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वंदना सभा की वैज्ञानिकता

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  * हमारी वंदना सभा है पूर्ण वैज्ञानिक सभी विद्यालयों में अपने-अपने तरह की प्रार्थनाएं वंदनाएं होती हैं परंतु विद्या भारती की वंदना सभा की जो पद्धति है वह पूर्णतया वैज्ञानिक है व्यवहारिक है। अगर इसके वैज्ञानिक पक्ष पर विचार किया जाए तो सुखासन या पद्मासन अवस्था में वंदना की जो स्थिति है उसके पीछे शरीर विज्ञान है अध्यात्म विज्ञान है जब हम पालथी मार कर रीड की हड्डी को सीधा करके हाथ जोड़ने की स्थिति में बैठते हैं तो सीने के बीचो-बीच जो गड्ढा होता है उस गड्ढे को हाथ जोड़ने की स्थिति में जो मुद्रा बनती है दोनों अंगूठे से उसे मध्य भाग को स्पर्श किया जाता है। जहां हृदय चक्र होता है इस स्थिति में शरीर के सात चक्रों में से एक चक्र हृदय चक्र स्पंदित होता है ।पूरे शरीर का एक मंदिर जैसा आकार बनता है। पालथी मारकर सीधे बैठने पर मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, ब्रह्मांड में घूम रही सकारात्मक ऊर्जा सिर से शरीर में प्रवेश करती है। क्योंकि हम  पालथी मार बैठे होते हैं अतः यह ऊर्जा शरीर में प्रवेश तो करती है परंतु शरीर से बाहर नहीं जाने पाती ।अर्थात वंदना सभा का जो समय होता है वह एक तरह से हमारा चार्...

व्यक्तित्व क्या है ,और इसे कैसे सवांरे

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     किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का बोध प्रतिक्रिया के रूप में होता है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का परिचय इस बात से मिलता है कि वह भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में किस प्रकार व्यवहार या प्रतिक्रिया करता है। किसी व्यक्ति को बार-बार आक्रमणकारी व्यवहार करते देखकर हम कह उठते हैं कि वह आक्रमणकारी व्यक्तित्व का व्यक्ति है या हर स्थिति में सही निर्णय लेने पर हम कहते हैं वह बड़ा समझदार सधा हुआ व्यक्ति है। ऐसा व्यक्ति जिसका व्यवहार जिसका आचरण अधिक लोगों को  आकर्षित,प्रभावित करता है आखिरउसके व्यक्तित्व का निर्माण एक दिन में ही नहीं हो गया होता है कुछ सालों में ही नहीं हो गया होता है व्यक्तित्व निर्माण करने के पीछे बहुत सारे घटक काम करते हैं , सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं परिवार का वातावरण माता-पिता के संस्कार विद्यालय का वातावरण गुरुओं की देखरेख। जिस प्रकार एक माली एक जंगल को अपने परिश्रम से उपवन के रूप में बदल सकता है। एक कुम्हार मिट्टी को मनचाही  आकृति वाले पात्र के रूप में बदल सकता है ठीक उसी तरह बालकों के व्यक्तित्व के निर्माण में माता-पिता समाज गुरु और विद्यालय की भूमिका रहत...
     हिन्दी -कक्षा- नवम                 पूर्णांक-40 द्वितीय मासिक परीक्षा- सितम्बर 2023 नोट -प्रश्न पत्र में दिए गए प्रश्नों को ध्यान से पढ़ कर सुस्पष्ट उत्तर लिखिए- प्रश्न 1.अपठित गद्यांश .5अंक                             अपठित गद्यांश  यों तो मानव के इतिहास के आरंभ से ही इस कला का सूत्रपात हो गया था। लोग अपने कार्यों या विचारों के समर्थन के लिए गोष्ठियों या सभाओं का आयोजन किया करते थे। प्रचार के लिए भजन-कीर्तन मंडलियाँ भी बनाई जाती थीं। परंतु उनका क्षेत्र अधिकतर धार्मिक, दार्शनिक या भक्ति संबंधी होता था। वर्तमान विज्ञापन कला विशुद्ध व्यावसायिक कला है और आधुनिक व्यवसाय का एक अनिवार्य अंग है। विज्ञापन के लिए कई साधनों का उपयोग किया जाता है; जैसे-हैंडबिल, रेडियो और दीवार-पोस्टर, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, बड़े-बड़े साइनबोर्ड और दूरदर्शन। जब से छपाई का प्रचार-प्रसार बढ़ा तब से इश्तिहार या हैंडबिल का विज्ञापन के लिए प्रयोग आरंभ हुआ। कागज और मुद्रण सुविधा ...

किसी के पास जबाब है इसका

 आखिर क्यों..??????? चाहे हजारों स्त्री से उसके संबंध हो,  चाहे कई नाजायज़ अनुबंध हो, लेकिन पुरुष कभी वेश्या नहीं कहलाते। चाहे वह कितने ही प्रपंच कर ले.  और इससे कितने ही प्राण हर ले, लेकिन पुरुष कभी डायन नही कहलाते।  अपनी खानदानी अस्मत कोठों पर बेच आता है, नज़रे पराई स्त्री पर चाहे लगाता है,  लेकिन पुरुष कभी कुल्टा नहीं कहलाते।  चाहे ये कितने ही क्रूर स्वभाव के हों,  चाहे कितने ही घृणित बर्ताव के हों  लेकिन पुरुष कभी चुड़ैल नहीं कहलाते।  यहां तक की दो पुरूषों के झगडे में  घर से लेकर सड़क तक के रगड़े में स्त्रियों के नाम पर ही गालियां दी जाती हैं,  और फिर शान से ये मर्द कहलाते हैं।  क्यों डायन, कुल्टा, चुड़ैल, वेश्या, बद्दलन  केवल नारी ही कहलाए.. .?  क्या इन शब्दों के पुर्लिंग शब्द, पितृसत्तात्मक समाज ने नहीं बनाए.......? क्या यहाँ कोई ऐसा पुरुष है जिसे सड़क पर चलते हुए ये भय लगता हो  कि अकस्मात ही पीछे से तेज़ रफ़्तार में  एक स्कॉर्पियो आएगी  और उसमें बैठी चार महिलाएँ  जबरन उसे गाड़ी में उठा कर ले...

तुम तो आज से दीप हो

https://youtu.be/IoFzqvNRTek  "मैम मैं जीवन में कुछ कर नहीं पाऊंगा। मैं बहुत लो फिर करता हूं! " तुम्हारे ये शब्द और स्नेह से मुझसे लिपट कर रोना,मेरे अंतस को भेद गया दीप! हां दीप ही कहूंगी तुम्हें,आज से मैं तुम्हें तुम्हारे नाम से नहीं दीप नाम से ही पुकारूंगी तुम्हें।ये मेरा तुम्हारा जो सीक्रेट है न देखना एक दिन जब खुलेगा तब तुम दीप से सूरज बन चुके होंगे।आज अपने पैंदे में प्रकाश तलाश रहे तुम दुनिया को प्रकाशित करोगे।ये मेरे अंतर्मन की आवाज है प्यारे छात्र दीप!तुम तो मेरे पास आकर अपनी वेदना कह कर मेरे समझाने पर मुस्कुरा कर जा बैठे अपनी सीट पर,  पर अवकाश के बाद बहुत थके होने पर भी मैं तसल्ली  सीट पर न बैठ सकी। तीन रातों से ठीक से सो भी नहीं पाती।न जाने कितने विचार कितने छात्रों के चेहरे ,जीवन के न जाने कितने उतार चढ़ाव,और न जाने भगवत कृपा से किए गये अनेकानेक प्रयोगों के चलचित्र नाचने लगे आंखों के सामने।अपने नन्हे शिशु की पीड़ा में जो छटपटाहट एक मां की  होती है वैसा ही हाल हुआ कुछ।अंदर से आवाजें आने लगी कि मेरे दीप में कुछ आशा के तेल की जो कमी है वो पूरी करनी है।फिर अस्फ...
    निर्देश- इस प्रश्न पत्र में अ, एवं ब, दो खंड हैं । छात्र दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर निर्देश अनुसार सुस्पष्ट लेख में लिखें। विषय -हिन्दी -कक्षा- नवम पूर्णांक- 80 समय 3घंटे                              खंड -अ वार्षिक परीक्षा - प्रश्न 1.अपठित गद्यांश .5अंक                                अपठित गद्यांश  यों तो मानव के इतिहास के आरंभ से ही इस कला का सूत्रपात हो गया था। लोग अपने कार्यों या विचारों के समर्थन के लिए गोष्ठियों या सभाओं का आयोजन किया करते थे। प्रचार के लिए भजन-कीर्तन मंडलियाँ भी बनाई जाती थीं। परंतु उनका क्षेत्र अधिकतर धार्मिक, दार्शनिक या भक्ति संबंधी होता था। वर्तमान विज्ञापन कला विशुद्ध व्यावसायिक कला है और आधुनिक व्यवसाय का एक अनिवार्य अंग है। विज्ञापन के लिए कई साधनों का उपयोग किया जाता है; जैसे-हैंडबिल, रेडियो और दीवार-पोस्टर, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, बड़े-बड़े साइनबोर्ड और दूरदर्शन। जब से छपाई का प...
           निर्देश- इस प्रश्न पत्र में अ, एवं ब, दो खंड हैं । छात्र दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर निर्देश अनुसार सुस्पष्ट लेख में लिखें। विषय -हिन्दी -कक्षा- नवम पूर्णांक- 80 समय 3घंटे                              खंड -अ अर्द्ध वार्षिक परीक्षा - 1.अपठित गद्यांश .5अंक अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर1 वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ...