तुम जो भी समझो



 

प्यार किया नहीं हो गया रे
तुम जो भी समझो।
बस गये तुम मन में मोहन बन
तुम जो भी समझो।
तुम आगे बढते रहे ,आशियाने‌ बदलते रहे
हम निशान तलाशते रहे ,
बीहड़ में खो गये हम, तुम जो भी समझो।
तलाशते तलाशते बावले हो गये हम
नदी नालों पर्वतों के अंतर भूल गये हम 
तुम जो भी समझो
आज भी उतना ही चाहते हैं हम
प्यार चाहकर भी नहीं होता कम
तुम जो भी समझो।
सर्वस्व थे सर्वस्व हो तुम,
तुम जो भी समझो।
प्राण हैं तुम्ही से प्राण भी दे सकते हम
तुम जो भी समझो।

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