पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के धर्म एवं संस्कृति संबंधी विचार

 



भारतीय परंपरा के प्रतिनिधि पंडित दीनदयाल जी विश्व गुरु कहीं जाने वाली पावन भारत भूमि की ऋषि परंपरा के प्रतिनिधि स्वरूप थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का अवतरण कर्म योगी श्री कृष्ण की लीला स्थली मथुरा के फरह के समीप नगला चंद्रभान में हुआ था। भक्त कवियों की भांति आत्मश्लाघिता से रहित, आत्म विलोपी ,निरंकारी, निश्पृही , विनम्र, साधु स्वभाव वाले पंडित जी ने अपना परिचय कभी नहीं दिया। दूसरों को सम्मुख रखकर राष्ट्र सेवा में रत उनका जीवन चरित्र ही उनकी आत्मकथा है। आज जो कुछ भी हमें ज्ञात है, वह उनके साथियों संघ के कार्यकर्ताओं के संस्मरण हैं ।संस्मरण से ज्ञात परिचय की व्याख्या करना भी सूर्य को दीपक दिखाने के समान है ।उनका जीवन आदर्श ही हमारी धरोहर है ,जिसका अनुकरण करके युगों युगों तक राष्ट्र धर्म की यह अविरल धारा बहती रहेगी। राष्ट्र धर्म को सर्वोपरि मानने वाले पंडित जी भारतीय धर्म एवं संस्कृति के प्रबल पुजारी थे।

* पंडित जी के विचार में धर्म एवं आस्था-

हिंदू धर्म सनातन धर्म के अनुयाई थे पंडित जी। जिसका मूल, राष्ट्र धर्म ही था ।उनके धर्म में नीति ,मर्यादा, मानवीय अधिकार ,मूल्य ,सांस्कृतिक राष्ट्रमंडल अवधारणा, राजधर्म, शासन ,शिक्षा, स्वास्थ्य ,सामाजिक समरसता, सब कुछ समाहित था।

 पंडित जी कहते थे-

" धर्म का संबंध मंदिर मस्जिद से नहीं है। उपासना व्यक्ति के धर्म का एक अंग होती है ,परंतु धर्म तो व्यापक है ।मंदिर मस्जिद लोगों में धर्म आचरण की शिक्षा के प्रभावी माध्यम भी रहे हैं, किंतु जिस तरह विद्यालय विद्या नहीं है ,उसी तरह धर्म मंदिर से भिन्न है। गांधीजी की ही भांति उनका धर्म तीर्थ स्थल पूजा-पाठ तक ही सीमित नहीं था।"

उनके विचार में धर्म का उद्देश्य संपूर्ण समाज का आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नयन करना है ।वे व्यक्तिगत धर्म के साथ-साथ राष्ट्र धर्म के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि व्यक्ति राष्ट्र धर्म का पालन करता है तो ,व्यक्तिगत धर्म का पालन स्वत: ही हो जाता है।

इसका अर्थ यह नहीं कि वे मंदिर मूर्ति पूजा में आस्था नहीं रखते थे ।वह पक्के आस्तिक थे ।पंडित जी त्रिदेव ,अग्नि ,सूर्य ,वरुण, तुलसी, गाय ,पीपल सभी देवताओं की सत्ता में समान आस्था रखते थे । वे संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वर की सत्ता स्वीकार करते थे ,परंतु दिखावा पाखंड के विरोधी भी थे। एक बार जगन्नाथपुरी में वे जगन्नाथ जी के दर्शन करने गए ,परंतु वहां के पंडे पुजारियों ने पूजा के समय चढ़ावा भेंट आदि कर्मकांडी अनर्गल बातें प्रारंभ कर दी ,और पंडित जी बिना दर्शन किए ही लौट आए ।

उन्होंने कहा था-" आज मैं पक्का सनातनी बनकर दर्शन करने गया था और कोरा आर्य समाजी बनकर लौटा हूं। मुझे बड़ा दुख है, क्योंकि मैंने यहां से बहुत दूर जन्म लिया है। अब जगन्नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहां पुनर्जन्म लूंगा ।"

जितने भी वे अपने हिंदू धर्म और राष्ट्र धर्म के प्रति कट्टर थे, उतने ही वे दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। भारत में असहिष्णुता का डंका पीटने वाली कुचक्री, यदि भारतीय धर्म और ऐसे महापुरुषों को जानने का थोड़ा सा भी प्रयास करें, तो उनकी  जिव्ह्या विष उगलना छोड़ देगी।

* पंडित जी के अनुसार यज्ञ-

यज्ञ की व्याख्या करते हुए वह बताते थे -कि- व्यक्ति समाज पर निर्भर है, और समाज सृष्टि पर ,तथा सृष्टि नियति पर ।जब तक  यह परस्पर सहयोग रहता है ,तब तक श्रृष्टि चलती रहती है।

 गीता का उदाहरण देकर समझाते थे-" प्राणी वर्षा से ,वर्षा यज्ञ से ,और यज्ञ ब्रह्म से उत्पन्न हुआ  है । यही धारणा धर्म है ,क्योंकि धार्यते इति धर्म:। परस्पर अपने कर्तव्यों का पालन ही धर्म है।" अतः राष्ट्र में परिवार भावना का विकास तथा परिवार के प्रत्येक घटक में राष्ट्रप्रेम की भावना का विकास ही परस्पर अनुकूलता एवं स्वतंत्रता का आधार है ।यही चिति है, और धर्म है, धर्म ही भारत की आत्मा है।"

* पंडित जी के अनुसार संस्कृति-

वैसे तो पंडित जी का जीवन चरित्र ही भारतीय संस्कृति की गाथा है ।विश्व बंधुत्व ,वसुधैव कुटुंबकम, परोपका,र पर दुखकातरता तथा धीर ,वीर ,नीर -क्षीर विवेकी, स्वावलंबी ,स्वाभिमानी ,वैदिक संस्कृति को जीवन में जीने वाले उपाध्याय जी ने शिविर में प्रश्न कर्ता को बड़े ही सरल शब्दों में समझाया था-

" हर मनुष्य को कभी ना कभी जमुहाई आती हैं ,वह स्वाभाविक ढंग से आ जाए तो प्रकृति ,किंतु जानबूझकर मुंह टेढ़ा मेढ़ा करना ऊंची आवाज करना विकृति है ।कतई कोई आवाज किए बिना मुंह पर रुमाल धरकर जमाईं ही लेना संस्कृति है ।"

इतने उच्च विचार को इतने स्वाभाविक ,सादगी भरे शब्दों में परिभाषित करना उपाध्याय जी की   ही कुशलता है। सर्व धर्म एकता एवं विश्व में उन्नति का पाठ पढ़ाते हुए ,वे हमेशा कहते थे -_"उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त राष्ट्र धर्म की अस्मिता ,अखंडता और विश्व भर में श्रेष्ठ भारतीय दर्शन के संरक्षण के लिए हम कोई भी बलिदान देने के लिए कटिबद्ध हैं ,परंतु सिद्धांतों के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं।"

* उपाध्याय जी के दृष्टिकोण में भारतीय संस्कृति का अध्ययन मानव उत्थान विश्वकल्याण -

उपाध्याय जी ने भारतीय संस्कृति एवं धर्म का प्रबल समर्थन करते हुए एक बार कहा था-" प्राचीन काल से ही भारत के प्रत्येक क्रियाकलप में धर्म समाहित है ,तभी तो यहां पन्नाधाय पुत्र की बलि चढ़ा देती है। गाय और तुलसी को यहां पूजते हैं ,चाहे हम इसकी वैज्ञानिकता और औषधीय गुण को जानते हैं  या नहीं जानते हैं। यही हमारी हिंदू राष्ट्र अटूट जीवन शक्ति है ।ये ही इस जीवन शब्द में समूची मानवता से अनंत कोटी ब्रम्हांड के साथ रहने की प्रेरणा देता है ।भारतीय राष्ट्रवादी सौ दो सौ  साल पुरानी नहीं  है  , बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही है।इसका आधार स्वार्थी एवं परस्पर सहयोग है, क्योंकि भारत में राष्ट्रीय एकता एक विशाल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी नहीं है ,जिसमें अपने निजी स्वार्थों के कारण जुड़ते हैं ।स्वार्थ के लिए तो डकैत भी ईमानदारी का व्यवहार करते हैं ,परंतु भारत में तो  निस्वार्थ भाव से सहयोग किया जाता है ।हमारी संस्कृति का सार यही है सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया ।" भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है सब का उत्थान ।भारत की ऐसी परम पवित्र संस्कृति को जीने वाले साक्षात  दधीचिसम पंडित जी को शत शत नमन।

संकलन और शोध‌सूत्र-

अनेकानेक संस्मरणों एवं पुस्तको-

1.राष्ट्र धर्म।

2.पांचजन्य।

3.चंद्रगुप्त एवं आदि शंकराचार्य।

4.विभिन्न लेखकों और विद्वानों के ग्रंथ और लेख।

 ( माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी और श्यामा प्रसाद  मुखर्जी जी प्राग नारायण त्रिपाठी जी  के साहित्य पर  शोध  से विशेष )

लघु लेखशोध

सरला भारद्वाज

हिन्दी -टी जी टी।

अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी   में वाचित और प्रशंसित लघु लेख।



पूर्व लिखत व  प्रकाशित लघु शोध   को आज मैंने पुनः प्रकाशित किया ।आपके आशीर्वाद से।, प्रकाशित पत्र और  प्रमाण  पत्र  दोनों ही परिस्थितियों वश मुझे प्राप्त न हो सके। प्रमाणपत्र डा० रोशन लाल अग्रवाल जी के पास था,जिसे आचार्य श्री योगेश चौधरी जी से मंगवाया था ,वे लाये कि नहीं ज्ञात नहीं , दोनोें के ही नम्बर मेरे पास नहीं ,  डाक्टर साहब का नम्बर लिया था जो डायल करके छोड़ दिया था ।बाद में सेविंग के लिए ।अब पहचान नहीं पा रही तो अभी वेटिंग में है,शायद लेख उन तक पहुंच जाये,और वे सीधे मुझे उसकी स्क्रीनसौर्ट भेजें।



 


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