प्रकृति की पुकार लौट आ मेरे पास




  चरम शिखर पर चढ़ने वाला ,लौट के नीचे आएगा।

 नियम यही है इस विधान का ,जो बोएगा सो पाएगा।

मैं धरती मां ,केश मेरे वन  , मुंडन  इनका कर डाला।

अंधी दौड़ का तूने अंधे!महिमामंडन कर डाला।

बोएगा जो पेड़ बबूल तो ,आम कहां से खाएगा।

 नियम यही है इस विधान का, जो बोया  सो पाएगा।

अब कहता है कुपित प्रकृति मां, रहम करो भगवान !

मारा मारा फिरता है तू, अब भी है अनजान?

 वेद, यज्ञ और योग, ध्यान सब, व्यावहारिक विज्ञान।

 अनदेखी कर डाली इनकी समझा युग पाषाण।

सुबह का भूला शाम को लौटे ,भूला ना कहलाएगा।

 नियम यही है इस विधान का, जो बोया सो पाएगा।

तुलसी आंगन में महकाओ,    आंवला, पीपल पेड़ लगाओ।

जीवनदाई गैस बढ़ाओ, औषधियों का ज्ञान बढ़ाओ।

 उनको जीवन में अपनाओ,गुणी बनो अज्ञान मिटाओ।

जीवन का है  मूल इसी में, काम यही धन आएगा।

 मां हूं मैं ,मत रो मेरे बच्चे ,नंदनवन सरसायेगा।

लौट के मेरे आंचल में आ, दुःख तेरा मिट जायेगा।

कृति

दयालबाग आगरा


 सरला भारद्वाज११/५/२१



Comments

  1. Bahut sundar . prakriti ki pukar hai

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  2. ये जो महामारी आई है,
    वो हमारी ही तो लापरवाही हैl
    जिस प्रकृति को अभी तक हम फ्री समझते थे,
    आज उसकी कितनी बड़ी कीमत चुकाई है।
    हमने घर में प्लास्टिक के फूल लगाए,
    आज उनकी सुगंध काम न आए।
    प्रकृति कहे हैवान से,
    मेरे केश काटते हुए तुझे तनिक तरस ना आया;
    तो आज क्यों देश का कोना-कोना
    ऑक्सिजन-ऑक्सिजन चिल्लाया?
    देखते जा हैवान,
    यह तो बस शुरुआत है;
    मां प्रकृति तुझे इतना तड़पाएगी,
    जितना तूने वो रुलाई है।
    ये जो महामारी आई है,
    वो हमारी ही तो लापरवाही हैl।।।।

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