जिंदगी की किताब लिख रही हूं।
जिंदगी के हर लम्हा की किताब लिख रही हूं।
वक्त के पन्नों पर दिल के लहू से, जज्बात लिख रही हूं।
पथ के पाथेय से मिली, धूप और छांव लिख रही हूं।
अच्छी हो या बुरी ,हर बात लिख रही हूं।
रह न जाए कोई जज्बात,हर हिसाब लिख रही हूं।
किसी ने दाद दी , क्या बकबास लिख रही हूं।
मेरे मन की वो क्या जाने , सदवृत्ति या उपहास लिख रही हूं?
उजड़े हुए चमन की, उम्मीदे बहार लिख रही हूं।
जज्बात के गुलों को ही तो बस,दिले गुलज़ार लिख रही हूं।
जीवन है महासागर , थोड़े भाटे और ज्वार लिख रही हूं।
पचा नहीं पा रहा कोई,
जीत को जीत और हार को हार लिख रही हूं।
पढ भी न सके कोई, मन के अन सुलझे सवाल लिख रही हूं।
समझता है क्यूं कोई , प्रतिकार का बबाल लिख रही हूं।
सरला भारद्वाज
दयालबाग आगरा
२३/२/२०२१
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