आशा दीप जला दो
हे देव भूमि इस अंधकार में आशा दीप जला दो, अपनी उर्वर मांटी में फिर से ,तुम इंसान उगा दो।। उस समय एक ही रावण था , अब हैं सहस्त्र रावण दिखते। तब एक सिया का हरण हुआ, अब हर दिन जाल हरण रचते । तब एक राम से हुआ युद्ध, अब अनगिनत राम कैसे आयें? तब एक सिया को मिली मुक्ति, अनगिनत सीया कैसे पाएं ? यदि राम नहीं उग सके , सिया में दुर्गा रूप जगा दो। अपनी उर्वर धरती में फिर से तुम इंसान उगा दो।। बन चील गिद्ध सब नौच रहे , सूअर और स्वान, निर्बल काया, जो भूल चुके हैं मानवता ...