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    निर्देश- इस प्रश्न पत्र में अ, एवं ब, दो खंड हैं । छात्र दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर निर्देश अनुसार सुस्पष्ट लेख में लिखें। विषय -हिन्दी -कक्षा- नवम पूर्णांक- 80 समय 3घंटे                              खंड -अ वार्षिक परीक्षा - प्रश्न 1.अपठित गद्यांश .5अंक                                अपठित गद्यांश  यों तो मानव के इतिहास के आरंभ से ही इस कला का सूत्रपात हो गया था। लोग अपने कार्यों या विचारों के समर्थन के लिए गोष्ठियों या सभाओं का आयोजन किया करते थे। प्रचार के लिए भजन-कीर्तन मंडलियाँ भी बनाई जाती थीं। परंतु उनका क्षेत्र अधिकतर धार्मिक, दार्शनिक या भक्ति संबंधी होता था। वर्तमान विज्ञापन कला विशुद्ध व्यावसायिक कला है और आधुनिक व्यवसाय का एक अनिवार्य अंग है। विज्ञापन के लिए कई साधनों का उपयोग किया जाता है; जैसे-हैंडबिल, रेडियो और दीवार-पोस्टर, समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, बड़े-बड़े साइनबोर्ड और दूरदर्शन। जब से छपाई का प...
           निर्देश- इस प्रश्न पत्र में अ, एवं ब, दो खंड हैं । छात्र दोनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर निर्देश अनुसार सुस्पष्ट लेख में लिखें। विषय -हिन्दी -कक्षा- नवम पूर्णांक- 80 समय 3घंटे                              खंड -अ अर्द्ध वार्षिक परीक्षा - 1.अपठित गद्यांश .5अंक अपने देश की सीमाओं की दुश्मन से रक्षा करने के लिए मनुष्य सदैव सजग रहा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्र सीमित होता था तथा युद्ध धनुष-बाण, तलवार, भाले आदि द्वारा होता था, परंतु आज युद्धक्षेत्र सीमाबद्ध नहीं है। युद्ध में अंधविश्वास से हटकर1 वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है। आज विज्ञान ने लड़ाई को एक नया मोड़ दिया है। अब हाथी, ऊँट, घोड़ों का स्थान रेल, मोटरगाड़ियों और हवाई जहाजों ने ले लिया है। धनुष-बाण आदि का स्थान बंदूक व तोप की गोलियों और रॉकेट, मिसाइल, परमाणु तथा प्रक्षेपास्त्रों ने ले लिया है और उनके अनुसार राष्ट्र की सीमाओं के प्रहरियों में अंतर आया है।अब मानव प्रहरियों का स्थान बहुत हद तक यांत्रिक प्रहरियों ...

मुंतसिर ने लगाई अपनी ही लंका अब कूंइ कूंइ

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  https://youtu.be/-fLH-2X8Tf8 फिल्म समीक्षा भी सुनें- https://youtu.be/JBxO_O4KzR4 तैनें पूंछ की मूंछ लगाईं रे लल्ला! अब कूंइ कूंइ कूंइ!!! तोकूं नैक (तनिक)शरम नहीं आई रे लल्ला! अब कूइं कूंइ कूंइ !!! कैसी आदि पुरुष ये बनाई? पूरे जग में हंसी कराई!!! खुद अपनी ही लंका लगाई रे लल्ला! अब कूंइ कूंइ कूंइ!!!! इंटरव्यू में कैसी दयी रे सफाई? लगतु है तेरी मति बौराई!!! सब जनता रही गरमाई रे लल्ला! अब कूंइ कूंइ कूंइ!!! सब  तजि राम शरण में आइजा! तजि अभिमान राम गुन गाइजा! तेरे राम ही होयं सहाई रे लल्ला! अब कूंइ कूंइ कूंइ!!! सरला भारद्वाज 22/6/23

भक्त कवि और राज धर्म

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                  ‌                                           सरला भारद्वाज 30/5/23        भक्ति कालीन कवि तुलसीदास,तात्कालिक स्थितियां और राजधर्म विश्लेषण- साहित्य समाज का दर्पण है ऐसा हम सभी बचपन से पढ़ते कहते और सुनते आए हैं। यह उक्ति कितनी खरी उतरती है ?यह चिंतन का विषय है। दर्पण में वैसा ही दिखता है ,जैसा होता है। तो आज मुझे लगा क्यों ना भक्तिकालीन काव्य साहित्य के दर्पण में समाज का नैतिक, राजनीतिक, व्यवहारिक , वैज्ञानिक  पक्ष देखा जाए। विश्लेषण किया जाए कि आखिर भक्ति कालीन कवि कोरे भक्त ही थे, या भक्त होने के साथ-साथ एक सच्चे समाज सुधारक, लोक नायक, बेबाक वक्ता, राजनैतिक विश्लेषक भी थे। आइए सर्वप्रथम इन सभी बिंदुओं को एक ही ग्रंथ और कवि के रचना साहित्य में खोजने का प्रयास करते हैं। आइए सर्वप्रथम खोज करते हैं राम चरित मानस और तुलसी के कृतित्व से, जो भारतीय आचरण निर्माण एवं नैतिक मूल्यों का स्रोत है ।जहां ज...

नाटक-क्रान्ति तीर्थ

(पर्दे के पीछे से गीत के स्वर) मंच पर कलश लेकर कुछ लोगों का प्रवेश । (वंदे मातरम का स्वर) *-- शिव --अरे भैया  ये सब कौन हैं ?यह कलश लेकर क्या कर रहे हैं? *-- आयुषमान अग्रवाल- पता नहीं यार, किसी तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं शायद!! *--निकुंज -- पर इधर कौन सा तीर्थ है, जहां पर यात्रा करने जा रहे हैं? *--- शिव - ओ चलो किसी से पूछते हैं! *  आयुष्मान  -हां चलो पूछते हैं हां हां चलो पूछते हैं। * आयुष्मान  -नमस्ते भैया । आप सब लोग कहां जा रहे हैं? *-- विवेक -- वंदे मातरम भाई,  हम सब लोग क्रांति तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं। *--  आयुष्मान --यह कौन सा तीर्थ  है? *--- विवेक- यह वह तीर्थ है भैया, जिनकी वजह से हम आज खुली हवा में सांस ले रहे हैं! *- निकुंज दिवाकर-- मतलब? प्रियम दिवाकर- आओ हम तुम्हें समझाते हैं! पूरी जानकारी देते हैं।! सब लोग बैठ जाओ !आप लोग भी बैठ जाओ भाइयों! अक्षत-- मेरे हाथ में  आपको जो कलश दिखाई दे रहा है ना, पता है उसमें क्या है? *---- निकुंज-  पवित्र नदी का जल होगा? *--- पार्थ- नहीं जल तो नहीं, पवित्र मिट्टी अवश्य है, इस कलश में...

राधे राधे का गणित -लाभ और व्यवहार

 राधे राधे! राधे राधे शब्द की महिमा निराली है। ब्रह्म वैवर्त पुराण खण्ड चार के अनुसार -रा के उच्चारण मात्र से कृष्ण हृष्ट-पुष्ट होते हैं (प्रसन्न होतें हैं) और धा के उच्चारण मात्र से भक्त के पीछे दौड़े चले आते हैं। राधे में ही कृष्ण समाहित हैं।एक राधे के उच्चारण मात्र से दोनों का स्मरण हो जाता है।राधे का अर्थ है मुक्ति प्रदायिनी।बृज में एक उक्ति है--"राधे कहो राधे कहावो, दोनों को फल आप ही पावो "! राधे राधे कहने से राग द्वेष,छल कपट ,का कूड़ा मन से निकल जाता हैं। मुक्त होता है प्राणी विकारों से। अभिवादन का व्यवहार पक्ष - अभिवादन में हमने राधे राधे कहा फिर सामने वाले ने स्वीकारोक्ति में राधे राधे कहा पुनः हमने स्वीकारोक्ति की, इस प्रकार तीनों भुवनों की एक एक माला पूर्ण हुई।यदि सामने वाला पवित्र मन से स्वीकारोक्ति नहीं करता , ईर्ष्या या दंभ से भर स्वीकारोक्ति कहे, तब भी लाभ प्रथम व्यक्ति को ही जायेगा। अतः ऐसी स्थिति में ऐसे अवगुणी ं व्यक्ति के पास ठहरिए नहीं बल्कि मन ही मन पुनः राधे स्मरण कर आगे बढ़ जाना चाहिए।राधे नाम की सकारात्मक ऊर्जा की सुरसरि निरंतर बहती रहे,रुके नहीं । व्या...
 *विद्यालय का निर्धारित पाठ्यक्रम* - *संगीत एवं वंदना विभाग* सरस्वती विद्या मंदिर कमला नगर आगरा। *1-सम्पूर्ण वंदना 7वे संस्करण अनुसार*(6,7,8,की प्रत्येक कक्षा से एक टीम) 2.*वार्षिक गीत*(सभी कक्षाओं के लिए) 3.*भजन*-शिव,राम, कृष्ण, हनुमान,देवी,(सभी पारंपरिक एवं मौलिक) तथा कबीर मीरा ,तुलसी, सूरदास की एक एक रचना(6-8के छात्र) 4-*लोकगीत*- बृज के रसिया,भजन,देवीछन,होली, मल्हार, लांगुरिया।( मर्यादित शिक्षापरक संस्कृति का संरक्षण संवर्धन हेतु)(6-8) 6.*देशगीत* -2संघ गीत,2फिल्मी गीत, दो अन्य रचनाएं।7.*निर्धारित तालें* -कहरवा,खेमटा,दीपचंदी ,रूपक,भजन का ठेका, 8.*निर्धारित राग*- भैरव,भैरवी, यमन कल्याण, सारंग। प्राचार्य -    वंदना विभाग प्रमुख-    1- 2-                      ्