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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का एक ,हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक,स्वयंसेवक संगठन हैं, जो व्यापक रूप से भारत के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी का पैतृक संगठन माना जाता हैं।। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर.एस.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है।    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ध्वज    संक्षेपाक्षर(short name RSS ) -आर० एस० एस०।   स्थापना-  27 सितम्बर 1925;  97 वर्ष पहले विजयादशमी 1925 को स्थापना हुई 2025को स्वर्ण जयंती मनाई जाएगी।  संस्थापक डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार । यह संगठन एक प्रकार स्वयंसेवी, निःस्वार्थ राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत अर्धसैनिक, संगठन है।जो हिन्दू राष्ट्र की भावना को समर्पित है।  मुख्यालय नागपुर  महाराष्ट्र में है ।  सेवित क्षेत्र क्षेत्र भारत विधि समूह चर्चा, बैठकों और अभ्यास के माध्यम से शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण सदस्यता संख्या-  50-60लाख। 56876 शाखाएँ (2016)  आधिकारिक भाषा संस्कृत, हिन्दी,   महासचिव-सुरेश 'भैयाजी' जोशी।...

पहेली कविता, उत्तर खोजें

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 बहुत कुछ कह कर भी मौन हूं ,  पहचाना मुझे  , मैं कौन हूं  ? मेरे  किस पर्यायवाची से   राम को भी जाना जाता है?  मुझसे जन्मी है लक्ष्मी ,  किन नामों से जाना जाता है?  मेरे नाम से लक्ष्मी का नाम तो बताओ?  किस देश का गौरवान्वित प्रतीक  हूं मैं,  जरा यह भी तो बतलाओ ? देश के गौरवान्वित प्रतीकों में क्यों है मेरा स्थान?  मेरे किस गुण से दिया गया है  ये मान?  जानो बूझो  समझो और और बतलाओ!  भारत के सपूत हो तुम,  आचरण से दिखलाओ!  जल में  "ज "जोड़कर मेरे नाम के पर्याय बनाओ।  शब्दो की तिकड़म  से ज्ञानी बन जाओ। राजीव और इंदीवर का शाब्दिक अर्थ भी बतलाओ, सभी उत्तर खोजकर, पहेली विजेता बन जाओ। सरला भारद्वाज 22/12/2022 10:30am नोट -सभी प्रश्नो के उत्तर तलाशें, क्यों कि हर पंक्ति में पहेली है 

किसी के भी पैंतीस टुकड़े हों,अपन का क्या जाता है

 किसी के भी पैंतीस टुकड़े हों,या तीन सौ,  अपन का क्या जाता है? अपन का तो भैया , भाईचारे का नाता है। चंद टुकड़ों के लिए तो सबका जमीर भी बिक जाता है, राजा हरिश्चंद्र तो काशी में ठोकर ही खाता है, श्रद्धा के टुकड़े हों या भक्ति के , फायदे के लिए तो अब्दुल ही भाता है। कायदे की सनक छोड़, फायदे का चश्मा लगाकर तो देखो, अब्दुल के सुर में बांग मिलाकर तो देखो, पाप और पुण्य का भेद सब मिट जाता है, देश धर्म  का ओढ़ा चोला ,खुद ही उतर जाता है। खैर दूरदृष्टाओं को तो अब्दुल में खोट ही नज़र आता है, अक्खड़ और फक्कड़ों को व्यापार कहां आता है। दूर दृष्टां को तो निकट दृष्टि दोष है, और कहते फिरते हैं कि मेरे अब्दुल में खोट है, कितने फर्राटे से वह कैंची चलाता है, शूरवीर है वह धड़ल्ले से मंदिर में चला आता है, भविष्य की किसे फिकर, हमें तो बस वर्तमान ही नज़र आता है।

मैं क्यों लिखता हूं

पाठ्यपुस्तक NCERT कक्षा कक्षा 10 विषय हिंदी कृतिका  पाठ 5 कृतिका  कठिन शब्द उन्मेष – प्रकार निमित्त – कारण प्रसूत – उत्पन्न विवशता – मजबूरी कृतिकार – रचनाकार ज्वलंत – जलता हुआ कदाचित – शायद बखानना – बढ़-चढ़ कर बताना परवर्त्ती – बाद का तत्काल – तुरंत कसर – कमी भोक्ता – अनुभव करने वाला आहत – पीड़ित विद्रोह – विरोध बौद्धिक – बुद्धि से संबंधित समूची – पूरी मैं क्यों लिखता हूं? पाठ के प्रश्न और उत्तर प्रश्न 1. लेखक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा अनुभूति उनके लेखन में कहीं अधिक मदद करती है, क्यों? उत्तर: लेखक की मान्यता है कि सच्चा लेखन भीतरी विवशता से पैदा होता है। यह विवशता मन के अंदर से उपजी अनुभूति से जागती है, बाहर की घटनाओं को देखकर नहीं जागती। जब तक कवि का हृदय किसी अनुभव के कारण पूरी तरह संवेदित नहीं होता और उसमें अभिव्यक्त होने की पीड़ा नहीं अकुलाती, तब तक वह कुछ लिख नहीं पाता। प्रश्न 2. लेखक ने अपने आपको हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता कब और किस तरह महसूस किया? उत्तर- लेखक हिरोशिमा के बम विस्फोट के परिणामों को अखबारों में पढ़ चुका था। जापान जाकर उसने हिरोशिमा के अस्पतालों...

स्ववृत लेखन

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ये svmके कुछ आदर्श विद्यार्थियों के लिखे स्ववृत    स्ववृत्त लेखन से अभिप्राय अपने विवरण से है। यह एक बना बनाया प्रारूप होता है जिसे विज्ञापन के प्रत्युत्तर में आवेदन पत्र के साथ भेजा जाता है। नौकरी के संदर्भ में स्ववृत्त की तुलना एक उम्मीदवार के दूत या प्रतिनिधि से की जाती है। अभिप्राय है कि स्ववृत्त का प्रारूप उसे प्रभावशाली बनाता है। एक अच्छा स्ववृत्त नियुक्तिकर्ता के मन में उम्मीदवार के प्रति अच्छी और सकारात्मक धारणा उत्पन्न करता है। नौकरी में सफलता के लिए योग्यता और व्यक्ति के साथ-साथ स्ववृत्त निर्माण की कला में निपुणता भी आवश्यक है। स्ववृत्त में किसी विशेष प्रयोजन को ध्यान में रखकर सिलसिलेवार ढंग से सूचनाएं संकलित की जाती है। स्ववृत्त में दो पक्ष होते हैं:- पहला पक्ष वह व्यक्ति है जिसको केंद्र में रखकर सूचनाएं संकलित की जाती है। दूसरा पक्ष नियोजन का है। स्ववृत्त में ईमानदारी होनी चाहिए। किसी भी प्रकार के झूठे दावे या अतिशयोक्ति से बचना चाहिए। अपने व्यक्तित्व , ज्ञान और अनुभव के सबल पहलुओं पर जोर देना चाहिए। स्ववृत्त का आकार अति संक्षिप्त अथवा जरूरत से ज्यादा लंबा नहीं होन...

भगवान श्रीकृष्ण की सोलह कलाएं

 कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला अवतार माने गए हैं। सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता है। अवतारों में भगवान श्रीकृष्ण में ही यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी। इन कलाओं के नाम निम्नलिखित हैं। १. श्री धन संपदा : प्रथम कला धन संपदा नाम से जानी जाती हैं है। इस कला से युक्त व्यक्ति के पास अपार धन होता हैं और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। जिसके घर से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता, उस शक्ति से युक्त कला को प्रथम कला! श्री-धन संपदा के नाम से जाना जाता हैं। २. भू अचल संपत्ति : वह व्यक्ति जो पृथ्वी के राज भोगने की क्षमता रखता है; पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर जिसका अधिकार है तथा उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं वह कला! भू अचल संपत्ति कहलाती है। ३. कीर्ति यश प्रसिद्धि : जिस व्यक्ति का मान-सम्मान और यश की कीर्ति चारों ओर फैली हुई हो, लोग जिसके प्रति स्वतः ही श्रद्धा और विश्वास रखते हैं, वह कीर्ति यश प्रसिद्धि कला से संपन्न माने जाते हैं। ४. इला वाणी की सम्मोहकता : इस कला से संपन्न व्यक्ति मोहक वाणी से युक्त होता है; व्यक्ति की वाणी सुनकर ...

बातें तो होती हैं पर खुद ही खुद से

फ़साना आज फोन मे से यूँ ही एक नंबर चेक कर रहे थे हम। तभी तुम्हारे नाम  राशी पर मेरी उँगलियाँ रुक सी गयी.... दिल की धड़कनों के साथ तुम्हारा नंबर आज भी save है मेरी मेमोरी  में। कभी कभी देख कर दिल को सुकून से भरने देते हैं.... तुम्हारी तस्वीरों को तो delete कर दिया था मेंने  कमजोर कर रही थी मुझे , जकड़ रही थी तुम्हारी यादों मे...... दर्द बढ़ता ही जाता था तुम्हे तस्वीरों मे देखकर.... तुम्हारा पास ना होना बहुत कचोडता है मुझे...... कल ही मेंने तुम्हारा फ़ेसबुक टाइमलाइन चेक किया था... खुद से बचा कर तुम्हारे सारे कॉमेंट पढ़े थे मेंने... ना जाने कितनों ने तारीफ मे जाने क्या क्या लिख रखा था.... गुरूर सा हो रहा था अपनी पसंद पर और एक जलन सी भी हो रही थी... मगर तसस्ली हुई तुम आज भी किसी को भाव नही देते हो ठीक पहले की तरह..... शायद याद हो तुम्हे आज से 12 साल पहले हम रात के 11 बजे छत पर ठिठुरते हुऐ मेसेज करते थे तुम्हे ,कभी दायाँ हाथ पॉकेट मे कभी बायाँ हाथ..... बड़ी ठंड थी उन दिनो मे ठीक से टाइप भी नही कर पा रहा था हाथ...... तुम घर मे बेठे मुझे लेट रिप्लाइ दिया करते थे..... तुम्हारे सो जान...