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सुदामा चरित

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              मित्रता           काव्य -पहेली  पहले भी शान थी, अब भी शान है, सचमुच ही दोस्तो , मेरा भारत महान है । आई है मुझको याद एक मित्रता की बात, जिसके समान विश्व में कोई नहीं मिशाल, राजा था एक मित्र,दूजा बहुत दरिद्र, पर मित्रता निभी कि भाई हो गया कमाल, किस्सा वहीं सुनाऊं ,सुनिए धर के ध्यान है । सचमुच ही दोस्तो मेरा भारत महान है। कवि -श्री प्रेमचंद शर्मा जिरौलिया  सुदामा चरित (नरोत्तम दास) सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह को नहिं सामा॥ द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा। पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥ शीश-सिर पगा-पगडी  झगा-कुर्ता उपानह -जूते द्विज-ब्राहमण दुर्बल -कमजोर चकिसों -चकित होकर वसुधा -धरती  अभि रामा-प्रसन्नता,आराम ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥ देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल...

सुदामा चरित

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    सुदामा चरित कविता का भावार्थ सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा। धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥ द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा। पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥ सुदामा चरित भावार्थ:  इस पद में कवि ने सुदामा के श्रीकृष्ण के महल के द्वार पर खड़े होकर अंदर जाने की इजाज़त मांगने का वर्णन किया है। श्रीकृष्ण का द्वारपाल आकर उन्हें बताता है कि द्वार पर बिना पगड़ी, बिना जूतों के, एक कमज़ोर आदमी फटी सी धोती पहने खड़ा है। वो आश्चर्य से द्वारका को देख रहा है और अपना नाम सुदामा बताते हुए आपका पता पूछ रहा है। ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥ देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये। पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥  सुदामा चरित भावार्थ:   द्वारपाल के मुँह से सुदामा के आने का ज़िक्र सुनते ही श्रीकृष्ण दौड़कर उन्हें लेने जाते हैं। उनके पैरों के छाले, घाव और उनमें चुभे कांटे देखकर श्रीकृष्ण को कष्ट होता है, व...

भक्त कवि और राज धर्म

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                  ‌                                           सरला भारद्वाज 30/5/23        भक्ति कालीन कवि तुलसीदास,तात्कालिक स्थितियां और राजधर्म विश्लेषण- साहित्य समाज का दर्पण है ऐसा हम सभी बचपन से पढ़ते कहते और सुनते आए हैं। यह उक्ति कितनी खरी उतरती है ?यह चिंतन का विषय है। दर्पण में वैसा ही दिखता है ,जैसा होता है। तो आज मुझे लगा क्यों ना भक्तिकालीन काव्य साहित्य के दर्पण में समाज का नैतिक, राजनीतिक, व्यवहारिक , वैज्ञानिक  पक्ष देखा जाए। विश्लेषण किया जाए कि आखिर भक्ति कालीन कवि कोरे भक्त ही थे, या भक्त होने के साथ-साथ एक सच्चे समाज सुधारक, लोक नायक, बेबाक वक्ता, राजनैतिक विश्लेषक भी थे। आइए सर्वप्रथम इन सभी बिंदुओं को एक ही ग्रंथ और कवि के रचना साहित्य में खोजने का प्रयास करते हैं। आइए सर्वप्रथम खोज करते हैं राम चरित मानस और तुलसी के कृतित्व से, जो भारतीय आचरण निर्माण एवं नैतिक मूल्यों का स्रोत है ।जहां ज...

भारत के वीर , आपरेशन सिंदूर

 बजा दीनों डंका, जलाय दीनीं लंका, भारत के वीर सपूत बड़े ही रणबंका, भारत के वीर सपूत  बड़े रण बंका, नर के इंद्र ने नदी सुखाई, सिंधु नदी संधी ठुकराई, बनि बिजली व्योमिका गहराई, कर्नल कुरैषी ने योजना बनाई, आतंकिस्तानी  धरती थर्राई , आपरेशन सिंदूर दुहाई, जबाब दीनों ढंग का , रही ना कोई शंका, भारत के वीर सपूत बड़े ही रण बंका। सरला भारद्वाज  8:15pm

आपरेशन सिंदूर ,जय बजरंगबली

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चली चली फिर पवन चली, जय पवन पुत्र बजरंगबली, सिया राम के परम दुलारे, सिंदूरी तन , सिंदूर रखवारे, अट्टहास करि गरजी सेना, जला दयी  आतंक पुरी। हाहाकार मचाया दियो पल में, जाय घेरे आतंकी घर में, संधानों  ब्रह्मोस बाण तब , सहम गयी आतंक पुरी, संग तिहारे दुर्गा काली, रण चंडी राफेलों वाली, ध्वज केसरिया फहरा दीनों राष्ट्र धर्म निज बतला दीनों, हाथ मलै आतंक पुरी। सरला भारद्वाज 6pm

मियां नसरुद्दीन 11हिंदी आरोह

पाठ- मियां नसरुद्दीन   प्रश्न. 1. मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है? उत्तर: मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा कहा गया है, क्योंकि वे मसीहाई अंदाज में रोटी पकाने की कला का बखान करते हैं। वे स्वयं भी छप्पन तरह की रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका खानदान वर्षों से इस काम में लगा हुआ है। वे रोटी बनाने को कला मानते हैं तथा स्वयं को उस्ताद कहते हैं। उनका बातचीत करने का ढंग भी महान कलाकारों जैसा है। अन्य नानबाई सिर्फ रोटी पकाते हैं। वे नया कुछ नहीं कर पाते। प्रश्न. 2. लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं? उत्तर: लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास इसलिए गई थी क्योंकि वह रोटी बनाने की कारीगरी के बारे में जानकारी हासिल करके दूसरे लोगों को बताना चाहती थी। मियाँ नसीरुद्दीन छप्पन तरह की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर थे। वह उनकी इस कारीगरी का रहस्य भी जानना चाहती थी। प्रश्न. 3. बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी? उत्तर: लेखिका ने जब मियाँ नसीरुद्दीन से उनके खानदानी नानबाई होने का रहस्य पूछा तो ...

काले मेघा पानी दे

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                धर्मवीर भारती (1926-1997) एक प्रमुख भारतीय कवि, लेखक, नाटककार और सामाजिक विचारक थे. वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं. उनकी रचनाएँ कविता, उपन्यास, नाटक और गद्य सहित विविध रूपों में हैं.  प्रमुख बातें: जन्म: 25 सितंबर 1926, इलाहाबाद. मृत्यु: 4 सितंबर 1997. कार्य: कवि, लेखक, नाटककार, सामाजिक विचारक, पत्रकार. प्रमुख रचनाएँ: उपन्यास: गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा. नाटक: अंधा युग. कविता: दूसरा सप्तक में शामिल, अंधा युग. कहानी: चाँद और टूटे हुए लोग, बंद गली का आखिरी मकान. अन्य: धर्मयुग पत्रिका के प्रधान संपादक. पुरस्कार: पद्मश्री (1972).  काले मेघा पानी दे  पाठ का प्रतिपाद्य व सारांश प्रतिपादय – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में प्रचलित विश्वास और विज्ञान के अस्तित्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास की अपनी क्षमता। इनके महत्व के विषय में पढ़ा-लिखा वर्ग परेशानी में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में धारणा रची है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा (15 दिन), बीत चुका है। ऐसे...