प्रस्तुति -सरला भारद्वाज
सरस्वती विद्या मंदिर कमला नगर आगरा।
संत कबीरदास व्यक्तित्व एवं कृतित्व एवं पद
कक्षा 11हेतु-
नाम -संत कबीर दासजन्म स्थान -वाराणसी, उत्तर प्रदेश(लहरतारा तालाब से प्राप्त)
संरक्षक पालक पिता का नाम -नीरू
संरक्षक पालक माता का नाम -नीमा
पत्नी का नाम --लोई
संतान --कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
विशेषताएं -- समाज सुधारक,न्याय के पक्षधर, नीति
उपदेशक , साम्प्रदायिक भेदभाव,ऊंच-नीच के घोर विरोधी।
शिक्षा - -निरक्षर
मुख्य रचनाएं-- साखी, सबद, रमैनी
काल ---भक्तिकाल
शाखा --ज्ञानमार्गी शाखा
मृत्यु - मगहर ,संवत 1575, सोमवार, माघ मास, शुक्लपक्ष एकादशी।
उक्ति -संवत
भाषा-- अवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी
उनके जन्म और मृत्युके के संदर्भ में निम्नलिखित दोहे प्रचलितहै-
जन्म -चौदह सौ पचपन साल गये,, चंद्र बार एक ठाठ ठये।
जेठसुदी सुदी बरसाइत में, पूर्णमासी को प्रकट भए।
मृत्यु -सम्वत् , पन्द्रह सौ पछत्तरा, कियो मगहर को गौन माघ सुदी एकादशी, रल्यौ पौन में पौन।।
लेखनी के विषय - निराकार भक्ति,समाज सुधार, हिंदू मुस्लिम एकता उपदेश, गुरु महिमा, नीति उपदेश और चरित्र निर्माण, रहस्य वादी कविता। आडम्बरपूर्ण साधना का विरोध।
हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग, जिन नाहिंन पहिचाना।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
माया देखि के जगत लुभांनां काह रे नर गरबांनां
निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां।
दोई – दो
तिनहीं – उनको
दोजग – नरक
नाहिंन – नहीं
खाक – मिट्टी
भांड़े – बर्तन
कोहरा – कुम्हार
सांनां – एक साथ मिलकर
बाढ़ी – बढ़ई
काष्ट – लकड़ी
अंतरि – भीतर, अंदर
सोई – वही
लुभाना – मोहित होना
दिवानां – बैरागी
साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।
नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहैं जो ज्ञाना।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अत काल पछिताना।
कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।
बौराना – पागल होना
साँच – सच
मारन – मारने
धावै – हमला
पतियाना – विश्वास करना
नेमी – नियमों का पालन करने वाला
धरमी – धर्म का पालन करने वाला
मुरीद – शिष्य
तदबीर – उपाय
पाथर – पत्थर
दोउ-दोनों
लरि-लड़ना
मर्म – रहस्य
काहू – किसी ने
मन्तर – गुप्त वाक्य बताना
महिमा-उच्चता
अंतकाल – अंतिम समय
भर्म- संदेह
केतिक कहीं – कहाँ तक कहूँ
सहजै – सहज रूप से
समाना- लीन होना
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न उत्तर
प्रश्न :1: कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में कबीर ने क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर : कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर का कोई निश्चित रूप नहीं है, वे सर्वव्यापी हैं। अपनी इस बात को प्रमाणित करने के लिए वह कई तर्क देते हैं जैसे : इस जगत में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है, एक ही प्रकाश है तथा एक ही प्रकार की मिट्टी है। यह सब एक ही ईश्वर की रचना है। कबीर जी आगे कहते है कि बढ़ई लकड़ी को अलग-अलग टुकड़ों में काट सकता है, लेकिन आग को नहीं। इसका अर्थ है मूलभूत तत्वों (धरती, आसमान, जल, आग, और हवा) को छोड़कर आप सबको काट कर अलग कर सकते हैं। इसी तरह शरीर नष्ट हो जाता है लेकिन आत्मा हमेशा रहती है। इसी तरह ईश्वर के रूप अनेक हो सकते हैं लेकिन ईश्वर एक ही है।
प्रश्न -2
मानव शरीर का निर्माण किन पांच तत्वों से हुआ है ?
उत्तर -मानव शरीर का निर्माण निम्नलिखित पांच तत्वों से हुआ है - मिट्टी (पृथ्वी), जल ,अग्नि, आकाश, और वायु वायु ।
इन पांच तत्वों का संतुलित संयोजन होने पर शरीर का निर्माण होता है और हम जीवित रह सकते है।
प्रश्न -3.जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
पंक्तियों के आधार पर बताएं कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?
उत्तर - उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से कबीर दास जी स्पष्ट करना चाहते हैं कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए कोई नियत स्थान नहीं है ।वह सर्वव्यापी है। सभी के अंतर में समाया हुआ है ।वह विविध रूप धारण करता है। वह व्यापक है। जिस प्रकार लकड़ी के टुकड़े किए जा सकते हैं आग के नहीं,आग उसी में समाहित है ।उसी प्रकार ईश्वर को बांटा नहीं जा सकता वह तो कण कण में समाया है।
प्रश्न -4.कबीर ने अपने आप को दीवाना क्यों कहा है?
उत्तर - कबीर ने स्वयं को दिवाना सच्चे प्रेमी के अर्थ में कहा है ।एक भक्त ईश्वर का सच्चा प्रेमी होता है जिसे संसार का कोई भय नहीं होता,वह तो बस सत्य के मार्ग पर चलता है।उसे कोई भी माया भ्रमित नहीं कर सकती।
प्रश्न .5. कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?
उत्तर -संसार बौरा गया है अर्थात पागल हो गया है, कबीर ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि संसार में रहने वाले लोग सच्ची बातों पर क्रोधित हो उठते हैं और झूठी बातों पर विश्वास करते हैं। कबीर को ऐसे संत मिले जो स्वयं को शुद्ध करने के लिए प्रातःकाल स्नान करते हैं| परमात्मा की प्राप्ति के लिए धार्मिक आडंबरों का सहारा लेते हैं परन्तु आत्मा को पवित्र नहीं कर पाते।
प्रश्न . 6. कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?
उत्तर
कबीर ने इस संसार में ऐसे कई नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों को देखा है जो धर्म के नाम पर दिखावा करते हैं| ऐसे लोग पाखंडी होते हैं जो दूसरों को मूर्ख बनाने के लिए माला, टोपी, तिलक धारण करते हैं और वास्कीतविक रूप में संत होने ढोंग करते हैं| वे की मूर्तियों तथा वृक्षों की पूजा करते हैं और धर्म के नाम पर के नियमों का पालन तो करते करते हैं परन्तु आत्मा से संत होने का एक भी गुण धारण नहीं करते ।
प्रश्न .7. अज्ञानी गुरूओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?
उत्तर
अज्ञानी गुरूओं की शरण में जाने पर उनके शिष्य भी उन्हीं की तरह मूर्ख बन जाते हैं और संसार रुपी मोह-माया के जाल में फँस कर रह जाते हैं| ऐसे गुरू अपने शिष्यों को आधा-अधूरा ज्ञान बाँटते हैं, जिन्हें स्वयं परमात्मा का कोई ज्ञान नहीं होता| अपनी महानता सिद्ध करने के लिए ये अपने शिष्यों को भी पाखंडी बना देते हैं और अंतकाल में दोनों को पछताना पड़ता है|
प्रश्न.8. बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें|
उत्तर
बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात निम्नलिखित पंक्तियों में कही गई है :
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना
संसार में ऐसे भी लोग हैं जो टोपी और माला पहनकर तथा तिलक लगाकर घूमते हैं| ऐसे लोग बाह्रय आडंबरों पर विश्वास रखते हैं| वे लोगों को ज्ञान बाँटते फिरते हैं, लेकिन स्वयं परमात्मा के ज्ञान से अनभिज्ञ हैं| कबीर के अनुसार इन धार्मिक आडंबरों का दिखावा करके आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती|
प्रश्न - 9.ईश्वर को पाने के लिए कबीर किन दोषों से दूर रहने की सलाह देते हैं?
उत्तर : कबीरदास जी का मानना है कि परमात्मा को पाने के लिए अहंकार, मोह -माया, अज्ञान, घमंड, क्रोध, ईर्ष्या आदि सबसे बड़े दोष है जो हमें परमात्मा से दूर रखता है। ऐसे में कबीर जी संसार को इस सब से दूर रहने की सलाह देते हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि यदि हम इन दोषों से दूर रहते हैं, तो हम परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं। उनके अनुसार, परमात्मा को प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका सच्ची भक्ति, आत्म-साक्षात्कार और दूसरों के प्रति प्रेम है।
प्रश्न : 10:कबीर पाखंडी गुरुओं के संबंध में क्या टिप्पणी करते हैं?
उत्तर : कबीरदास कहते हैं कि पाखंडी गुरुओं को ईश्वर और आत्म-साक्षात्कार के बारे में कोई वास्तविक ज्ञान नहीं होता। वे केवल दिखावे के लिए धर्म का ढोंग करते हैं और लोगों को गुमराह करते हैं। वे लोगों को गलत शिक्षा और मंत्र देते हैं, जिससे वे सत्य से दूर रह जाते हैं। इस तरह वे लोगों को अंधविश्वास में उलझा देते हैं। इससे समाज में कटुता का भाव पैदा होता है। हमें ऐसे पाखंडिओं से हमें बचना चाहिए।
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