तू समझता है कि बस औरत हूं मैं
ममता हूं, प्रेम का मूर्त रूप हूं मैं,
और तू समझे कि बस औरत हूं मैं।
सरल रास्तों पै ही आता है ,मुझे चलना,
और तुझे आता है, पग पग पर छलना।
भूल भी न सकूं, माफ भी न कर पाऊं मैं,
महान भी नही, बेचारी भी नहीं, बस इंसान हूं मैं ।
और तू समझे कि बस औरत हूं मैं।।
घाव लेकर भी तुझसे, तुझे सुखी देखना चाहती हूं,
खुद को दर्द देकर, तेरा जहां आबाद देखना चाहती हूं।
दिल है तेरा मुसाफ़िर खाना, मेरा मन तो एक मंदिर है,
एक ही प्रतिमा के समक्ष, दीप जलाती हूं मैं।
क्यों कि औरत हूं मै।
,और तू समझता है कि बस औरत हूं मैं।
दुनिया समझे कि महान था सिद्धार्थ,
और मेरे प्रेम को समझे, जग मेरा स्वार्थ।
जग क्या जाने , सिद्धार्थ तभी तक है ,
जब तक यशोधरा हूं मैं।
परित्यक्त यशोधरा होकर , तेरे यश की धरा हूं मैं।
और तू समझे कि बस औरत हूं मैं।
आसान है त्यागना जितना, निर्बहन उतना सरल नहीं,
गटागट पी जायें जिसे,जीवन वो पेय तरल नहीं।
सरल समझता है तू, यशोधरा होना,
सब के लिए अपना, अस्तित्व खोना,
दर्द के गहरे कुंए में पलकें भी न भिगोना।
क्या बेजान कठपुतली हूं मैं।
तू समझता है कि बस औरत हूं मैं।
एक दिन के लिए ये औरत होना ,तू उधार ले ले।
अमृत बनाम विष का, तू भी उपहार ले ले।
मां, ,बहन , बेटी की , कल्पना से परे,
बस औरत होने का विचार ले ले।
तब पौरुष को ललकार कर कहना,
कि तेरे हाथो का खिलौना हूं मैं ।
तू समझता है कि बस औरत हूं मैं।
सरला भारद्वाज
17-2-21
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