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स्ववृत लेखन

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ये svmके कुछ आदर्श विद्यार्थियों के लिखे स्ववृत    स्ववृत्त लेखन से अभिप्राय अपने विवरण से है। यह एक बना बनाया प्रारूप होता है जिसे विज्ञापन के प्रत्युत्तर में आवेदन पत्र के साथ भेजा जाता है। नौकरी के संदर्भ में स्ववृत्त की तुलना एक उम्मीदवार के दूत या प्रतिनिधि से की जाती है। अभिप्राय है कि स्ववृत्त का प्रारूप उसे प्रभावशाली बनाता है। एक अच्छा स्ववृत्त नियुक्तिकर्ता के मन में उम्मीदवार के प्रति अच्छी और सकारात्मक धारणा उत्पन्न करता है। नौकरी में सफलता के लिए योग्यता और व्यक्ति के साथ-साथ स्ववृत्त निर्माण की कला में निपुणता भी आवश्यक है। स्ववृत्त में किसी विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखकर सिलसिलेवार ढंग से सूचनाएं संकलित की जाती है। स्ववृत्त में दो पक्ष होते हैं:- पहला पक्ष वह व्यक्ति है जिसको केंद्र में रखकर सूचनाएं संकलित की जाती है। दूसरा पक्ष नियोजन का है। स्ववृत्त में ईमानदारी होनी चाहिए। किसी भी प्रकार के झूठे दावे या अतिशयोक्ति से बचना चाहिए। अपने व्यक्तित्व , ज्ञान और अनुभव के सबल पहलुओं पर जोर देना चाहिए। स्ववृत्त का आकार अति संक्षिप्त अथवा जरूरत से ज्यादा लंबा नहीं होन...

भगवान श्रीकृष्ण की सोलह कलाएं

 कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला अवतार माने गए हैं। सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता है। अवतारों में भगवान श्रीकृष्ण में ही यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी। इन कलाओं के नाम निम्नलिखित हैं। १. श्री धन संपदा : प्रथम कला धन संपदा नाम से जानी जाती हैं है। इस कला से युक्त व्यक्ति के पास अपार धन होता हैं और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। जिसके घर से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता, उस शक्ति से युक्त कला को प्रथम कला! श्री-धन संपदा के नाम से जाना जाता हैं। २. भू अचल संपत्ति : वह व्यक्ति जो पृथ्वी के राज भोगने की क्षमता रखता है; पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर जिसका अधिकार है तथा उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं वह कला! भू अचल संपत्ति कहलाती है। ३. कीर्ति यश प्रसिद्धि : जिस व्यक्ति का मान-सम्मान और यश की कीर्ति चारों ओर फैली हुई हो, लोग जिसके प्रति स्वतः ही श्रद्धा और विश्वास रखते हैं, वह कीर्ति यश प्रसिद्धि कला से संपन्न माने जाते हैं। ४. इला वाणी की सम्मोहकता : इस कला से संपन्न व्यक्ति मोहक वाणी से युक्त होता है; व्यक्ति की वाणी सुनकर ...

बातें तो होती हैं पर खुद ही खुद से

फ़साना आज फोन मे से यूँ ही एक नंबर चेक कर रहे थे हम। तभी तुम्हारे नाम  राशी पर मेरी उँगलियाँ रुक सी गयी.... दिल की धड़कनों के साथ तुम्हारा नंबर आज भी save है मेरी मेमोरी  में। कभी कभी देख कर दिल को सुकून से भरने देते हैं.... तुम्हारी तस्वीरों को तो delete कर दिया था मेंने  कमजोर कर रही थी मुझे , जकड़ रही थी तुम्हारी यादों मे...... दर्द बढ़ता ही जाता था तुम्हे तस्वीरों मे देखकर.... तुम्हारा पास ना होना बहुत कचोडता है मुझे...... कल ही मेंने तुम्हारा फ़ेसबुक टाइमलाइन चेक किया था... खुद से बचा कर तुम्हारे सारे कॉमेंट पढ़े थे मेंने... ना जाने कितनों ने तारीफ मे जाने क्या क्या लिख रखा था.... गुरूर सा हो रहा था अपनी पसंद पर और एक जलन सी भी हो रही थी... मगर तसस्ली हुई तुम आज भी किसी को भाव नही देते हो ठीक पहले की तरह..... शायद याद हो तुम्हे आज से 12 साल पहले हम रात के 11 बजे छत पर ठिठुरते हुऐ मेसेज करते थे तुम्हे ,कभी दायाँ हाथ पॉकेट मे कभी बायाँ हाथ..... बड़ी ठंड थी उन दिनो मे ठीक से टाइप भी नही कर पा रहा था हाथ...... तुम घर मे बेठे मुझे लेट रिप्लाइ दिया करते थे..... तुम्हारे सो जान...
                     अर्द्ध वार्षिक परीक्षा   कक्षा 6-                   विषय हिंदी                   प्रश्न पत्र 2022/23 पठित पुस्तक खंड 1.लघुत्तरीय प्रश्न -अंक- 5 क-चिड़िया आनंदपूर्वक क्या खाती है?   ख -चिड़िया के पंख के रंग कैसे हैं? ग-चिड़िया को खाने में क्या पसंद आता है? घ-नादान दोस्त’ पाठ के लेखक कौन हैं? ड.इतवार की सुबह लेखिका कौन सा काम करती थी? प्रश्न 2.विस्तृत उत्तरीय- 16अंक क-केशव ने श्यामा से चिथड़े, टोकरी और दाना-पानी मँगाकर कार्निस पर क्यों रखे थे? ख-अलबम चुराते समय राजप्पा किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा था? ग-बरछी’ ‘कपाण’ ‘कटारी’ उस ज़माने के हथियार थे। आजकल के हथियारों के नाम पता करो। घ-पाठ से पता करके लिखो कि लेखिका के चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्यों छेड़ते थे। ड.-लेखिका बचपन में इतवार की सुबह क्या-क्या काम करती थीं? च-चिड़िया ने स्वयं को संतोषी क्यों कहा? छ-"किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई" ,इ...

स्वतंत्रता दिवस

 सांस्कृतिक कार्यक्रम कार्ययोजना विभाजन  1.वंदना- छात्रों द्वारा  -प्रवीन जी(सिंथेसाइजर और तबले पर) 2. समूहगान- 67,8के छात्र -प्रवीन जी।-न सीमा का हमारे देश ने विस्तार चाहा है। 3.एकल गीत-अंश गुजराल -प्रवीन जी-  जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया, अब जाग उठो कमर कसो मंजिल की राह बुलाती है 4.हिन्दी भाषण -प्रवेंद्र जी । 5.अंग्रेजी भाषण- रजनी जी । 6.वीर गाथा काव्याभिनय - सरला जी (9छात्र) थाल सजाकर 7. नाटक-देश भक्ति- देवेन्द्र  कुमार जी ।(9-के छात्र) 8.देशभक्ति गीत नृत्य अभिनय - अंशुजी ।(छात्रों द्वारा) 9.सामाजिक एकता चेतना  बाल गीत अभिनय- एक जगह सब रहते थे , झगड़े थे पर उन में सौ  ( 6.छात्रों द्वारा)रुचि जी पूनम जी। 10-हिंदी संस्कृत संचलन गीत -नारायण जी ।(छात्रों द्वारा)  उठो जवान देश की वसुंधरा पुकारती, चलन्तु वीर सैनिका चलन्तु वीर सैनिका। 11.संचालन छात्रों द्वारा -मनोज जी। अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है- तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है। गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है। सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है। ज्ञा...

मैं धरती हूं (धरती की पुकार)

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                                          सरला भारद्वाज 30/5/2022-4 pm) मैं धरती हूं सुत!हर ज़ुल्म तेरा मैं सहती हूं।  सहन नहीं अब मुझसे होता, अपने हाथों जीवन खोकर , तू अपने कर्मों को रोता। भौतिकता की छोड़ चमक, सुख पायेगा, सच कहती हूं। मैं धरती हूं सुत!! सांसे  फूल रहीं अब मेरी, हे सुत! तनिक लगा ना देरी। संकट बजा रहा रणभेरी। मुझे बचाकर खुद को बचा ले, आर्तनाद से कहती हूं। मैं धरती हूं सुत!!!  मां हू मां सा आदर चाहूं, बंजर  से हरियाली चाहूं। मात्र तेरी खुशहाली चाहूं। हरियाली की ओढ चुनरिया, मुदित सदा मैं रहती हूं।  मैं धरती हूं सुत!!  करुणा रूपी सूख रहा जल, जाने तेरा कैसा हो कल? करता तू खुद ही से छल -बल। तू उजाड़ करता जाता ,  प्रति पल मैं ज्वर को सहती हूं। मैं धरती हूं सुत। जीवन के हित नीर बचा ले। पेड़ लगा ले नीड़ बचा ले। प्यारी नदियों के तीर बचा ले।  नेह नीर नयनों में ले ,  करूणिम गंगा बन बहती हूं। मैं धरती हूं सुत !!

आदि न अंत

    'अरे कन्हाई! कहाँसे आ गये तुम ?' 'क्यों सखी! मेरा आना अच्छा नहीं लगा तुझे ?"  'इस बातका क्या उत्तर दूँ ?" 'क्या बात है, बोली नहीं तू! चला जाऊँ ?'  'श्याम......' – मेरे मुखसे निकला, नयन भर आये और कंठ रुद्ध हो गया, भला इतना भोला भी कोई होता है ? 'मेरा साथ तुझे अच्छा नहीं लगता ?' मेरे समीप बैठते हुए वे बोले'—  मुझसे कुछ अपराध बन गया ?" मैंने 'नहीं' में सिर हिला दिया । अरी इतना बड़ा-सा सिर हिलायेगी पर दो अंगुलकी जीभ नहीं हिला सकती ?' 'क्या कहूँ ?' 'क्या कहनेको कुछ भी नहीं रह गया है ?"  'श्याम...... ।' 'श्याम-ही- श्याम कहेगी। मैं श्याम हूँ सखी ! पर तू तो उजरी है, फिर क्या चिंता है ! यहाँ क्यों बैठी है ? '  मैं बोली-'मन खो गया है' हँस पड़े कान्ह – ‘तो इस कुंजमें ढूँढ रही है उसे ? चल मैं ढूंढ़वा दूँ । उस दिन संदेश पहुँचा दिया उसका आभारी हूँ ।  ‘आभारको मैं क्या करूँगी! न ओढ़नेके काम आये, न बिछानेके ।'  ‘तो तेरा क्या प्रिय करूँ इला ?'   ‘मेरा प्रिय ! क्या कहूँ, कुछ कहते नही...