भारत के संगीत रत्न

 

                    संगीत सरिता प्रवाह अंक -दो



होता होगा कोई महान सम्राट अकबर। रहते होंगे उस के दरबार में कोई नवरत्न ।परंतु हमें उन रत्नों में से एक रत्न याद है। संगीत रत्न तानसेन ।संगीत के क्षेत्र में रत्नों की यह परंपरा आज भी कायम है ।भारत   माता  की    उर्वर कोख  से ऐसे अनेक रत्न उत्पन्न होते रहे हैं ,और होते रहेंगे।

 आज के अमृत महोत्सव की संगीत सरिता प्रवाह की द्वितीय श्रृंखला में आज का विषय है-" संगीत के क्षेत्र में भारत रत्न "।एक ऐसा सर्वोच्च सम्मान जिसके नाम मात्र से   चमक आ जाती है चेहरे पर।


हर वर्ष अधिकतम 3 व्यक्तियों को इस सम्मान से नवाजा जा सकता है तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति इन्हें मनोनीत करता है। इस पुरस्कार के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित और पीपल के पत्ते के आकार का पदक प्रदान किया जाता है। प्राप्तकर्ता को इसके साथ किसी प्रकार का धन नहीं दिया जाता।


श्रेष्ठता के भारतीय क्रम में, भारत रत्न विजेता सातवें क्रम में आता है लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 के अनुसार भारत रत्न प्राप्तकर्ता कभी भी अपने नाम के साथ इसको उपनाम के रुप में नहीं जोड़ सकता।


1954 से, देश के 44 व्यक्तियों को इस गौरवपूर्णं और सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा जा चुका है। 


आइये जानते हैं कि संगीत के क्षेत्र में किस किस को मिला यह  सर्वोच्च भारतीय सम्मान।



 एम.एस.शुभ्भालक्ष्मी

(1998 में भारत रत्न से समानित)





मदुरई में 16 सितंबर 1916 को जन्मी एम.एस.शुभ्भालक्ष्मी एम.एस. के रुप में प्रसिद्ध थी, वो प्रसिद्ध कर्नाटकी गायकों में से एक थी।


जब उनका पहला अलबम जारी हुआ तो उनकी उम्र मात्र 10 वर्ष थी। सीमांगुड़ी श्रीनिवासन अय्यर के निर्देशन में उन्होंने कर्नाटकी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली।


इनका कन्नड़ शास्त्रीय संगीत पर नियंत्रण था लेकिन इसके अलावा वो कई सारी भाषाओं जैसे तमिल, संस्कृत, गुजराती, मलयालम, हिन्दी, तेलुगु, बंगाली आदि में भी पारंगत थी। अद्भुत गायिका होने के अलावा वो एक एक्टर भी थी। इन्होंने कई सारी फिल्मों में अभिनय किया जैसे मीर और शिवासदन, सावित्री। इन्होंने दूरस्थ पूर्व में भी जैसे न्यूयार्क, कैनेडा, लंदन, मॉस्को आदि में भी अपनी प्रस्तुति दी।


शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में इन्होंने अद्भुत योगदान दिया; शुप्रभातम्, कुरई ऑनरम् लई, भजगोविन्दम, हनुमान चालीसा, विष्णु षहसरानमम आदि इनके कार्य है। इनका सबसे प्रसिद्ध और अद्भुत गीत रचना ‘वैष्णव जन’ तो जिसने सभी श्रोताओं की आँखों में आँसु ला दिया। 1988 में एम.एस को भारत रत्न से सम्मानित किया गया साथ ही ये पहली संगीतज्ञ थी जिन्हें ये सम्मान मिला। 11 दिसंबर 2004 को चेन्नई में इनका देहांत हो गया।



 पंडित रवि शंकर

(1999 में भारत रत्न से सम्मानित)





वाराणसी में 7 अप्रैल 1920 में रविशंकर का जन्म हुआ था। 20वीं सदी के दूसरे आधे वर्षों में वो सबसे बेहतरीन संगीतज्ञों में से एक थे और प्रसिद्ध सितार वादक के रुप में जाने जाते थे। इन्होंने मशहूर संगीतज्ञ उस्ताद अलाउद्दीन खान के निर्देशन में सितार सीखा।


इनके पास सितार बजाने की विशिष्ट शैली थी जो कि आधुनिक संगीत से थी। इनके प्रदर्शन की शुरुआत गंभीर और धीमे द्रुपद श्रेणी के द्वारा प्रभावित जॉर, सोलो अलाप तथा सितार वादन से होती थी। 1949 से 1956, रविशंकर ने ऑल इंडिया रेडियो (नयी दिल्ली) में एक संगीत निर्देशक, संगीतकार के रुप में कार्य किया। सम्मान के लिये इन्हें पंडित के उपाधि से नवाजा गया।


पंडित रविशंकर ने पूरे यूरोप और अमेरिका में 1956 में भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दी और इसे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध किया। इन्होंने महान वॉयलिनिस्ट येहुदी मेनुहिन और बीटल्स गिटारिस्ट जॉर्ज हैरिसन के साथ कई प्रस्तुतियाँ दी। शंकर जी ने सितार और ऑरकेस्ट्रा के लिये कई संगीत दिये और पूरे 1970 और 1980 के दौरान लगातार विश्व भ्रमण करते रहे। सितार वादन में अपने प्रतिभा की वजह से भारत और शास्त्रीय संगीत को पंडित रविशंकर ने गौरावान्वित किया। अपने अद्भुत और आत्मीय संगीत के लिये इन्हें तीन बार संगीत का सबसे प्रख्यात अवार्ड ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।


इसलिये, देश की असाधारण सेवा के लिये इनको मान और सम्मान देने के लिये 1999 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया। वो अपनी मृत्यु 11 दिसंबर 2012 तक सितार वादन करते रहे। 





लता मंगेशकर

(2001 में भारत रत्न से सम्मानित)


 



लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को हुआ था। इन्होंने अपनी संगीत की शिक्षा (हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत) की शुरुआत उस्ताद अमानत अली से की। ये एक किंवदंती भारतीय गायिका है और सामयिक संगीतकार भी है। ये भारत की सम्मानिय प्लेबैक गायिकाओं में से एक है। लता जी ने अपने गायिकी जीवन की शुरुआत 1942 से की जो सात दशक चला। इन्होंने भारतीय सिनेमा में 36 क्षेत्रीय भाषाओं में हजारों गाने गाये साथ ही विदेशी भाषाओं में भी अपनी मधुर आवाज दी।


1950 से इन्होंने भारतीय सिनेमा के सबसे अच्छे संगीतकारों के साथ काम करना शुरु कर दिया जैसे अनिल विश्वास, नौशाद अली, शंकर जयकिशन, पंडित अमरनाथ हुसैन, एसडी बर्मन, लाल भगत राम और बहुत सारे। इन्होंने विभिन्न राग आधारित गाने गाये। भारत और विदेश में 1970 से आज तक जरुरतमंद लोगों के लिये लता जी ने कई संगीत समारोह में मुफ्त में गाया। 1974 में इन्होंने अपना पहला विदेशी संगीत कार्यक्रम लंदन के रॉयल एल्बर्ट हॉल में किया।


सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा रिकार्डेड कलाकार के रुप में लता मंगेशकर को गिनीज़ बुक ऑफ रिकार्डस में सूचीबद्ध किया। इन्होंने 1948 से 1974 तक 20 भारतीय भाषाओं में लगभग 25 हजार अकेले, कोरस तथा डूएट गाने गाये।


संगीत में दिये अपने उत्कृष्ट योगदान के लता जी ने कई अवार्ड और सम्मान से नवाजा गया जैसे पदम विभूषण (1999), पदम् भूषण (1969), महाराष्ट्रा भूषण अवार्ड (1997), दादा साहेब फाल्के अवार्ड (1989), एनटीआर राष्ट्रीय अवार्ड (1999), एएनआर अवार्ड (2009) और अंतत: 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। एमएस शुभालक्ष्मी के बाद लता जी दूसरी गायिका थी जिन्हें इस सम्मान से पुरस्कृत किया गया।   


उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ

(2001 में भारत रत्न से सम्मानित)





21 मार्च 1916 को बिहार के डुमराँव में उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म हुआ था। इनका वास्तविकनाम कमरुद्दीन था बाद में इनका नाम बिस्मिल्ला खाँ पड़ गया। इनके मार्गदशर्क अली बक्क्ष ‘विलायतु’, थे जो एक प्रसिद्ध शहनाई वादक थे। बेहद कम समय में बिस्मिल्ला शहनाई के पूर्णतावादी बन गये। इन्होंने अपना पूरा जीवन संगीत के लिये दे दिया। पूरी दुनिया भर में खूब प्रसिद्धि पाने के बावजूद वो हमेशा अपनी जमींन से जुड़े रहे।


1937 में कोलकाता में ऑल इंडिया म्यूजिक कॉनफेरेंस के संगीत कार्यक्रम में पहली बार शहनाई को चर्चा मिली। आजादी के बाद के युग में भी शहनाई पर इनकी सत्ता बनी रही। अपनी प्रस्तुति से इन्होंने शास्त्रीय संगीत को जीवीत रखा। ये हिन्दू-मुस्लिम एकता पर विश्वास रखते थे और अपने संगीत के द्वारा इन्होंने भाईचारे का संदेश दिया। ये कहते थे कि मात्र संगीत ही इंसानों को जोड़ सकता है क्योंकि संगीत की कोई जाति नहीं होती।


1947 में भारत की आजादी के एक शाम पूर्व बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी शहनाई से भारत के लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इन्होंने दिल्ली के लाल किले पर भी प्रस्तुति दी। उस वर्ष से ये प्रधानमंत्री के भाषण के बाद नियमानुसार हर साल 15 अगस्त पर शहनाई वादन करते थे।


इन्होंने कई देशों में अपनी प्रस्तुति दी और इनकी विशाल प्रशंसक संख्या है। खाँ साहब ने अमेरिका, जापान, बांग्लादेश, इराक, अफगानिस्तान, कैनेडा, यूरोप, दक्षिणी अफ्रिका और हाँग-काँग से सजीव प्रसारण देने की शुरुआत की। उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ बिना किसी संशय के भारत के रत्न थे। इन्हें भारत के सभी उच्च नागरिक सम्मानों से नवाजा गया-पदम् भूषण, पदम् श्री और पदम् विभूषण। 2001 मे इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 21 अगस्त 2006 में वाराणसी में इनका देहांत हो गया। 




 पंडित भीमसेन जोशी

(2009 में भारत रत्न से सम्मानित )


भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी 1922 को कर्नाटक में हुआ। बहुत छोटी उम्र से ही ये संगीत के बहुत बड़े प्रेमी बन गये थे और 11 वर्ष की उम्र में ही गुरु की खोज में अपना घर छोड़ दिया। हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत के एक रुप किराना धारा के ये उत्तराधिकारी है। ये ‘ख्याल’ संगीत के लिये प्रसिद्ध है। हिन्दूस्तानी गायकों में ये एक किंवदंती है। हमलोग इन्हें जीवित किंवदंती कह सकते है और जिन्होंने पूरी दुनिया में सच्चे प्रशंसक कमाये है। ये ख्याल की व्याख्या दक्ष तरीके से करते थे और हिन्दी और मराठी में बहुत से भजन गाये।


इनकी सबसे यादगार प्रस्तुति जो आज भी हर एक के द्वारा याद किया जाता है ‘मिले लुर मेरा तुम्हारा’, था। इनकी स्वर्णिम आवाज ने लोगों को एक साथ आने के लिये अपील किया।


1972 में इन्हें भी पदम् श्री, 1985 में पदम् भूषण और 1976 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड नवाजा गया। हिन्दूस्तानी शास्त्रीय संगीत को समृद्ध करने के लिये 2009 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।




भूपेन हजारिका

(2019 में भारत रत्न से सम्मानित)





भूपेन हजारिका का जन्म 8 दिसंबर को 1926 में असम के तिनसुकिया जिले के सदिया (वर्तमान) में हुआ था। उनके पिता का नाम नीलकांत एवं माता का नाम शांतिप्रिया था। बचपन से ही उन्हें संगीत में काफी रुची थी और इसका श्रेय उनकी माता को जाता है, जिन्होंने बचपन से ही उन्हें पारंपरिक संगीत की शिक्षा दी। उन्होंने सन् 1931 में असमिया सिनेमा की फिल्म इंद्रमालती में पहली बार संगीत दिया। एक निपुण संगीतज्ञ होने के साथ ही वह तेजतर्रार छात्र भी थे। उन्होंने मात्र 13 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी, जो उस समय में एक विलक्षण बात थी। बी.ए. और ए.म. जैसी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने न्यूयार्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री भी प्राप्त की।


संगीत जगत में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें विभिन्न प्रकार से सम्मानों से नवाजा गया। वर्ष 1992 में उन्हें फिल्म जगत के सबसे बड़े सम्मान यानी दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इसके साथ ही वर्ष 2009 में उन्हें असोम रत्न तथा पद्म भूषण जैसे सम्मानों से भी नवाजा गया। अपने जीवन में उन्होंने संगीत जगत की बुलंदियों को छुआ और असमिया संगीत के उन्नति में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। 5 नवंबर 2011 को भारत के इस महान संगीतज्ञ का 85 वर्ष की आयु में देंहात हो गया। उनके इन्हीं महत्वपूर्ण कार्यों को देखते हुए भारत के 70वें गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी 2019 को मरणोपरांत उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया। 

साभार- संगीत की दुनिया से 

सरला भारद्वाज




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