जीवन जीने की कला सिखाते नीति के दोहे
मेधा- 1.- Svm ्क्रिया कलाप -( द्वितीय) नैतिक बोध और नीतिवचन स्मरण।
इस क्रिया कलाप में कबीर ,रहीम, और तुलसी जी के नीति परक दोहे हैं।
जो जीवन की कला सिखाते हैं।
रेखांकित (गहरे काली स्याही वाले दोहे ही क्रिया कलाप में चयनित/ शामिल)
दोहों में ज्ञान की अनमोल धारा समाहित होती है। सुखमय जीवन जीने का संदेश छिपा रहता है और यह सफलता पाने का अचूक मंत्र होता है। यही वजह है कि हिन्दी साहित्य के महान कवियों ने अपने दोहे के माध्यम से लोगों को काफी बड़ी सीख दी है, जिस पर चलकर कई लोगों ने न सिर्फ अपने जीवन में बदलाव किया है बल्कि वे लोग सफलता के पथ पर भी अग्रसर हुए हैं।
कवियों ने अपने दोहों के माध्यम से जीवन की सच्चाई को उजागर किया है और लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है। कई बार हम अपने अहं भाव की वजह से कई चीजों को निष्पक्ष रुप से नहीं देख पाते हैं जो हमारे इन महान कवियों एवं समाज सुधारकों ने देखा हैं।
आज हम आपको अपने इस लेख में हिन्दी साहित्य के महान कवि कबीरदास जी, रहीम दास जी और तुलसीदास जी के नीति के दोहों – नीति के दोहे को अर्थ समेत बताएंगे जिसमें कवियों ने लोगों को बड़ी सीख दी है।
नीति के दोहे अर्थ समेत –
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 1-
आज की दुनिया में लोगों के अंदर प्रेम भावना कम होती जा रही है तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी है जो अपने घमंड में इतने चूर रहते हैं कि उन्हें लगता है कि वह प्यार भी बाजार में खरीद लेंगे ऐसे लोगों के लिए कवि ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि कहते हैं कि प्रेम खेत में नहीं पैदा होता है और न ही प्रेम बाज़ार में बिकता है। चाहे कोई राजा हो या फिर कोई साधारण आदमी सभी को प्यार आत्म बलिदान से ही मिलता है, क्योंकि त्याग और बलिदान के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता है। प्रेम गहन- सघन भावना है – खरीदी बेचे जाने वाली वस्तु नहीं है!
क्या सीख मिलती है:
कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें प्यार पाने के लिए लोगों के भरोसे को जीतने की कोशिश करनी चाहिए और आत्म बलिदान करना चाहिए तभी हम सच में किसी का प्यार पा सकते हैं या फिर किसी से सच्चे मन से प्यार कर सकते हैं।
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 2 –
जो लोग घमंड में चूर रहते हैं कवि ने उन लोगों के लिए अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
जब मैं था तब हरिनहीं, अब हरिहैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर से मिलन नहीं हुआ लेकिन जब घमंड खत्म हो गया तभी प्रभु मिले अर्थात जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ। तब अहम खुद व खुद खत्म हो गया।
इसमें कवि कहते हैं कि ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ जब अहंकार गया. प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता। प्रेम की संकरी-पतली गली में एक ही समा सकता है- अहम् या परम! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन जरूरी है।
क्या सीख मिलती है:
कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने अंहकार को त्याग कर ईश्वर की सच्चे मन से भक्ति करनी चाहिए तभी हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 3 –
इस दोहे में कवि कबीरदास जी ने उन लोगों को बड़ी सीख दी है जो लोग बिना प्रयास किए ही कुछ पाने की चाहत रखते हैं अर्थात बिना मेहनत किए ही फल की इच्छा रखते हैं –
दोहा:
कबिरा घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।
अर्थ - कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार में किसी को भी तुच्छ या घासफूस सा नहीं समझना चाहिए। क्योंकि पैरों तले रोंदी हुई उसी तुच्छ घास का जब आंख में पड़ता है तो असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ती है।
जिन ढूंढा तिन पाईयां, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ लेकर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पा पाते।
क्या सीख मिलती है:
कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कुछ पाने के लिए लगातार कोशिश करना चाहिए क्योंकि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती और बिना मेहनत के कभी सफलता हासिल नहीं की जा सकती।
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 4 –
कवि ने यह दोहा उन लोगों के लिए लिखा है जो लोग दूसरों में कमी खोजते रहते हैं और दूसरों में बुराइयां निकालते रहते हैं –
दोहा:
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
क्या सीख मिलती है:
कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें दूसरों में बुराई निकालने से पहले खुद के अंदर झांक कर देखना चाहिए। अर्थात पहले खुद की कमियों को दूर करना चाहिए और फिर दूसरों को देखना चाहिए।
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 5 –
समाज में कई ऐसे लोग भी हैं जो बिना सोचे-समझे बोलते हैं जिससे सामने वाले की भावना को ठेस पहुंचती है ऐसे लोगों के लिए कवि का यह दोहा बड़ी सीख देने वाला है –
दोहा:
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में हिन्दी साहित्य के महान कवि कबीरदास जी कहते हैं कि अगर कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।
क्या सीख मिलती है:
इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव सोच-समझकर ही बोलना चाहिए और ऐसी बोली बोलनी चाहिए जिस सुनकर दूसरे को प्रसन्नता मिले।
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 6 –
जो लोग हद से ज्यादा बोलते है या फिर कई लोग ऐसे भी होते हैं जो एकदम चुप चाप रहते हैं ऐसे लोगों के लिए कवि ने अपने इस दोहे में बड़ी शिक्षा दी है –
दोहा:
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि कहते हैं कि न तो ज्यादा बोलना ही अच्छा है और न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। उदाहरण देते हुए कवि इस दोहे में समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे बहुत ज्यादा बारिश भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।
क्या सीख मिलती है:
कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें जरूरत से ज्यादा नहीं बोलना चाहिए और न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना चाहिए क्योंकि ज्यादा बोलना और जरुरत से ज्यादा चुप रहना भी घातक साबित हो सकता है।
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 7 –
समाज में कई ऐसे लोग हैं जो सिर्फ उन्ही से दोस्ती करते हैं जो उनकी तारीफों के पुल बांधते रहते हैं या फिर उनकी कमियों को उजागर ही नहीं करते। ऐसे लोगों के लिए कवि ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग हमारी निंदा करते हैं, उसे ज्यादा से ज्यादा अपने पास ही रखना चाहिए। क्योंकि वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ करता है।
क्या सीख मिलती है:
कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें ऐसे लोगों से दोस्ती करनी चाहिए जो लोग हमारी कमियां बताते हैं और हमें सही, गलत के बीच फर्क समझाते हैं और हमारी भलाई के बारे में सोचते हैं।
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 8 –
वर्तमान परिवेश में तो अध्यात्मिक गुरु का मिलना या मिलने के बाद भी उन्हें पहचानना हमारे बस की बात नहीं है इसलिए वर्तमान में तो गुरु और गोविंद में से किसी एक को ज्यादा और कम महत्व नहीं दिया जा सकता है। फिलहाल संत कबीर दास जी ने गुरु के महत्व का वर्णन करते हुए गुरु को ही सर्वोपरि बताया है –
दोहा:
गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव।
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय ।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में संत कबीरदास जी कहते हैं कि गुरू और गोबिंद अर्थात शिक्षक और भगवान जब दोनों एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को ?
कवि कहते हैं कि ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक जाने का रास्ता बताया है अर्थात गुरु की कृपा से ही गोविंद के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
क्या सीख मिलती है:
कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि दुनिया में सबसे पहले हमें अपने गुरु के सामने अपना सिर झुकाना चाहिए अर्थात इनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक पहुंचने का रास्ता बताया है।
कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 9 –
जो लोग दूसरों के अंदर कमी देखकर उसका मजाक बनाते हैं या फिर उन पर हंसते हैं ऐसे लोगों के लिए कवि कबीरदास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है-
दोहा:
दोस पराए देखि करि, चला हसंत हसंत।
अपने या न आवई, जिनका आदि न अंत।।
दोहे का अर्थ:
कवि कबीरदास जी अपने इस दोहे में कहते हैं कि यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।
क्या सीख मिलती है:
कवि कबीरदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें दूसरों में कमियां देखकर हंसना नहीं चाहिए बल्कि उनको सुधारने की कोशिश करना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों का परिणाम बेहद बुरा होता है।
रहीम दास जी के नीति के दोहे –
रहीम दास जी का नीति का दोहा नंबर 1-
जो लोग स्वार्थी होते हैं और दूसरों के बारे में नहीं सोचते हैं ऐसे लोगों के लिए हिन्दी साहित्य के महान कवि रहीम दास जी ने बड़ी सीख दी है –
दोहा:
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान|
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहिं सुजान।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रहीम दास जी कहते हैं कि वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते हैं और तालाब भी अपना पानी खुद नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के काम के लिए अपनी संपत्ति को संचित करते हैं।
क्या सीख मिलती है:
कवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि सज्जन पुरुष की पहचान उसके कामों से ही होती है।
रहीम दास जी का नीति का दोहा नंबर 2-
जो लोग दुखी होकर अपना दुख दूसरों को बता देते हैं और सोचते हैं कि उनकी परेशानी खत्म हो जाएगी ऐसे लोगों के लिए कवि ने अपने दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय|
सुनि इटलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रहीमदास जी कहते हैं कि हमें अपने मन के दुःख को मन के अंदर ही छिपा कर ही रखना चाहिए क्योंकि दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बांट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।
क्या सीख मिलती है:
रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने दुख को बेहद करीबियों को ही बताना चाहिए क्योंकि हर किसी से दुख बांटने से दुख कम नहीं होता बल्कि लोग इसका मजाक बनाते हैं।
रहीम दास जी का नीति का दोहा नंबर 3-
जो लोग कहते हैं कि कुसंगति में पड़कर वह बुरे काम करने लगे या फिर कुसंगति का असर उनके स्वभाव पर भी पड़ रहा है, इसलिए वह ऐसे काम कर रहे हैं तो ऐसे लोगों के लिए रहीम दास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रहीम दास जी कहते हैं कि जो लोग अच्छे स्वभाव और दृढ-चरित्र वाले व्यक्ति होते हैं उन लोगों में बुरी संगत में रहने पर भी उनके चरित्र में कोई विकार उत्पन्न नहीं होता जिस तरह चन्दन के वृक्ष पर चाहे जितने विषैले सर्प लिपटे रहें, लेकिन उस वृक्ष पर सर्पों के विष का प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात चन्दन का वृक्ष अपनी सुगंध और शीतलता के गुण को छोड़कर जहरीला नहीं हो जाता।
भाव यह है कि जिस प्रकार विषैले सर्प चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उसकी सुगंध को विषैला नहीं बना सकते, उसी प्रकार दुर्जन और दुष्ट प्रवृत्तियों वाले व्यक्ति, दृढ-चरित्र वाले व्यक्ति को दुर्जन या दुष्ट नहीं बना सकते।
क्या सीख मिलती है:
कवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने लक्ष्य को पाने के लिए हमेशा प्रयास करना चाहिए क्योंकि दृढ़ संकल्प वाले पुरुष को कोई भी अपने रास्ते से नहीं भटका सकता है।
रहीम दास जी का नीति का दोहा नंबर 4 –
जो लोग रिश्तों की कदर नहीं करते हैं और गुस्से में अपने रिश्ते तोड़ लेते हैं या फिर अपने रिश्तों को तवज्जो नहीं देते हैं ऐसे लोगों के लिए कवि रहीमदास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है
दोहा:
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े जुड़े तो गाठ पड़ जाय।।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रहीमदास जी कहते हैं कि प्रेम का नाता बेहद नाजुक होता है। इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता क्योंकि अगर यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और फिर अगर ये धागा मिल भी जाता है तो फिर टूटे हुए धागों के बीच में गांठ पड़ जाती है।
क्या सीख मिलती है:
कवि रहीमदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने रिश्तों का सम्मान करना चाहिए और उनके संजो के रखने चाहिए
रहीम दास जी का नीति का दोहा नंबर 5 –
समाज में कई लोग ऐसे हैं जो अपने मुंह मिया-मिठ्ठू बने रहते हैं अर्थात अपनी प्रशंसा खुद ही करते रहते हैं ऐसे लोगों के लिए कवि ने इस दोहे में बड़ी बात कही है –
दोहा:
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोले बोल।
‘रहिमन’ हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल॥
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि कबीरदास जी कह रहे हैं कि जो लोग सचमुच में बड़े होते हैं, वे अपनी बड़ाई नहीं किया करते, बड़े-बड़े बोल नहीं बोला करते। हीरा कब कहता है कि मेरा मोल लाख टके का है।
क्या सीख मिलती है:
कवि रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी प्रशंसा खुद नहीं करनी चाहिए क्योंकि अच्छे काम करने वालों का काम खुद व खुद दिख जाता है उन्हें अपने काम को उजागर करने की जरूरत ही नहीं पड़ती है।
रहीम दास जी का नीति का दोहा नंबर 6 –
आज की दुनिया में ज्यादातर लोग अपने बारे में सोचते रहते हैं और अन्य लोगों की परवाह नहीं करते हैं। उन लोगों के लिए रहीम दास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
“जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।”
अर्थ:
जो लोग गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना हैं।
क्या सीख मिलती है:
रहीम दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें गरीबों की मद्द करनी चाहिए क्योंकि इसी में हमारा हित छिपा हुआ है।
तुलसीदास जी के नीति के दोहे – Tulsidas ke Niti ke Dohe
तुलसीदास जी का नीति का दोहा नंबर 1- Tulsidas ke Niti ke Dohe 1
जो परिवार में कमाने वाला व्यक्ति होता या फिर घर का मुखिया होता है ऐसे लोगों के लिए कवि तुलसीदास जी ने अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा:
मुखिया मुख सौं चाहिए, खान-पान को एक।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है।
क्या सीख मिलती है:
तुलसीदास जी के इस दोहे से यह सीख मिलती है कि परिवार के मुखिया को अपने घर के सभी सदस्यों का ख्याल रखना चाहिए ठीक उसी तरह जैसे कि वह अपने शरीर की रखता है।
तुलसीदास जी का नीति का दोहा नंबर 2 – Tulsidas ke Niti ke Dohe 2
कवि तुलसीदास जी ने इस दोहे में उन लोगों को सीख दी है जो लोग आदर-सत्कार नहीं होने पर और प्रेम नहीं मिलने पर भी बार-बार दूसरे के घर में पहुंच जाते हैं –
दोहा:
आवत ही हर्ष नहीं, नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में तुलसीदास जी कहते हैं, जिस स्थान या जिस घर में आपके जाने से लोग खुश नहीं होते हों और उन लोगों की आंखों में आपके लिए न तो प्रेम और न ही स्नेह हो। वहां हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहां धन की ही वर्षा क्यों न होती हो।
क्या सीख मिलती है:
कवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव ऐसी जगह जाना चाहिए जहां हमें आदर-सत्कार मिले।
तुलसीदास जी का नीति का दोहा नंबर 3 –
क्या सीख मिलती है:
कवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव ऐसी जगह जाना चाहिए जहां हमें आदर-सत्कार मिले।
तुलसीदास जी का नीति का दोहा नंबर 3 – Tulsidas ke Niti ke Dohe 3
जो लोग बिना सोचे समझे बोलते हैं और दूसरे को अपने कटु वचन से दुख पहुंचाते हैं ऐसे लोगो के लिए कवि तुलसीदास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा: कैसे वचन बोलें-
तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन इक मंत्र है, तज दे बचन कठोर।।
दोहे का अर्थ:
हिन्दी साहित्य के महान कवि तुलसीदास जी ने अपने इस दोहे में कहते है कि मीठे वचन बोलने से चारों तरफ खुशियां फैल जाती है और सब कुछ खुशहाल रहता है। मीठे वचन बोलकर कोई भी मनुष्य किसी को भी अपने वश मे कर सकता है। इसलिए इंसान को हमेशा मीठी बोली ही बोलनी चाहिये।।
क्या सीख मिलती है:
भक्तिकाल के महान कवि तुलसीदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव दूसरे को अच्छी लगने वाली भाषा का ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि मीठी और मधुर बोली न सिर्फ दूसरों को खुशी देती है बल्कि मीठी बोली से कई बिगड़े काम भी बन जाते हैं।
निष्कर्ष:
हिन्दी साहित्य के महान कवियों ने अपने इन दोहों के माध्यम से जीवन की सच्चाई बताई है और बड़ी सीख दी है कि अगर कोई व्यक्ति इनका अपने जीवन में अनुसरण कर ले तो निश्चय ही वह सफलता हासिल कर सकता है और सच्चाई के मार्ग पर चल सकता है। साथ ही बाकियों के लिए मिसाल भी कायम कर सकता है।
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