मैं धरती हूं (धरती की पुकार)

 

                                        सरला भारद्वाज 30/5/2022-4 pm)

मैं धरती हूं सुत!हर ज़ुल्म तेरा मैं सहती हूं।

 सहन नहीं अब मुझसे होता,

अपने हाथों जीवन खोकर ,

तू अपने कर्मों को रोता।

भौतिकता की छोड़ चमक, सुख पायेगा, सच कहती हूं।

मैं धरती हूं सुत!!

सांसे  फूल रहीं अब मेरी,

हे सुत! तनिक लगा ना देरी।

संकट बजा रहा रणभेरी।

मुझे बचाकर खुद को बचा ले, आर्तनाद से कहती हूं।

मैं धरती हूं सुत!!!

 मां हू मां सा आदर चाहूं,

बंजर  से हरियाली चाहूं।

मात्र तेरी खुशहाली चाहूं।

हरियाली की ओढ चुनरिया, मुदित सदा मैं रहती हूं।

 मैं धरती हूं सुत!! 

करुणा रूपी सूख रहा जल,

जाने तेरा कैसा हो कल?

करता तू खुद ही से छल -बल।

तू उजाड़ करता जाता ,  प्रति पल मैं ज्वर को सहती हूं।

मैं धरती हूं सुत।

जीवन के हित नीर बचा ले।

पेड़ लगा ले नीड़ बचा ले।

प्यारी नदियों के तीर बचा ले।

 नेह नीर नयनों में ले ,  करूणिम गंगा बन बहती हूं।

मैं धरती हूं सुत !!


Comments

  1. धरती को हराभरा बनाने का प्रयास सभी को करना होगा। बहुत। सुंदर कविता ‌है।

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