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Showing posts from February, 2021

जिंदगी की किताब लिख रही हूं।

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जिंदगी के हर लम्हा की किताब लिख रही हूं। वक्त के पन्नों पर दिल के लहू से, जज्बात लिख रही हूं। पथ के पाथेय से मिली, धूप और छांव लिख रही हूं। अच्छी हो या बुरी ,हर बात लिख रही हूं।  रह न जाए कोई जज्बात,हर   हिसाब लिख रही हूं। किसी ने दाद दी ,  क्या बकबास लिख रही हूं। मेरे मन की वो क्या जाने  , सदवृत्ति या उपहास लिख रही हूं? उजड़े हुए चमन की, उम्मीदे बहार लिख रही हूं। जज्बात के गुलों को ही तो बस,दिले गुलज़ार लिख रही हूं। जीवन है महासागर , थोड़े भाटे और ज्वार लिख रही हूं। पचा नहीं पा रहा कोई,  जीत को जीत और हार को हार लिख रही हूं। पढ भी न सके कोई, मन के  अन सुलझे  सवाल लिख रही हूं। समझता है क्यूं कोई , प्रतिकार का बबाल लिख रही हूं।  सरला भारद्वाज  दयालबाग आगरा २३/२/२०२१
 बिटिया तुम बड़ी जरूर होना...........  बिटिया तुम बड़ी जरूर होना अपने बड़े होने का फक्र करना पैनी नजरें अपनी आसमां पर और पैर मजबूती से ज़मीन पर रखना....  कुछ भेडि़ए बढता देख तुम्हें हो सकता हैं टिकाएं गिद्ध निगाहें वासना की दरिया में डूब, तुझे सताऐं बेटा, तू मूक दर्शक मत बने रहना..........  संस्कार परिवार ने दिए हैं सब धर्म के सबक सिखाए गए सब भीरू होना नहीं है इनका मतलब नारी हो मजबूर नहीं, याद रखना यह सबब. . .....  कोमलता ह्रदय में स्वभावगत है दैहिक सौंदर्य ईश्वरीय वरदान है तुमसे ही घर-परिवार की आन है, शान है भूलना मत, तुम्हारा मान है, सम्मान है..........  तो गुजर गए वो दिन जो कैद कर सके तुम्हें कुरीतियों की बेड़ियों में जो गला घोटे तुम्हारी सुनहरी आशाओं का जो मजबूर करें सुनने तुम्हें कसीदे जमाने के तुम पांचाली नहीं, जिसे मजबूरी में पड़े जीना......  कभी नहीं टूटने देना तुम अपने सपने सफलता के नए आयाम तुम्हें हैं गढ़ने  परिस्थितियों के परे इतिहास है रचने देखना, तुम नित गीत जीत के लगेगे गूंजने.........  जरा सुनना- जरा संभलना  अच्छे से सीखना...

समानाधिकरण और व्याधिकरण समुच्चय बोधक

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ग़ज़ल ग़मे गुलदस्ता 🌷 जगजीत सिंह, मेहंदी हसन,गुलाम अली

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     प्यारे ग़ज़ल ग़मे शौकीनों! हर ग़ज़ल की लिंक ग़ज़ल के साथ अटैच है ।   कापी करके  सुन सकतेेहैं।  मैं चाहता भी यही था (जगजीत सिंह)  https://youtu.be/ZfrXpz7lBGk  जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला हमने तो जब कलियाँ माँगी काँटों का हार मिला जाने वो ... खुशियों की मंज़िल ढूँढी तो ग़म की गर्द मिली चाहत के नग़मे चाहे तो आँहें सर्द मिली दिल के बोझ को दूना कर गया जो ग़मखार मिला हमने तो जब ... बिछड़ गया... बिछड़ गया हर साथी देकर पल दो पल का साथ किसको फ़ुरसत है जो थामे दीवानों का हाथ हमको अपना साया तक अक़सर बेज़ार मिला हमने तो जब ... इसको ही जीना कहते हैं तो यूँही जी लेंगे उफ़ न करेंगे लब सी लेंगे आँसू पी लेंगे ग़म से अब घबराना कैसा, ग़म सौ बार मिला हमने तो जब ... https://youtu.be/4boQt10qjpw हम तेरे शहर में आये हैं (गुलाम अली)                  हम तेरे शहर में आये हैं , मुसाफ़िर की तरह https://youtu.be/2VrdDgWjI8   हमको किसके ग़म ने(ग़ुलाम अली) https://youtu.be/DTUFbcg09to   मैंने लाख...

अकबरी लोटा

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बाज और सांप

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      उत्तर-  सांप सोच रहा था कि आसमान में अवश्य ही कोई अद्भुत चीज है जिसे पाने के लिए बाज इतना उत्साहित था। सांप उस छुपे राज़ को जानना चाहता था ।  अतः साप ने उड़ने की कोशिश की।   

टोपी

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तू समझता है कि बस औरत हूं मैं

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ममता हूं, प्रेम का मूर्त रूप हूं मैं, और तू समझे कि बस औरत हूं मैं। सरल रास्तों पै ही आता है ,मुझे चलना, और तुझे आता है, पग पग पर छलना। भूल भी न सकूं, माफ भी न कर पाऊं मैं, महान भी नही, बेचारी भी नहीं, बस इंसान हूं मैं । और तू समझे कि बस औरत हूं मैं।। घाव लेकर  भी तुझसे, तुझे सुखी देखना चाहती हूं, खुद को दर्द देकर, तेरा जहां आबाद देखना चाहती हूं। दिल है तेरा मुसाफ़िर खाना, मेरा मन तो एक मंदिर है, एक ही प्रतिमा के समक्ष, दीप जलाती हूं मैं। क्यों कि औरत हूं मै। ,और तू समझता है कि  बस औरत हूं मैं। दुनिया समझे कि महान था सिद्धार्थ, और मेरे प्रेम को समझे, जग मेरा स्वार्थ। जग क्या जाने , सिद्धार्थ तभी  तक है , जब तक यशोधरा हूं मैं। परित्यक्त यशोधरा होकर , तेरे यश की धरा हूं मैं। और तू समझे कि बस औरत हूं मैं। आसान है त्यागना जितना, निर्बहन उतना सरल नहीं, गटागट पी जायें जिसे,जीवन वो पेय तरल नहीं। सरल समझता है तू, यशोधरा होना, सब के लिए अपना, अस्तित्व खोना, दर्द के गहरे कुंए में पलकें भी न भिगोना। क्या बेजान कठपुतली हूं मैं। तू समझता है कि बस औरत हूं मैं। एक दिन के लिए ये औरत होना...