संगीत में फिजिक्स
संगीत में फिजिक्स-
संगीत में नियमित और स्थिर कंपन , ध्वनि जो कानों को प्रिय लगती है वह नाद कहलाती है ।वैसे नाद दो प्रकार के होते हैं अनाहत नाद और आहत नाद।
संगीत रत्नाकर के अनुसार-
"आहतोअनाहतश्चेति द्विधा नादो निगद्यते।"
अनहद या अनाहत नाद जो केवल अनुभव से ज्ञात हो, जिसके उत्पन्न होने का कोई कारण न हो। बिना आघात ही अपने आप होने वाला नाद अनहद कहलाता है। ऐसे गुपत या सूक्ष्म नाद भी कहते हैं ।यह नाद केवल योग क्रिया समय ध्यान लगाने पर सुनाई देता है ।हठ योग साधना करने वाले कबीर जैसे साधक इसी नाद कि बात करते हैं।इसे ईश्वरीय नाद माना जाता है।
आहत नाद - संगीत के क्षेत्र में यही नाद उपयोग होता है ।आहत नाद का अर्थ है -आघात से उत्पन्न ध्वनि। अर्थात किसी भी यंत्र पर चोट करने से जो ध्वनि उत्पन्न होती है ।वह आहत नाद कहलाती है। परंतु वही ध्वनि आहत नाद कह लाएगी जो स्थिर हो ,नियमित हो ,और संगीतमय हो। हर तरह की ध्वनि आहत नाद नहीं कहलाएंगी ।अनुपयोगी ध्वनियां केवल शोर कहलाती हैं ।आहत नाद नहीं।
आइए जानते हैं संगीत में मधुर नादो की उत्पत्ति कैसे होती है ?या मधुर ध्वनियों को कैसे उत्पन्न किया?
आघात से-जैसे तबला ,ढोलक, जल तरंग, संतूर,ड्रम तस्तरी, मंजीरा,आदि की मधुर लय बद्ध ध्वनियां आघात या चोट करने पर ही निकलती हैं।
रगड़ने से-
बेला ,सारंगी ,आदि के तारो पर गज से रगड़ने पर ध्वनी पैदा होती हैं ।
हवा के टकराने से- हारमोनियम शहनाई बांसुरी की आवाज हवा से पैदा होती है।तानपुरा सितार के तारों पर आन्दोलन करने से ध्वनि होती है ।ये आंदोलन अलग-अलग होने के कारण इन ध्वनियों की अलग-अलग जाति पहचान होती है। संगीत में फिजिक्स है, किसी वस्तु अथवा तार का कंपन कितना है ?उस कंपन की ,ध्वनि की ऊंचाई और नीचाई ।कितनी है? उस कंपन संख्या पर होता है। अतः नांद की प्रकार को समझने के लिए फिजिक्स के नियम को समझना आवश्यक होता है ।भारी यंत्रों की ध्वनि और हल्के यंत्रों की धनिया अलग-अलग होती हैं। उसका भारी हल्का होना उसके कम्पन पर निर्भर करता है। फ्वीकैंसी जितनी अधिक होगी उतनी महीन आवाज होगी। और जितना कम कंपन होगा, जितना भारी यंत्र होगा ,उतने ही कम कंपन होंगे । और आवाज़ भारी होगी ।
जैसे - मंदिर की छोटी घंटी और बड़े घंटे की आवाज में अंतर होता है।
क्यों कि मेरे अध्ययन का विषय हिंदी संस्कृत और संगीत रहा है । और हिंही की अध्यापिका हूं। फिजिक्स से दूर-दूर का नाता नहीं रहा। अतः इस समझने में विशेष कठिनाई महसूस हुई। और इस विषय को समझने में मेरे विद्यार्थी, सहायक साथियों -श्री इंद्रजीत जी, श्री प्रदीप वर्मा जी, श्री देवेश जी, आदि से परिचर्चा, हुई अतः और बहुत लाभ हुआ। विद्यार्थियो ने विनोद से पूछा था कि सरला मैम आप हिंदी की पढाती हैं अब फिजिक्स को क्यों पढना चाहती हैं। तब मैंने कहा कि भास्कर का एक टापिक है जो मुझे परेशान कर रहा है।
जो कुछ समझा था वो इस प्रकार है।
इससे समझें-
Natural Scale vs Equal Tempered Scale of music :
जब भी आप किसी तार में या दोनों ओर से खुले पाइप में ध्वनि पैदा करते हैं तो उसमें एक ही समय में कई आवृति की ध्वनियाँ पैदा होतीं हैं | सबसे कम आवृति की ध्वनि को fundamental कहते हैं , बाकी आवृतियां इसका integer multiple होतीं हैं , जिन्हे हॉर्मोनिक्स कहा जाता है | उदाहरण के लिए एक 100 Hz की मूल आवृति के तार में 200 ,300 ,400 ,500 ,600...... Hz आवृतियाँ भी उपस्थित होंगीं | अलग अलग हॉर्मोनिक्स की अलग अलग तीव्रता उस ध्वनि का टोन निर्धारित करती है |
natural scale का आधार ये हॉर्मोनिक्स ही हैं | मान लीजिये कि दो ध्वनियों की मूल आवृतियों f 1 तथा f 2 के लिए निम्नलिखित समीकरण सत्य है
( f 1 / f 2) = (m / n )
, यहाँ m तथा n छोटे (< 7 ) +ve integers हैं तब इन दोनों ध्वनियों के बीच में संगीतमय रिश्ता बन जाएगा | क्योंकि पहली के n th और दूसरी के m th हार्मोनिक की आवृति बराबर होगी , यदि इन दोनों ध्वनियों को एक साथ बजाया जाय तो एक दूसरे का सहयोग करते हुए प्रतीत होंगी | यही सिद्धांत natural scale का मूल आधार है | गायिकी के दृष्टिकोण से आमतौर पर 200 से 500 Hz की किसी भी आवृति को आधार स्वर (Key ) माना जा सकता है जिसे हम "सा " कहते हैं | ठीक इसकी दोगुनी आवृति को तार सप्तक का "सा " कहते हैं क्योंकि इसके सभी हॉर्मोनिक्स नीचे के "सा" के हॉर्मोनिक्स में उपस्थित होते है | इन दोनों "सा " के बीच में 12 स्वर निम्न प्रकार निर्धारित किये जाते हैं |
Sa 1 /1
re 16/15 = (4/3)/(5/4)
Re 9/8 = (3/2)/(4/3)
ga 6/5
Ga 5/4
ma 4/3
Ma 45/32 = ((9/8)x(5/4))
Pa 3 / 2
dha 8 /5 = (4/3)x(6/5)
Dha 5 /3
ni 9 /5 = (3/2)x(6/5)
Ni 15 / 8 = (3/2)x(5/4)
Sa2 2/1
इस scale की सबसे बड़ी असुविधा यह है कि यदि आप मूल स्वर (Key ) बदल दीजिये तो सारे अनुपात बदल जाते हैं | इसलिए हारमोनियम जैसे वाद्यों के लिए जिसमें वादक स्वेच्छा से किसी स्वर की आवृति को नियंत्रित नहीं कर सकता , यह स्केल अनुपयुक्त हो जाता है |
पश्चिम के लोग बहुत व्यावहारिक (pragmatic ) होते हैं | इन्होने इन बारहों स्वरों को बराबर अनुपातों में बाँट दिया , हर एक स्वर अपने नीचे के स्वर का 2 ^ (1 /12 ) है और आप बारह सीढ़ियां चढ़ के दोगुनी आवृति पर पहुँच जाते हैं | इसे Equal Tempered Scale कहते हैं | अब किसी भी स्वर को Key की तरह उपयोग करिये अनुपात वही रहेंगे |
परन्तु इस बदलाव की क़ीमत कमज़ोर संवाद के रूप में चुकानी पड़ती है | केवल शुद्ध म और प को छोड़ कर जो लगभग 4/3 और 3/2 के काफी निकट रहते हैं , बाकी स्वरों की आनुपातिक सहजता और सामंजस्य बिखर जाता है | निम्नलिखित सारणी में Cents इकाई में दिए गए अंकों से यह स्पष्ट हो जाएगा |
Name / Natural Cents / ET Cents / Difference
Sa ……….. 0 ….……….. 0 ...……….. 0
re ……….. 112 ……….. 100 ……….. -12
Re ……….. 203 ……….. 200 ……….. -3
ga ……….. 316 ……….. 300 ………..-16
Ga ……….. 386 ……….. 400 ………..+14
ma ……….. 498 ……….. 500 ……….. +2
Ma ……….. 590 ……….. 600 ………..+10
Pa ……….. 702 ……….. 700 ……….. -2
dha ……….. 814 ……….. 800 ……….. -14
Dha ……….. 884 ……….. 900 ……….. +16
ni ….………..996 ………..1000 ……….. +14
Ni ……….. 1088 ……….. 1100 ……….. +12
Sa2.………..1200 ………..1200 ……….. 0
इस प्रकार म और प को छोड़ कर ET स्केल में , यानी हारमोनियम में , कुछ स्वर उतरे हुए और कुछ चढ़े हुए बोलते हैं | इसलिए भारतीय शास्त्रीय संगीत में हारमोनियम को 'कनसुरा' वाद्य कहा गया है |
परन्तु उपयोगिता के दृष्टिकोण से देखें तो यह बहुत बुरा समझौता भी नहीं है , क्यूंकि यदि स्वर तेज रफ़्तार से बदल रहे हैं तो कान इस कमी को महसूस नहीं कर पाता है | ठहरे हुए स्वर पर chords की मदद से इस कमी को दबाया जा सकता है | इसलिए लगभग सभी ग़ज़ल गायक , भले ही उन्होंने बरसों शास्त्रीय संगीत सीखा हो , हारमोनियम का प्रयोग करते हैं | लगातार क्लिष्ट स्वर समूहों का उपयोग करते समय किसी वाद्य पर उन्ही स्वरों का सहारा मिल जाना बहुत महत्व रखता है |
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