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किसी के पास जबाब है इसका

 आखिर क्यों..??????? चाहे हजारों स्त्री से उसके संबंध हो,  चाहे कई नाजायज़ अनुबंध हो, लेकिन पुरुष कभी वेश्या नहीं कहलाते। चाहे वह कितने ही प्रपंच कर ले.  और इससे कितने ही प्राण हर ले, लेकिन पुरुष कभी डायन नही कहलाते।  अपनी खानदानी अस्मत कोठों पर बेच आता है, नज़रे पराई स्त्री पर चाहे लगाता है,  लेकिन पुरुष कभी कुल्टा नहीं कहलाते।  चाहे ये कितने ही क्रूर स्वभाव के हों,  चाहे कितने ही घृणित बर्ताव के हों  लेकिन पुरुष कभी चुड़ैल नहीं कहलाते।  यहां तक की दो पुरूषों के झगडे में  घर से लेकर सड़क तक के रगड़े में स्त्रियों के नाम पर ही गालियां दी जाती हैं,  और फिर शान से ये मर्द कहलाते हैं।  क्यों डायन, कुल्टा, चुड़ैल, वेश्या, बद्दलन  केवल नारी ही कहलाए.. .?  क्या इन शब्दों के पुर्लिंग शब्द, पितृसत्तात्मक समाज ने नहीं बनाए.......? क्या यहाँ कोई ऐसा पुरुष है जिसे सड़क पर चलते हुए ये भय लगता हो  कि अकस्मात ही पीछे से तेज़ रफ़्तार में  एक स्कॉर्पियो आएगी  और उसमें बैठी चार महिलाएँ  जबरन उसे गाड़ी में उठा कर ले...

तुम तो आज से दीप हो

https://youtu.be/IoFzqvNRTek  "मैम मैं जीवन में कुछ कर नहीं पाऊंगा। मैं बहुत लो फिर करता हूं! " तुम्हारे ये शब्द और स्नेह से मुझसे लिपट कर रोना,मेरे अंतस को भेद गया दीप! हां दीप ही कहूंगी तुम्हें,आज से मैं तुम्हें तुम्हारे नाम से नहीं दीप नाम से ही पुकारूंगी तुम्हें।ये मेरा तुम्हारा जो सीक्रेट है न देखना एक दिन जब खुलेगा तब तुम दीप से सूरज बन चुके होंगे।आज अपने पैंदे में प्रकाश तलाश रहे तुम दुनिया को प्रकाशित करोगे।ये मेरे अंतर्मन की आवाज है प्यारे छात्र दीप!तुम तो मेरे पास आकर अपनी वेदना कह कर मेरे समझाने पर मुस्कुरा कर जा बैठे अपनी सीट पर,  पर अवकाश के बाद बहुत थके होने पर भी मैं तसल्ली  सीट पर न बैठ सकी। तीन रातों से ठीक से सो भी नहीं पाती।न जाने कितने विचार कितने छात्रों के चेहरे ,जीवन के न जाने कितने उतार चढ़ाव,और न जाने भगवत कृपा से किए गये अनेकानेक प्रयोगों के चलचित्र नाचने लगे आंखों के सामने।अपने नन्हे शिशु की पीड़ा में जो छटपटाहट एक मां की  होती है वैसा ही हाल हुआ कुछ।अंदर से आवाजें आने लगी कि मेरे दीप में कुछ आशा के तेल की जो कमी है वो पूरी करनी है।फिर अस्फ...
    निर्देश- इस प्रश्न पत्र में अ, एवं ब, दो खंड हैं । छात्र दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर निर्देश अनुसार सुस्पष्ट लेख में लिखें। विषय -हिन्दी -कक्षा- नवम पूर्णांक- 80 समय 3घंटे                              खंड -अ वार्षिक परीक्षा - प्रश्न 1.अपठित गद्यांश .5अंक                                अपठित गद्यांश  यों तो मानव के इतिहास के आरंभ से ही इस कला का सूत्रपात हो गया था। लोग अपने कार्यों या विचारों के समर्थन के लिए गोष्ठियों या सभाओं का आयोजन किया करते थे। प्रचार के लिए भजन-कीर्तन मंडलियाँ भी बनाई जाती थीं। परंतु उनका क्षेत्र अधिकतर धार्मिक, दार्शनिक या भक्ति संबंधी होता था। वर्तमान विज्ञापन कला विशुद्ध व्यावसायिक कला है और आधुनिक व्यवसाय का एक अनिवार्य अंग है। विज्ञापन के लिए कई साधनों का उपयोग किया जाता है; जैसे-हैंडबिल, रेडियो और दीवार-पोस्टर, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, बड़े-बड़े साइनबोर्ड और दूरदर्शन। जब से छपाई का प...
           निर्देश- इस प्रश्न पत्र में अ, एवं ब, दो खंड हैं । छात्र दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर निर्देश अनुसार सुस्पष्ट लेख में लिखें। विषय -हिन्दी -कक्षा- नवम पूर्णांक- 80 समय 3घंटे                              खंड -अ अर्द्ध वार्षिक परीक्षा - 1.अपठित गद्यांश .5अंक अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर1 वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ...

मुंतसिर ने लगाई अपनी ही लंका अब कूंइ कूंइ

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  https://youtu.be/-fLH-2X8Tf8 फिल्म समीक्षा भी सुनें- https://youtu.be/JBxO_O4KzR4 तैनें पूंछ की मूंछ लगाईं रे लल्ला! अब कूंइ कूंइ कूंइ!!! तोकूं नैक (तनिक)शरम नहीं आई रे लल्ला! अब कूइं कूंइ कूंइ !!! कैसी आदि पुरुष ये बनाई? पूरे जग में हंसी कराई!!! खुद अपनी ही लंका लगाई रे लल्ला! अब कूंइ कूंइ कूंइ!!!! इंटरव्यू में कैसी दयी रे सफाई? लगतु है तेरी मति बौराई!!! सब जनता रही गरमाई रे लल्ला! अब कूंइ कूंइ कूंइ!!! सब  तजि राम शरण में आइजा! तजि अभिमान राम गुन गाइजा! तेरे राम ही होयं सहाई रे लल्ला! अब कूंइ कूंइ कूंइ!!! सरला भारद्वाज 22/6/23

भक्त कवि और राज धर्म

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                  ‌                                           सरला भारद्वाज 30/5/23        भक्ति कालीन कवि तुलसीदास,तात्कालिक स्थितियां और राजधर्म विश्लेषण- साहित्य समाज का दर्पण है ऐसा हम सभी बचपन से पढ़ते कहते और सुनते आए हैं। यह उक्ति कितनी खरी उतरती है ?यह चिंतन का विषय है। दर्पण में वैसा ही दिखता है ,जैसा होता है। तो आज मुझे लगा क्यों ना भक्तिकालीन काव्य साहित्य के दर्पण में समाज का नैतिक, राजनीतिक, व्यवहारिक , वैज्ञानिक  पक्ष देखा जाए। विश्लेषण किया जाए कि आखिर भक्ति कालीन कवि कोरे भक्त ही थे, या भक्त होने के साथ-साथ एक सच्चे समाज सुधारक, लोक नायक, बेबाक वक्ता, राजनैतिक विश्लेषक भी थे। आइए सर्वप्रथम इन सभी बिंदुओं को एक ही ग्रंथ और कवि के रचना साहित्य में खोजने का प्रयास करते हैं। आइए सर्वप्रथम खोज करते हैं राम चरित मानस और तुलसी के कृतित्व से, जो भारतीय आचरण निर्माण एवं नैतिक मूल्यों का स्रोत है ।जहां ज...

नाटक-क्रान्ति तीर्थ

(पर्दे के पीछे से गीत के स्वर) मंच पर कलश लेकर कुछ लोगों का प्रवेश । (वंदे मातरम का स्वर) *-- शिव --अरे भैया  ये सब कौन हैं ?यह कलश लेकर क्या कर रहे हैं? *-- आयुषमान अग्रवाल- पता नहीं यार, किसी तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं शायद!! *--निकुंज -- पर इधर कौन सा तीर्थ है, जहां पर यात्रा करने जा रहे हैं? *--- शिव - ओ चलो किसी से पूछते हैं! *  आयुष्मान  -हां चलो पूछते हैं हां हां चलो पूछते हैं। * आयुष्मान  -नमस्ते भैया । आप सब लोग कहां जा रहे हैं? *-- विवेक -- वंदे मातरम भाई,  हम सब लोग क्रांति तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं। *--  आयुष्मान --यह कौन सा तीर्थ  है? *--- विवेक- यह वह तीर्थ है भैया, जिनकी वजह से हम आज खुली हवा में सांस ले रहे हैं! *- निकुंज दिवाकर-- मतलब? प्रियम दिवाकर- आओ हम तुम्हें समझाते हैं! पूरी जानकारी देते हैं।! सब लोग बैठ जाओ !आप लोग भी बैठ जाओ भाइयों! अक्षत-- मेरे हाथ में  आपको जो कलश दिखाई दे रहा है ना, पता है उसमें क्या है? *---- निकुंज-  पवित्र नदी का जल होगा? *--- पार्थ- नहीं जल तो नहीं, पवित्र मिट्टी अवश्य है, इस कलश में...