स्वतंत्रता दिवस

 सांस्कृतिक कार्यक्रम कार्ययोजना विभाजन 

1.वंदना- छात्रों द्वारा  -प्रवीन जी(सिंथेसाइजर और तबले पर)

2. समूहगान- 67,8के छात्र -प्रवीन जी।-न सीमा का हमारे देश ने विस्तार चाहा है।

3.एकल गीत-अंश गुजराल -प्रवीन जी-  जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया, अब जाग उठो कमर कसो मंजिल की राह बुलाती है

4.हिन्दी भाषण -प्रवेंद्र जी ।

5.अंग्रेजी भाषण- रजनी जी ।

6.वीर गाथा काव्याभिनय - सरला जी (9छात्र) थाल सजाकर

7. नाटक-देश भक्ति- देवेन्द्र  कुमार जी ।(9-के छात्र)

8.देशभक्ति गीत नृत्य अभिनय - अंशुजी ।(छात्रों द्वारा)

9.सामाजिक एकता चेतना  बाल गीत अभिनय- एक जगह सब रहते थे , झगड़े थे पर उन में सौ  ( 6.छात्रों द्वारा)रुचि जी पूनम जी।

10-हिंदी संस्कृत संचलन गीत -नारायण जी ।(छात्रों द्वारा) 

उठो जवान देश की वसुंधरा पुकारती, चलन्तु वीर सैनिका चलन्तु वीर सैनिका।

11.संचालन छात्रों द्वारा -मनोज जी।



अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है-

तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।

गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।

सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।

ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है-

सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।

एकल -गीत 

वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका निर्भ्रांत है।

प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।

अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है-

तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता बहती शांत है।

इसकी संस्कृति शुभ्र, न आक्षेपों से धूमिल कभी हुई-

अति उदात्त आदर्शों की निधियों से यह धनवान है।।


योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है।

जिस धरती की आध्यात्मिकता, का शुचि रूप ललाम है।

निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहें अब भी जहाँ-

कोटि-कोटि उस जन्मभूमि को श्रद्धावनत प्रणाम है।

यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता महनीय है-

ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष महान है।


है नमन उनको कि जो यशकाय को अमरत्व देकर

इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं

है नमन उस देहरी को जिस पर तुम खेले कन्हैया

घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये


हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाए

हमसे भिड़ते हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है

नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी

सिंह के दाँतों से गिनती सीखने वालों के आगे

शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है

जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी

उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है

है नमन उनको कि जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन

काल कौतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये हैं

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये हैं


लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे

विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है

राखियों की प्रतीक्षा, सिन्दूरदानों की व्यथाओं

देशहित प्रतिबद्ध यौवन के सपन तुमको नमन है

बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे

पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है

है नमन उनको कि जिनको काल पाकर हुआ पावन

शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये हैं

कंचनी तन, चन्दनी मन, आह, आँसू, प्यार, सपने

राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है

है नमन उनको कि जिनके सामने बौना हिमालय

जो धरा पर गिर पड़े पर आसमानी हो गये


 पूनम जी 


एक दो तीन चार और पाँच छह और सात आठ और नौ

एक जगह सब रहते थे, झगड़े थे पर उन में सौ

एक दो तीन चार और पाँच छह और सात आठ और नौ

एक जगह सब रहते थे, झगड़े थे पर उन में सौ

नौ ने कहा आठ क्या

छोटे का ठाठ क्या

आठ हंसा सात पे धत तेरी साख पै,

सात यह बोला छह से, तू हंसा कैसे?

अकड़ अकड़ के, बिगड़ बिगड़ के,

 झगड़ा झंझट किटकिट कर के ,

सब ने सब को फटकारा रह गया सब का मुँह तकता सब से छोटा एक बेचारा ।

रह गया सब का मुँह तकता सब से छोटा एक बेचारा।

एक दो तीन चार और पाँच छह और सात आठ और नौ

एक जगह सब रहते थे, झगड़े थे पर उन में सौ।

एक बिचारा तनहा-तनहा फिरता था आवारा सा

सिफ़र मिला उसे रस्ते में, बे-क़ीमत नाकारा सा

एक ने पूछा तुम हो कौन?

एक ने पूछा तुम हो कौन

 

उस ने कहा मैं सिर्फ़ सिफ़र,!

एक ने सोचा मैं भी क्या?

सबसे छोटा और नकारा,

मिल गए दोनों हो गए दस

चमका क़िस्मत का तारा

मिल गए दोनों हो गए दस

चमका क़िस्मत का तारा।

एक दो तीन चार और पाँच छह और सात आठ और नौ

एक जगह सब रहते थे, झगड़े थे पर उन में सौ


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