व्यवहार का कुआं

 


व्यवहार का कुआं हूं मैं,

जिसने जैसे पुकारा , मैंने वही सुर दुहराया।

  1.     मेरी मठ पर बैठ, किसी ने कहा राम राम,

  पूछा उसने कैसे हो तुम ?और क्या कर रहे हो काम?

    भाव से  कृपण नहीं मैं, सरस जल ले लाया।

व्यवहार का कुआं हूं मैं,

जिसने जैसे पुकारा , मैंने वही सुर दुहराया।

 

2. फैंक रहा था कोई ,पत्थर कीचड़ भरे,

मेरे भी ज़रा कान,👂 हो गये थे खड़े।

दुर्गंध युक्त जल का ही  ,फल उसने पाया।

व्यवहार का कुआं हूं मैं,

जिसने जैसे पुकारा , मैंने वही सुर दुहराया।


3.हृदयतल में   उतरा वो  ,सहज घुंघरू बांध के।

गुनगुनाया प्रेम राग ,पंचम सुर लांघ के,

मैंने भी डुबुक- डुबुक  प्रीति गीत गाया।

व्यवहार का कुआं हूं मैं,

जिसने जैसे पुकारा , मैंने वही सुर दुहराया।

सरला भारद्वाज 

3/3/21/  6:40pm




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