यकीन मानिए राक्षस आज भी हैं,मैंने देखा है!
सभी सनातनियों ने पौराणिक कथाओं में यज्ञ विध्वंस करने वाले राक्षसों के अधर्म पूर्ण आचरण और अत्याचारों की कथाएं खूब सुनी समझी हैं।समझते समझते ये समझ लियाा कि वे देखने बड़े में भयावह होते होंगे।उनके बड़े बड़े नाखून और दांत होते होंगे।आज पृथ्वी पर वो दिखाई नहीं देते भगवान ने उन्हें परमधाम पहुंचा दिया।ये भ्रम मुझे भी था,लगता था कि अब उनका स्वरूप बदल गया है पापाचार और अनाचार के रुप में ।पर आंखों से पर्दा हट गया , मैंने राक्षसों और राक्षसियों को साक्षात इन्हीं आंखों से देखा है ।इन दिनों अपने किसी प्रिय की प्राण रक्षा और स्वास्थ्य सुधार के लिए जब कभी भी एकांत में दूर किसी कोने में सबसे अलग महामृत्युंजय जाप ,हनुमान बाहुक, रोगनाशक कीलक आदि स्तोत्र के लिए बैठकर ध्यान साधती हूं, सब कुछ जानबूझकर भी आधुनिक अवतारी दैत्य/दैत्या पूछते हैं,क्या कर रही हो? हाथ से चुप रहने के संकेत को बड़ी बेशर्मी से ठुकराते हुए लगातार कयी दिनों से अपनी फ़ालतू की निरर्थक बकवास सुनने की अपेक्षा की जा रही है। मुझे ईश्वर के अतिरिक्त किसी से संवाद में रुचि नहीं यह सुनने के बाद अपनी कुंठित कुत्सित ढकोलसी संवेदना का निरंतर अभिनय देख कर र भन्ना उठता है ,और अनायास ही रामायण की ताड़का,मारीच सुबाहु का स्मरण हो उठा।
पहले तो मुझे लगा कि इन्हें वनचर कहना चाहिए, क्यों कि चरने और मल त्याग करने वाले अबोध पशु को वनचर कहते हैं।यह इनका पूर्व जन्म से इस जन्म में आया संस्कार है। फिर लगा नहीं मानव शरीर में मूर्ख बुद्धि प्राणी है ,इसकी बुद्धि की अपंगता पर दया करो ।पर बार बार सूंघ कर अपनी सूर्पनखा सदृश नाक घुसेड़कर हर किसी के व्यक्तिगत जीवन में घुसने के इनके अथक प्रयास को देख समझ कर एक दम से ध्यान आया ,अरे! यही तो है इस युग का राक्षसी अवतार।आज भी इन अधर्मियों का वही लक्ष्य है ।पढ़ लिखकर थोड़ा अंदाज बदल गया है। अब ये हाहाहाहाहा करके नहीं इंग्लिश में किटर पिटर करके विघ्न डालते हैं ।इनके अनेक इरादों को देख मन में नेक इरादा आता है फटकार दो , दुत्कार दो ,और जरूरत पड़े तो लत्कार भी दो।
संकेत का शस्त्र समझदारों के लिए होता है जिसके ये पात्र नहीं।
फिर अचानक रामधारी सिंह दिनकर कि पंक्तियां विचार में आईं -"क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो" और विचार आया कि क्रोध करके क्यों अपने अर्जित पुण्य को नष्ट करना? तुलसी दास का कहना मान -क्रोध पाप कर मूल।" क्रोध नहीं लेखनी उठा , फिर जरूरत पड़े विश्वामित्र सदृश विज्ञान से प्राप्त आधुनिक इला बिला शक्ति शोशल मीडिया का प्रयोग कर।
फिर सजग आत्मा कहती हैं -
पुनः जुट जाओ साधना में ,धर्म और सत्य, परेशान अवश्य हो सकता है पर हारता नहीं । प्रारब्ध रचित जो सत्य भाग्य में आयेगा वह सहर्ष स्वीकार होगा ,पर संकल्प से पैर पीछे हट जाए।ये अपना स्वभाव नहीं। हां एक फायदा अवश्य हुआ इस सब से कि हर रोज डायरी लिखने की अभ्यस्त मैं एक महीने से कुछ लिख नहीं रही थी ,सो उसको पुनः गति मिल गयी।
सरला
24/3/25/
पाठकों से आग्रह है पढ़कर अपनी टिप्पणियां देकर मेरे अनुभव की समीक्षा करें।🙏🏻
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