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हिंदी विभाग

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             विवरण-     हिंदी विभाग सरस्वती विद्या मंदिर कमला नगर आगरा । 1.आचार्य नाम- श्री राकेश चौरसिया  पद - पी जी टी  दायित्व - विभागाध्यक्ष हिंदी  शैक्षिक योग्यता- एम ए- हिंदी , संस्कृत,बीएड   अध्यापन अनुभव -32वर्ष विद्या मंदिर में -वर्ष - 1989-वर्तमान वर्तमान बोर्ड कक्षा और परिणाम -   कक्षा-       10,12,                  कुल छात्र -32,59,   उत्तीर्ण -   सभी                      अनुत्तीर्ण - नहीं    प्रतिशत -      कुल संख्या  91-100---- 09 81-90-----20 71-80------21 61-70----19 51-60------15 41-50-----07 31----0 2. आचार्य नाम- श्रीमती सरला देवी पद -टी जी टी- दायित्व - वंदना, सांस्कृतिक विभाग प्रमुख। शैक्षिक योग्यता-एम ए बीएड, हिंदी, प्रभाकर, भास्कर गायन संगीत।  अध्यापन अनुभव -20वर्ष  विद्या मंदिर में -वर्ष - 16वर्ष-- वर्तमान बोर्ड...

हिंदी भाषा सरलता से सिखाएं

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विद्यार्थियों को खेल खेल में शुद्ध रूप से भाषा लिखना पढ़ना सीखने हेतु विविध क्रियाकलाप। मित्रों मेरे द्वारा अनेकों प्रयोग में से कुछ प्रयोग जिससे छात्रों के सीखने की गतिविधियों में आश्चर्यजनक परिणाम दिखाई देते हैं। 1.बच्चों से माडल आदि निर्माण कराके कक्षा में उन्हीं से पढ़वाना,सीखे हुए को और मजबूत करना।  2.खेल खेल में स्किल डेवलपमेंट    दीवानों की हस्ती -कविता स्मरण  व्याकरण प्रयोग - नैतिक बोध नीति वचन - भारत माता करें पुकार -नारी आह्वान - नये नये विषयों पर सोचना समझना और फिर अभिनय के द्वारा सामाजिक चेतना का विकास। समय का सदुपयोग सस्वर पाठ - म्यूजिक मैडिटेशन नींद हेतु और थकावट दूर करने के लिए - गुरू गोविन्द सिंह जयंती पर विशेष - राष्ट्र और धर्म से बड़ा कुछ नहीं     नैतिक चेतना -दुराचार का जिम्मेदार कौन? अभिनय खूब लड़ी मर्दानी, झांसी वाली रानी। चेतना जागरण -समीक्षा फिल्म  व्यंग्य -टमाटर के बदले तेवर कठपुतली से रोचक पाठ कक्षा में शब्द पकड़ किक्रेट गेम -धारा प्रवाह वाचन आईविजन बढ़ाने हेतु। विविध नवाचार  प्रदूषण पर कवित गीत सुनाकर दृश्य दिखाकर ...

तोलकर बोले

 सरला भारद्वाज 19/6/2024  5:10 PM                     *शब्दों का मनो विज्ञान* शब्द ब्रह्म है, शब्द शक्ति है। शब्दों का एक अपना एक गणित है। शब्दों का अपना एक विज्ञान है। जहां दो और दो चार होते हैं ,तो नौ दो ग्यारह भी हो जाते हैं । जहां थोड़ी सी लापरवाही पर जीवन का सारा भौतिक और रसायन गड़बड़ा जाता है ।शब्द मनोविज्ञान का वह दर्पण है जिसमें व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं आचरण का प्रतिबिंब दिखाई देता है। अतः जब भी बोले सोच समझ कर बोले ।मन के तराजू में तोलकर बोले। स्वयं को अत्यधिक योग्य सभ्य आधुनिक, आकर्षक दिखाने के चक्कर में कुछ गरिमामय व्यवसाय पर आसीन ,उम्रदराज लोग शब्दों का ऐसा मूर्खतापूर्ण प्रयोग करते देखे गए हैं कि उनकी विकृतियों और अवगुणों से पर्दा हट जाता है। उदाहरण के लिए आज के समय में स्वयं को आधुनिक मानने वाले कुछ लोगों को मैंने कहते सुना है- "*मेरे ऊपर तो न जाने कितने लड़के / लड़कियां मरते थे* *फिदा होती थे *मैंने तो न जाने कितनों को फंसाया है मूर्ख बनाया है।वे इन वाक्यों का प्रयोग इतने स्वाभिमान से करते हैं, जैसे -पद्मवि...