पाथेर पांचाली अपू के ढाई वर्ष

 NCERT class 11पाठ अपू के ढाई वर्ष 



प्रश्न 1 – पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला?

उत्तर – ‘पथेर पांचाली’ फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चला। इसके बहुत से कारण थे। जैसे लेखक को पैसे का अभाव था। पैसे इकट्ठे होने पर ही वह शूटिंग करता था। वह विज्ञापन कंपनी में काम करता था। इसलिए काम से फुर्सत होने पर ही लेखक तथा अन्य कलाकार फिल्म का काम करते थे। तकनीक के पिछड़ेपन के कारण पात्र, स्थान, दृश्य आदि की समस्याएँ आ जाती थीं। पैसों के अभाव के कारण शूटिंग को बार-बार रोकना पड़ता था। शूटिंग में होने वाली देरी के कारण कई स्थान और पात्र भी या तो बदल जाते थे या उनका देहांत हो जाता था जिस कारण लेखक को उनसे मिलते-झूलते पात्र व् स्थान ढूँढना कठिन हो जाता था।


प्रश्न 2 – अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें से ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती-इस कथन के पीछे क्या भाव है?

उत्तर – किसी भी चीज़ में निरंतरता होनी चाहिए ताकि वह स्वाभाविक लगे। ‘उसमें से ‘कंटिन्युइटी’ नदारद हो जाती’ – इस कथन के पीछे भाव यह है कि कोई भी फिल्म हमें तभी प्रभावित कर पाती है जब उसमें निरंतरता हो। यदि एक दृश्य में ही एकरूपता नहीं होती तो फिल्म कैसे चल पाती। दर्शक भ्रमित हो जाता है। पथेर पांचाली फ़िल्म में काशफूलों के साथ शूटिंग पूरी करनी थी, परंतु एक दिन में पूरी शूटिंग होना संभव नहीं था और पैसों की भी कमी थी। इस कारण एक सप्ताह के अंतराल के बाद शूटिंग करना तय हुआ। परन्तु एक सप्ताह बाद काशफूलों को पशु खा गए। अत: उसी पृष्ठभूमि में दृश्य चित्रित करने के लिए एक वर्ष तक इंतजार करना पड़ा। यदि यह आधा दृश्य काशफूलों के बिना चित्रित किया जाता तो दृश्य में निरंतरता नहीं बन पाती।



प्रश्न 3 – किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?

उत्तर – प्रथम दृश्य – इस दृश्य में ‘भूलो’ नामक कुत्ते को अपू की माँ द्वारा गमले में डाले गए भात को खाते हुए चित्रित करना था, परंतु सूर्य के अस्त होने तथा पैसे खत्म होने के कारण यह दृश्य चित्रित न हो सका। छह महीने बाद लेखक पुन: उस स्थान पर गया तब तक उस कुत्ते की मौत हो चुकी थी। काफी प्रयास के बाद उससे मिलता-जुलता कुत्ता मिला और उसी से भात खाते हुए दृश्य को फ़िल्माया गया। यह दृश्य इतना स्वाभाविक था कि कोई भी दर्शक उसे पहचान नहीं पाया।

दूसरा दृश्य – इस दृश्य में श्रीनिवास नामक व्यक्ति मिठाई वाले की भूमिका निभा रहा था। बीच में शूटिंग रोकनी पड़ी। दोबारा उस स्थान पर जाने से पता चला कि उस व्यक्ति का देहांत हो गया है, फिर लेखक ने उससे मिलते-जुलते व्यक्ति को लेकर बाकी दृश्य फ़िल्माया। पहला श्रीनिवास बाँस वन से बाहर आता है और दूसरा श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता है। इस प्रकार इस दृश्य में दर्शक अलग-अलग कलाकारों की पहचान नहीं पाते।


प्रश्न 4 – ‘भूलो’ की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया? उसने फिल्म के किस दृश्य को पूरा किया?

उत्तर – ‘भूलो’ की मृत्यु हो गई थी, इस कारण उससे मिलता-जुलता कुत्ता लाया गया। फ़िल्म का दृश्य इस प्रकार था कि अप्पू की माँ उसे भात खिला रही थी। अप्पू तीर-कमान से खेलने के लिए उतावला है। भात खाते-खाते वह तीर छोड़ता है तथा उसे लाने के लिए भाग जाता है। माँ भी उसके पीछे दौड़ती है। भूलो कुत्ता वहीं खड़ा सब कुछ देख रहा है। उसका ध्यान भात की थाली की ओर है। यहाँ तक का दृश्य पहले भूलो कुत्ते पर फ़िल्माया गया था। इसके बाद के दृश्य में अप्पू की माँ बचा हुआ भात गमले में डाल देती है और भूलो वह भात खा जाता है। परन्तु शाम हो जाने के कारण सही रोशनी न मिल पाने की वजह से दृश्य पूरा नहीं फिल्माया गया और पैसे न होने के कारण दृश्य कुछ समय बाद फिल्माया गया। परन्तु तब तक भूलो कुत्ता मर चूका था, बचा हुआ दृश्य दूसरे कुत्ते से पूरा किया गया।



प्रश्न 5 – फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया?

उत्तर – फिल्म में श्रीनिवास की भूमिका मिठाई बेचने वाले की थी। उनका दृश्य भी किसी कारण वश समय रहते पूरा नहीं हो पाया। और जब उसे पूरा करने का समय आया तब तक श्रीनिवास की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति का देहांत हो गया था और उनके देहांत के बाद उनकी जैसी कद-काठी का व्यक्ति ढूँढ़ा गया। उसका चेहरा तो अलग था, परंतु शरीर श्रीनिवास जैसा ही था। ऐसे में फ़िल्मकार ने तरकीब लगाई कि नया-आदमी कैमरे की तरफ पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर आएगा और इनकी तरक़ीब कामयाब रही , अत: कोई भी अनुमान नहीं लगा पाता कि यह अलग व्यक्ति है।

 श्रीनिवास की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति का देहांत हो गया था और उनके देहांत के बाद उनकी जैसी कद-काठी का व्यक्ति ढूँढ़ा गया। उसका चेहरा तो अलग था, परंतु शरीर श्रीनिवास जैसा ही था। ऐसे में फ़िल्मकार ने तरकीब लगाई कि नया-आदमी कैमरे की तरफ पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर आएगा और इनकी तरक़ीब कामयाब रही , अत: कोई भी अनुमान नहीं लगा पाता कि यह अलग व्यक्ति है।



प्रश्न 6 – बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ?

उत्तर – फ़िल्मकार के पास पैसे का अभाव था, अत: बारिश के दिनों में शूटिंग नहीं कर सके। अक्टूबर माह तक उनके पास पैसे इकट्ठे हुए तो बरसात के दिन समाप्त हो चुके थे। शरद ऋतु में बारिश होना भाग्य पर निर्भर था। लेखक हर रोज अपनी टीम के साथ गाँव में जाकर बैठे रहते और बादलों की ओर टकटकी लगाकर देखते रहते। एक दिन उनकी इच्छा पूरी हो गई। अचानक बादल छा गए और धुआँधार बारिश होने लगी। फिल्मकार ने इस बारिश का पूरा फायदा उठाया और दुर्गा और अप्पू का बारिश में भीगने वाला दृश्य शूट कर लिया। इस बरसात में भीगने से दोनों बच्चों को ठंड लग गई, परंतु दृश्य पूरा हो गया।


प्रश्न 7 – किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उन्हें सूचीबद्ध कीजिए।

उत्तर – किसी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है –

(क) धन की कमी।

(ख) कलाकारों का चयन।

(ग) कलाकारों के स्वास्थ्य, मृत्यु आदि की स्थिति।

(घ) पशु-पात्रों के दृश्य की समस्या।

(ङ) बाहरी दृश्यों हेतु लोकेशन ढूँढ़ना।

(च) प्राकृतिक दृश्यों के लिए मौसम पर निर्भरता।

(छ) स्थानीय लोगो का हस्तक्षेप व असहयोग।

(ज) संगीत।

(झ) दृश्यों की निरंतरता हेतु भटकना।

(ञ) फ़िल्म के अनुकूल वातावरण का होना।

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