नाटक-क्रान्ति तीर्थ
(पर्दे के पीछे से गीत के स्वर)
मंच पर कलश लेकर कुछ लोगों का प्रवेश ।
(वंदे मातरम का स्वर)
*--शिव--अरे भैया ये सब कौन हैं ?यह कलश लेकर क्या कर रहे हैं?
*--आयुषमान अग्रवाल-पता नहीं यार, किसी तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं शायद!!
*--निकुंज--पर इधर कौन सा तीर्थ है, जहां पर यात्रा करने जा रहे हैं?
*---शिव -ओ चलो किसी से पूछते हैं!
* आयुष्मान -हां चलो पूछते हैं हां हां चलो पूछते हैं।
* आयुष्मान -नमस्ते भैया।
आप सब लोग कहां जा रहे हैं?
*--विवेक --वंदे मातरम भाई, हम सब लोग क्रांति तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं।
*-- आयुष्मान--यह कौन सा तीर्थ है?
*---विवेक-यह वह तीर्थ है भैया, जिनकी वजह से हम आज खुली हवा में सांस ले रहे हैं!
*- निकुंज दिवाकर--मतलब?
प्रियम दिवाकर-आओ हम तुम्हें समझाते हैं! पूरी जानकारी देते हैं।! सब लोग बैठ जाओ !आप लोग भी बैठ जाओ भाइयों!
अक्षत--मेरे हाथ में आपको जो कलश दिखाई दे रहा है ना, पता है उसमें क्या है?
*----निकुंज- पवित्र नदी का जल होगा?
*---पार्थ-नहीं जल तो नहीं, पवित्र मिट्टी अवश्य है, इस कलश में ।हमारे आगरा क्षेत्र के क्रांतिवीरों के जन्म स्थान की पावन धूल है। ऐसे क्रांतिवीर जिनका नाम इतिहास में दर्ज नहीं हो पाया, जिन्हें पहचान नहीं मिल पाई ,लेकिन जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दे दी। हम सब स्थान स्थान पर जाकर देशभक्तों के जन्म स्थलों से पावन रज इस कलश में एकत्रित कर रहे हैं ।
-प्रियम - इन क्रांति वीरों के परिवारों को सम्मानित भी किया जा रहा है, जिनके परिवारों से वह वीर थे। देशभर में यह आयोजन चल रहा है, जिसे क्रांति तीर्थ नाम दिया गया है।
*--निकुंज--क्या हमारे क्षेत्र में भी कोई क्रांतिवीर पैदा हुए?
*--विवेक-हां क्यों नहीं एक नहीं अनेक, आगरा की भूमि भी स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा रही है।
*--आर्यन- तो आप आगरा के किस क्षेत्र की मिट्टी लेने जा रहे हैं?
*----विवेक-इस समय हम आगरा के चमरोला के पास स्थित धीरपुरा जा रहे हैं।
*---आर्यन -हमारे क्षेत्र में कौन वीर थे ?हमें जानने की उत्सुकता है!
*---अक्षत राज--बताते हैं बताते हैं भाई, जरा धैर्य से सुनो ।
आगरा के धीरपुरा के दो वीरों का किस्सा सुनाता हूं। एक का नाम था सोबरन सिंह ,और दूसरे का नाम था महावीर सिंह ।
यह बात है सन 1931 की ।पूरे देश में देशभक्ति की मशाल जल रही थी क्रांतिवीरों के हृदय में देशभक्ति की ज्वाला धधक रही थी ।वह हर स्थिति में भारत को स्वतंत्र कराना चाहते थे ,और भारत का राष्ट्रीय ध्वज लहराना चाहते थे। 26 जनवरी 1931 को सोवरन,और महावीर,इन दोनों वीरों ने भी आगरा के किले पर अपना तिरंगा ध्वज लहराने की मन में ठानी ,और चल पड़े वेश बदलकर ।
सोबरन सिंह ने एक बूढ़े आदमी का भेष रखा ,डाकिया बनकर वह कड़ी पहरेदारी के बीच अंग्रेजों को, चकमा देते हुए किले में प्रवेश कर जाते हैं और अपनी कमर में दवे हुए तिरंगे को किले की प्राचीर पर फहराकर चुपचाप बाहर निकल जाते हैं। पूरे शासन प्रशासन में हड़कंप मच जाती है पर कोई उन दोनों वीरों का पता नहीं लगा पाता है।
पार्थ-यह वीर अंग्रेजों को धूल चटाने में चमरोला के बम कांड में भी शामिल थे जो घायल होने पर मरना स्वीकार तो करते हैं परंतु अंग्रेजी सिपाहियों के हाथ पानी पीना स्वीकार नहीं किया।
अक्षत- इन परम वीरों की जन्मभूम धीरपुरा से थोड़ी पावन रज लेने के लिए हम निकले हैं, जिसे संस्कृति मंत्रालय पहुंचाया जायेगा।इन वीरों का गौरवशाली इतिहास भी हम सब पढ़ सकेंगे,ऐसे प्रयास हैं।
* निकुंज -धन्यवाद भैया आपने इतनी अच्छी जानकारी दी।
अब हम सब अपने परिवार में यह कहानी सुनाएंगे ,
आयुष्मान -और धीरपुरा जाने के लिए ,उस पावन रज को माथे से लगाने के लिए परिवार का एक टूर ले जाएंगे।
*---विवेक- वाह बहुत बढ़िया योजना !
अब हम चलते हैं।
( गीत के स्वर (पर्दा गिरता है)
सरला भारद्वाज
हिंदी टीजीटी
सरस्वती विद्या मंदिर कमला नगर आगरा
20/5/2023
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