आरोह12 आत्म परिचय

 

आत्म परिचय,दिन धीरे धीरे  ढलता है,हरिवंशराय बच्चन 


काव्यांश 3 –

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ!
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना!

कठिन शब्द –
यौवन – जवानी
उन्माद – पागलपन, सनक
अवसाद – उदासी, दुख, निराशा
यत्न – कोशिश, प्रयत्न, प्रयास
नादान – नासमझ, अनाड़ी
दाना – (अन्न का कण या बीज) , बुद्धिमान, ज्ञानी, चतुर
मूढ़ – परम मूर्ख, नासमझ

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियाँ आत्म-परिचय नामक कविता से ली गई हैं और आत्म-परिचय कविता के कवि हरिवंश राय बच्चन जी हैं। उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि वह अपनी जवानी के पागलपन की मस्ती में घूमता रहता है। इस पागलपन के कारण कवि अनेक दुखों व् निराशा का भी सामना करता है और वह इन दुखों व् निराशा को साथ में लिए घूमता है। अर्थात वह अपना जीवन दुखों व् निराश के साथ जी रहा है। कवि किसी प्रिय को याद करता रहता है जिसकी याद उसे बाहर से तो हँसा जाती है, परंतु उसका मन रो देता है अर्थात याद आने पर कवि का मन व्याकुल हो जाता है।

कवि आगे कहता है कि इस संसार में लोगों ने सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य को नहीं जान पाया और बिना सत्य जाने ही इस संसार को छोड़ कर चले गए। कवि बताते हैं कि नादान अर्थात मूर्ख भी वहीं होते हैं जहाँ समझदार एवं चतुर होते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए वैभव, समृद्ध, भोग-विलास की तरफ भाग रहा है। वे इतना सत्य भी नहीं सीख सके हैं कि सांसारिक वस्तुएँ सदैव के लिए नहीं रहती। यह सब जानते समझते हुए भी अगर यह संसार कुछ सीख नहीं पाता हैं तो, फिर इसे मूर्ख ही कहा जायेगा। कवि कहते हैं कि वह इस बात को जान चुका है। उन्होंने इस दुनिया में रहते हुए जो भी सांसारिक बातें सीखी हैं, अब वह उनको भूलना चाहता है। क्योंकि कवि अपनी मस्ती में रहते हुए, अपने मन के अनुसार जीना चाहता है।


अति महत्वपूर्ण प्रश्न 


1.दिन जल्दी-जल्दी ढलता है कविता का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -दिन जल्दी-जल्दी ढलता है कविता में कवि ने प्रेमकी व्याकुलता और व्यग्रता है ।पथिक को अपने प्रिय जनों से जल्दी मिलने की चाह है। इसलिए वह जल्दी-जल्दी चलने का प्रयास करता है। ठीक इसी प्रकार पंछी अपने बच्चों से मिलने के विषय में सोचते ही अपने पंखों में गति भर लेते हैं।वे जल्दी से जल्दी अपने बच्चों के पास नीड़ की ओर लौट रहे हैं परन्तु कवि अकेला है ।उसकी प्रतीक्षा करने वाला कोई नहीं है इसलिए उसके कदमों की चाल शिथिल है।मन में व्याकुलता है। कवि बच्चन का मानना है कि जीवन में गति का कारण प्रेम है।

2.पंथी क्या सोच रहा है और क्यों?

कविता में कवि पक्षियों की तरह अपने घर लौटने को आतुर क्यों नहीं?

उत्तर -पंथी सोच रहा है कि दिन भर चलकर अब मैं अपनी मंजिल के समीप पहुंचने वाला हूं परंतु मंजिल तक पहुंचने से पहले कहीं रात न हो जाए। फिर अचानक से विचार आता है कि इन पक्षियों का इंतजार इनके बच्चे कर रहे होंगे,रात हो या ना हो, घर पर मेरा इंतजार करने वाला कोई नहीं। उसका मन शिथिल हो जाता है।

3-कवि के अनुसार शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर -कवि के अनुसार शीतल वाणी में आग के होने का अभिप्राय है ऐसी वाणी जिसमें भले ही शीतलता प्रकट होती है लेकिन उसमें जोश भरा हो। वाणी भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम है,और भावों का घर है हृदय। कवि कोमल और शांत भाव से कविता लिख रहा है परंतु उसके अंदर अत्यधिक वैचारिक उथल पुथल है।उसके हृदय में आग छिपी है।कवि के सामान्य शब्दों में भी शक्ति, क्षमता और क्रांति की आग है। वास्तव में वह अपनी वाणी से सोए हुए जनमानस को जगाना चाहता है और चेतना का संचार करना चाहता है।इसी भाव को विरोधाभास अलंकार युक्त शैली में लिखते हुए कवि कहता है "शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूं!"


कविता के साथ, अभ्यास प्रश्न -

प्रश्न 1. कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ- विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

उत्तर

कविता में एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करता है इसका आशय मनुष्य की सामजिकता से है| मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए उसे सांसारिक दायित्वों का निर्वाह करना पड़ता है जैसे कवि कर रहे हैं| जीवन में दुख-सुख दोनों ही आते हैं। मनुष्य को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है परन्तु वह इस जीवन से अलग नहीं हो सकता। दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ का आशय अन्य लोगों द्वारा किए गए आलोचना से है| कवि इसे हृदयहीन और स्वार्थी मानते हैं| वह अपनी मस्ती में रहते हैं और जहाँ तक हो सके प्रेम बाँटने की कोशिश करते हैं।

. प्रश्न 2.जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं- कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

उत्तर

'दाना' का अर्थ बुद्धिमान और 'नादान' का अर्थ नासमझ या मूर्ख होता है। इसका आशय है कि जहाँ अक्लमंद या समझदार रहते हैं, वहीं पर नासमझ या मूर्ख भी रहते हैं। ये दोनों ही समाज का हिस्सा हैं| नासमझ इस संसार के मोह-मायाजाल में फँसकर अपना जीवन बेकार में गँवा देता है, जबकि बुद्धिमान सत्य को जानकर संसार के मायाजाल से स्वयं को दूर रखने का प्रयत्न करता है।

प्रश्न 3. मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर

'मैं और, और जग और, कहाँ का नाता' पंक्ति में 'और' शब्द कवि और संसार के संबंधों के अलगाव को दिखाता है। कवि अन्य आदमी से अलग स्वयं को इस दुनिया के भौतिकवाद से दूर रखता है और खुद को इस जग से भिन्न समझता है।

प्रश्न 4. शीतल वाणी में आग के होने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर

जहाँ एक ओर कवि की वाणी में शीतलता व प्रेम व्याप्त है वहीं दूसरी ओर कवि को अपने प्रिय से वियोग होने की आंतरिक पीड़ा भी है| वह उस विरह-वेदना को अपने हृदय में दबाए फिर रहा है। यह वियोग कवि के हृदय को सदा जलाता रहता है जिससे उनके हृदय में आग पैदा होती है।

प्रश्न 5. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?

उत्तर

बच्चे अपने माता-पिता की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे। उन्हें भोजन का इन्तजार भी होगा। वे अपने माँ-पिता की गोद में बैठकर उनका प्यार पाने के लिए भी बेकरार रहते हैं|

6. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है-की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?

उत्तर

‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है' की आवृत्ति से पता चलता है कि समय का पहिया गतिमान रहता है। वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता है मनुष्य को अपने लक्ष्य की प्राप्ति करनी है तो बिना रुके व समय गंवाए आगे बढ़ना चाहिए|

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