आशा दीप जला दो

                             

 


           

हे देव भूमि इस अंधकार में आशा दीप जला दो,

 अपनी उर्वर मांटी में फिर से ,तुम इंसान उगा दो।।

उस समय एक ही रावण था ,

अब हैं सहस्त्र रावण दिखते।

 तब एक सिया का हरण हुआ,

 अब हर दिन जाल हरण रचते ।

तब एक राम से हुआ युद्ध,

 अब अनगिनत राम कैसे आयें?

 तब एक सिया को मिली मुक्ति,

  अनगिनत सीया कैसे पाएं ?

यदि राम नहीं उग सके ,

सिया में दुर्गा रूप जगा दो।

अपनी उर्वर धरती में फिर से तुम इंसान उगा दो।।

                         बन चील गिद्ध  सब नौच रहे ,

                            सूअर और स्वान,  निर्बल काया,

                         जो भूल चुके हैं मानवता 

                         है चरम पै उनकी दानवता ,

                           कुछ इक जो गीध जटायु हैं ,

                              वह दर्शक मूक बने रहते। 

                            कट जाए न पंख कहीं उनके,

                                बस इस डर से सहमे रहते ।

     अब दिखा करिश्मा, हर नारी को काली रूप बना दो।

      करने दो तांडव धरती से, सब रक्तबीज को मिटा दो 

अपनी उर्वर धरणी में फिर से तुम इंसान उगा दो।।

सरला भारद्वाज (पथिक)

७/१२/११  


Comments

  1. अति सुंदर लाजवाब ,बहुत ही सुंदर कविता|

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  2. लाजवाब कविता मेम, very nice°

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