उत्साह,अट नहीं रही (निराला)
3. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता- उत्साह बादल, गरजो! घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ ! ललित ललित, काले घुंघराले, बाल कल्पना के -से पाले, विधुत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले ! वज्र छिपा, नूतन कविता फिर भर दो – बादल गरजो ! विकल विकल, उन्मन थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन, आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन ! तप्त धरा, जल से फिर शीतल कर दो – बादल, गरजो सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता- अट नहीं रही है अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है। कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो, उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो, आँख हटाता हूँ तो हट नहीं रही ह...