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नेहा राठौर को जबाब

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 काबा काबा मति कर छोरी,यूपी के इतिहास तैं। तब न पढी तौ अब पढि लै तू , थोड़ो ध्यान लगाइ कें।  यूपी की उर्वर माटी में , गंगा जमुना बहती है, राम कृष्ण की पावन गाथा ,पूरी दुनिया कहती है।  तोय काबा ,में कहा मिलेगौ, पढि लै वेद पुरान तैं। तब न पढी तौ अब पढि लै तू ,थोडो ध्यान लगाइ कैं। संगम तट ये समझावत है‌ , समरसता में है शांति। सत्तावन में फन को कुचलने ,मेरठ ते उठी  क्रांति। यूपी से झांसी की रानी , लड़ गयी अपनी आन पै। केशरिया रंग बालौ बाबा, ठन गयौ अपनी ठान पै। जा माटी ने वीर दिये हैं,गरव ते सीना तान कैं। तब न पढी तौ अब पढि लै तू , थोड़ो ध्यान लगाइ कैं। वाराणसी की छटा है न्यारी,दुलहिन सी अयोध्या प्यारी, यूपी में  अनुशासन है, बडौ भलौ प्रशासन है। हम हैं ऊंचे रिश्ते वाले,  तुम तौ  बिहारी  साली साले। भूलि गयी का? सीता मैयाा, ब्याही अपने राम तैं। तब न पढी तौ अब पढि लै तू , थोड़ो ध्यान लगाइ कैं। जो तू होती राम राज में ,दहेज केस लगाती तू। कौशल्या और दशरथ को ही ,उल्टा वन भिजवाती तू। बन के मंथरा राज कुंवर को आपस में लड़वाती तू।    एक क्षत्र  व...

संगीत सरिता प्रवाह --अंक तीन -वाद्य यंत्र

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                    संगीत सरिता प्रवाह --अंक तीन-  वाद्य यंत्र गीत संगीत को सुमधुर बनाने के लिए अनेक  वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। आज की श्रंखला में आइये जानते हैं उनके विषय में। वाद्य यंत्रों के प्रकार  - संगीत वाद्य यंत्रो की अगर हम बात करें तो इनकी सूची काफी लम्बी है । कई – कई तरह के भारतीय संगीत वाद्ययंत्र हैं। भरत मुनि ने इस संदर्भ में विशद वर्णन किया है। वाद्य यंत्रों की चार श्रेणियां हैं- 1. तंतु वाद्य / तत (with frets) वाद्य वितत (without frets) वाद्य 2. सुषिर वाद्य ( Wind Instrument ) / AEROPHONES  3. अवनद्ध वाद्य ( CHARMAJ / DRUMS / MEMBROPHONES  4. घन वाद्य ( IDIOPHONES ) 1. तंतु वाद्य /तत  वाद्य यंत्र- प्रमुख वाद्ययंत्रों के प्रकार तथा वर्गीकरण की श्रेणी तंतु वाद्य की है । वास्तव में तत शब्द तांत का तत्सम है जिसका अर्थ है तार वाले उपकरण। इनमें कुछ यंत्र नाखून या मिराज की सहायता से बजाये जाते हैं जैसे वीणा सितार , गिटार, और कुछ गज ( घोड़े की पूंछ के बालों का धनुष) की सहायता से जैसे सार...

सूरदास के पद कक्षा 8

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  सूरदास के पद कक्षा  8 “ सूरदास के पद ”  के रचयिता /   कवि सूरदासजी हैं।     सूरदास के पद पाठ का सार - सूरदास जी कृष्ण के अनन्य उपासक थे। और भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि भी माने जाते हैं। उनकी अधिकतर कविताएं कृष्ण जी की अजब गजब बाल लीलाओं पर आधारित हैं। सूरदास जी ने कृष्ण का अपनी वात्सल्यमयी माता यशोदा से रूठने-मनाने व बाल सखाओं संग खेलने तथा गोपियों के साथ उनकी मस्ती भरी शरारतें और फिर गोपियों का माता यशोदा से शिकायतें लेकर आने के बारे में बड़ा ही खूबसूरत वर्णन किया हैं। सूरदास जी के पदों में वात्सल्य रस की प्रधानता देखने को मिलती हैं। “ सूरदास के पद ”  पाठ के   पहले पद में कृष्ण शिकायत भरे लिहाज में अपनी माता से कहते हैं कि वो उनको रोज दूध पिलाती हैं। उनके बालों की खूब देखभाल करती हैं। रोज धोकर उनको सवाँरती भी हैं। फिर भी उनकी चोटी (सिर के बाल) उनके बड़े भाई बलराम की तरह लंबे क्यों नहीं हो रहे   हैं। और दूसरे पद में एक गोपी माँ यशोदा से कृष्ण की शिकायत करते हुए कहती हैं कि वह प्रतिदिन उसके घर में चुपचाप आकर सारा मक्खन चोरी करके खा जाता हैं।...

भारत के संगीत रत्न

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                      संगीत सरिता प्रवाह अंक -दो होता होगा कोई महान सम्राट अकबर। रहते होंगे उस के दरबार में कोई नवरत्न ।परंतु हमें उन रत्नों में से एक रत्न याद है। संगीत रत्न तानसेन ।संगीत के क्षेत्र में रत्नों की यह परंपरा आज भी कायम है ।भारत   माता  की    उर्वर कोख  से ऐसे अनेक रत्न उत्पन्न होते रहे हैं ,और होते रहेंगे।  आज के अमृत महोत्सव की संगीत सरिता प्रवाह की द्वितीय श्रृंखला में आज का विषय है-" संगीत के क्षेत्र में भारत रत्न "।एक ऐसा सर्वोच्च सम्मान जिसके नाम मात्र से   चमक आ जाती है चेहरे पर। हर वर्ष अधिकतम 3 व्यक्तियों को इस सम्मान से नवाजा जा सकता है तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति इन्हें मनोनीत करता है। इस पुरस्कार के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित और पीपल के पत्ते के आकार का पदक प्रदान किया जाता है। प्राप्तकर्ता को इसके साथ किसी प्रकार का धन नहीं दिया जाता। श्रेष्ठता के भारतीय क्रम में, भारत रत्न विजेता सातवें क्रम में आता है लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद...

संगीत सरिता प्रवाह - प्रथम अंक

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प्रथम अंक         यदि हमारे पास वाणी न होती ,शब्द न होते , यह दुनियां गूंगी और बहरी होती तो कैसी लगती? यह सोच-सोच कर दिल बैठा जाता है ।वाणी रूपी वरदान हर एक जीव जंतु शरीर धारी और प्रकृति के कण-कण में विद्यमान है।या यू कहें कि यह प्रकृति जो कभी गूंगी बहरी और रंग हीन थी इसमें मधुर गूंज,और सुंदर रंग भरने का कार्य  वाणी द्वारा ही किया गया ।वाणी सरस्वती को भी कहा जाता है ।सरस्वती के प्रकट होते ही सृष्टि में चेतना का संचार हो गया। ध्वनियों का संचार हो गया और यह सृष्टि सजीव उठी। कल कल निनाद कर उठीं नदियां, चहचहा उठीं चिड़ियां। त्रिविध समीर सरसरा उठी,महक उठी नव कलियां। दैदीप्यमान हो उठा जग सब, वाणी के पदार्पण से।  पूजन अर्चन  ना जाने सरला , मां हो  प्रसन्न भावार्पण से। विचारणीय है कि मां सरस्वती ,विद्या और संगीत की , सभी कलाओं की अधिष्ठात्री   हैं ।आखिर उनसे यह संगीत विद्या भूलोक तक कैसे पहुंची? यह प्रश्न अक्सर हमारे मन मस्तिष्क में उठते हैं। आइए जानते हैं स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक तक की संगीत सरिता  की कहानी।  विभिन्नन प्रसिद्ध ग्...

सामाजिक समरसता का महा पर्व संक्रांति के विभिन्न पक्ष

  सामाजिक समरसता के महा पर्व संक्रांति के विभिन्न पक्ष  सामाजिक समरसता का त्योहार है मकर संक्रांति । जिसका भारत में विशेष रूप से सामाजिक , आध्यात्मिक, नैतिक , व्यावहारिक और वैज्ञानिक महत्व है। इससे जुड़ी परम्परा और खान पान  के पीछे जुड़े हैं व्यावहारिक और वैज्ञानिक पक्ष। आइये इसका क्रमशः अध्ययन करते हैं। और इसे सरल रूप में समझने हेतु अंत में पढ सकते हैं बाल नाटक।जिसकी लिंक अंत में इसी लेख में मिलेगी। कब और क्यों और कैसे  मकर संक्रांति का त्योहार, सूर्य के उत्तरायन होने पर मनाया जाता है। इस पर्व की विशेष बात यह है कि यह अन्य त्योहारों की तरह अलग-अलग तारीखों पर नहीं, बल्कि हर साल 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, जब सूर्य उत्तरायन होकर मकर रेखा से गुजरता है। यह पर्व हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में शामिल है।  कभी-कभी यह एक दिन पहले या बाद में यानि 13 या 15 जनवरी को भी मनाया जाता है लेकिन ऐसा कम ही होता है। मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है। जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है, वह दिन 14 जनवरी ही होता है, अत: इस दिन मकर संक्रांति का तेह...

जहां पहिया है

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  प्रश्न-अभ्यास Question 1: “…उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते है..” आपके विचार से लेखक ‘जंजीरों’ द्वारा किन समस्याओं की ओर इशारा कर रहा है? Solution: लेखक जंजीरों द्वारा रूढ़िवादी प्रथाओं की ओर इशारा कर रहा है। Question 2: “…उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकडे हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते है..” क्या आप लेखक की इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण भी बताइए। Solution: “…उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकडे हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते है.. लेखक के इस कथन से हम सहमत हैं क्योंकि मनुष्य स्वभावानुसार अधिक समय तक बंधनों में नहीं रह सकते। समाज द्वारा बनाई गई रूढ़ियाँ अपनी सीमाओं को लाँघने लगे तो समाज में इसके विरूद्ध एक क्रांति अवश्य जन्म लेती है। जो इन रूढ़ियों के बंधनों को तोड़ डालती है। ठीक वैसे ही तमिलनाडु के पुडुकोट्टई गाँव में हुआ है। महिलाओं ने अपनी स्वाधीनता व आज़ादी के लिए साइकिल चलाना आरंभ किया और वह आत्मनिर्भर हो गई। “ Question 3: ‘साइकिल आंदोलन’ से पुडुकोट्टई की महिलाओं के जीवन में कौन-कौन से बदलाव आए...