 9
पानी का संकट वर्तमान स्थिति में भी बहुत गहराया हुआ है। इसी तरह के पर्यावरण से संबद्ध अन्य संकटों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
पर्यावरण से संबंधित अन्य संकट निम्नलिखित हैं –
उद्योगों व वाहनों के कारण वायु-प्रदूषण होना।
भूमि का बंजर होना।
वर्षा की कमी।
सूखा पड़ना।
बाढ़ आना।
धरती के तापमान में दिन पर दिन बढ़ोतरी।
लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धडंग बच्चे शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। यह दस-बारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लैंगोटी पहनकर ‘गंगा मैया की जय’ बोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। इस मंडली को इंदर सेना या मेढक-मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं –
काले मघा पानी द पानी दे, गुड़धानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा काले मेधा पानी दे।
जब यह मंडली किसी घर के सामने रुककर ‘पानी’ की पुकार लगाती थी तो घरों में रखे हुए पानी से इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। गर्मी से कुएं सूख चुके होते थे. नलों में बहुत कम पानी आता था, लू से व्यक्ति बेहोश होने लगते थे। बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता था। जब पूजा-पाठ आदि काम नहीं आते थे तो इंदर सेना आखिरी उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की माँग करती थी।
लेखक समझ नहीं पाता था कि पानी की कमी के बावजूद लोग इकट्ठा किए पानी को इन पर क्यों फेंकते थे। ऐसे अंधविश्वासों से देश को बहुत नुकसान होता है। अगर यह सेना इंद्र की है तो वह खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? इसी कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए तथा उनके गुलाम बन गए।लेखक मेढक-मंडली वालों की उम्र का ही था। वह आर्यसमाजी था, कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था और समाजसुधारी था। अपनी जीजी से उसे चिढ़ थी जो उम्र में उसकी माँ से बड़ी थीं। वे सभी रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-पाठों को लेखक के हाथों पूरा करवाती थीं। इन्हीं अंधविश्वासों को लेखक समाप्त करना चाहता था।
लेखक को पुण्य मिलने के लिए वह यह करवाती थीं। जीजी लेखक से इंदर सेना पर पानी फेंकवाने का काम करवाना चाहती थीं। उसने साफ़ मना कर दिया। जीजी ने काँपते हाथों व डगमगाते पाँवों से इंदर सेना पर पानी फेंका। लेखक जीजी से मुँह फुलाए रहा। शाम को उसने जीजी की दी हुई लड्डू-मठरी भी नहीं खाई। पहले उन्होंने गुस्सा दिखाया, फिर उसे गोद में लेकर समझाया कि यह अंधविश्वास नहीं है। यदि हम पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे। यह पानी की बरबादी नहीं है बल्कि यह पानी की बर्बादी है। दान में देने पर ही इच्छित वस्तु मिलती है। ऋषियों ने दान को महान बताया है।
करोड़पति दो-चार रुपये दान में देदे तो वह त्याग नहीं होता। त्याग वह है जो अपनी जरूरत की चीज को जनकल्याण के लिए दे। ऐसे ही दान का फल मिलता है। लेखक जीजी के तर्कों के आगे पस्त हो गया। फिर भी वह जिद पर अड़ा रहा। जीजी ने फिर समझाया कि “तू बहुत पढ़ गया है।” वह अभी भी अनपढ़ है। “किसान भी 120-130 किलो गेहूँ उगाने के लिए 100-150 ग्राम अच्छा गेहूँ बोता है। इसी तरह हम अपने घर का पानी इन पर फेंककर बुवाई करते हैं। इसी से शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं।”
ऋषि-मुनियों ने भी यह कहा है कि “पहले खुद दो, तभी देवता चौगुना करके लौटाएँगे।” यह आदमी का ढंग है जिससे सबका ढंग बनता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ सच है। गाँधी जी महाराज भी यही कहते हैं।” लेखक कहता है कि यह बात पचास साल पुरानी होने के बावजूद आज भी उसके मन पर दर्ज है। अनेक संदर्भों में ये बातें मन को कचोटती हैं कि हम देश के लिए क्या करते हैं? हर क्षेत्र में माँगें बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। आज स्वार्थ एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परंतु खुद अपनी जाँच नहीं करते। काले मेघ उमड़ते हैं, पानी बरसता है, लेकिन बात वही रहती है। यह स्थिति कब बदलेगी, यह कोई नहीं जानता?
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