संगीत सरिता प्रवाह --अंक तीन -वाद्य यंत्र

                   संगीत सरिता प्रवाह --अंक तीन-  वाद्य यंत्र



गीत संगीत को सुमधुर बनाने के लिए अनेक  वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। आज की श्रंखला में आइये जानते हैं उनके विषय में।

वाद्य यंत्रों के प्रकार  -

संगीत वाद्य यंत्रो की अगर हम बात करें तो इनकी सूची काफी लम्बी है । कई – कई तरह के भारतीय संगीत वाद्ययंत्र हैं। भरत मुनि ने इस संदर्भ में विशद वर्णन किया है।


वाद्य यंत्रों की चार श्रेणियां हैं-


1. तंतु वाद्य / तत (with frets) वाद्य

वितत (without frets) वाद्य

2. सुषिर वाद्य ( Wind Instrument ) / AEROPHONES 

3. अवनद्ध वाद्य ( CHARMAJ / DRUMS / MEMBROPHONES 

4. घन वाद्य ( IDIOPHONES )


1. तंतु वाद्य /तत  वाद्य यंत्र- प्रमुख वाद्ययंत्रों के प्रकार तथा वर्गीकरण की श्रेणी तंतु वाद्य की है । वास्तव में तत शब्द तांत का तत्सम है जिसका अर्थ है तार वाले उपकरण।

इनमें कुछ यंत्र नाखून या मिराज की सहायता से बजाये जाते हैं जैसे वीणा सितार , गिटार, और कुछ गज ( घोड़े की पूंछ के बालों का धनुष) की सहायता से जैसे सारंगी चिंकारा, वायलिन।



तंतु वाद्य का एक और प्रकार है – वितत वाद्य


वितत (without frets) वाद्य

वितत वाद्य – ये वैसे वाद्य यंत्र हैं जिसमे frets नहीं होते हैं । जैसे – सरोद, संतूर,दिलरुबा।


संतूर – जोकि एक तत वाद्य अथवा तार वाद्य यंत्र है, जिसे चम्मच के आकार के हथौड़े से प्रहार करके बजाया जाता है।


2. सुषिर वाद्य ( Wind Instrument ) / AEROPHONES 

ऐसे वाद्य यंत्र जो फूंक कर बजाये जाते हैं वे सुषिर कहलाते हैं। जैसे बांसुरी,शहनाई, शंख इसके अलावा अनेक विदेशी यंत्र।

कुछ समय बाद सामाजिक कार्य के दृष्टिकोण से एक नई श्रेणी सामने आई । इसमें ध्वनि का उत्पादन करने के लिए यंत्रवत् हवा को उड़ाने के लिए धौंकनी का इस्तेमाल किया गया । इसका एक उदहारण है – हारमोनियम ।


3. अवनद्ध वाद्य / चरमज वाद्य

चमड़ से निर्मित वाद्य यंत्र इस सूची में शामिल हैं।

जिन्हें पाश्चात्य संगीत के अनुसार drums/membrophones कहा जाता है । 

इस प्रकार के वाद्य यन्त्र में जानवरों की त्वचा की एक परत होती है जो ध्वनि उत्पादन में मदद करती है। यह हथेलियों और अंगुलियों का उपयोग करके बजाया जाता है । उदहारण – कर्णाटिक वाद्य यंत्र जैसे मृदंगम और खंजीरा,ढोलक । हमारे पास और भी हिंदुस्तानी वाद्ययंत्र उदहारण के रूप में हैं । जैसे – पखावज और तबला । 

कुछ ऐसे भी वाद्य यन्त्र हैं जिसमे वाद्ययंत्र की त्वचा को छड़ी या हथौड़े के    प्रहार से बजाया जाता है । जैसे – ढ़ोल और चोघड़ा(Dhol और Chaughada) । 


4. घन वाद्य ( IDIOPHONES )

चौथा वाद्य यंत्रों के प्रकार तथा वर्गीकरण की श्रेणी घन वाद्य की है ।

उन्हें वहाँ पश्चिमी संगीत के अनुसार idiophone कहा जाता है । इन उपकरणों का शरीर धातु तथा मिट्टी जैसी ठोस सामग्री से बना होता है जैसे- मंजीरा, झांझ, स्टील का ट्राइएंगल कर्नाटिक इंस्ट्रूमेंट्स जैसे घटम(घड़)

 इन्हे मिलाने या tune करने की आवश्यकता नहीं होती है। इनका उपयोग साइड रिदम इंस्ट्रूमेंट्स के रूप में किया जाता है । 


वाद्ययंत्रों के प्रकार तथा वर्गीकरण में हमें कुछ और वाद्ययंत्र को शामिल करने की आवश्यकता है – ये हैं –


Electronic Musical Instrument

आप यह भी पूछ सकते हैं कि सिंथेसाइज़र और इलेक्ट्रॉनिक तानपूरा जैसे उपकरणों के बारे में क्या कहा जाए ? इसे हम किस श्रेणी में रखेंगे ? तो जबाब है इलैक्ट्रिक श्रेणी में। आज की कड़ी में इतना ही, अगली कड़ी में सरला की संगीत श्रंखला भाग चार अवश्य जुड़िएगा ।




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