देख हालत आज की मन रो रहा


 मेरे घर में है आज ये क्या हो रहा?

 देख हालत आजकी मन रो रहा।

खिंच रही आपस में सब की चोटियां,

 छिंन रही आपस में सब की रोटियां,

मुकदमों की आज रेलम पेल है ,

हाय ये क्या जेल भी तो फेल है।

भ्रष्ट सिस्टम दारु पीकर सो रहा।

देख हालत आज की मन रो रहा।(1)

रिश्ते नाते खत्म बस धोखा दगा ,

अब ना कोई है किसी का भी सगा।

 खा गई पूरब को पश्चिम की हवा,

सूझती है अब नहीं कोई भी दवा।

आज तो धीरज भी धीरज खो रहा।

देख हालत आज की मन रो रहा।(2)

मेरा घर भारत बना है इंडिया,

इसलिए शायद हुआ बरबंडिया।

हम हुए अंग्रेज अब हिंदू नहीं,

हिंदुता का एक भी विंदू नहीं।

लूट अंकुर हर कोई है बो रहा।

देख हालत आज की मन रो रहा।



रचनाकार 

प्रेमचंद शर्मा, जिरौलिया

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