मेरा क्या कसूर है?
तेरे नैनौं में दो तार सनेह के चाहे थे,
तू मुदित हो और मैं गाऊं,
यही सपने सजाए थे।
मेरे मीठे सपने तेरे मन को ना भाये, तो मेरा क्या कसूर है?
धड़कनें हर पल तेरा ही नाम रटतीं हैं,
दरस की प्यासी आंखें, निशिदिन बरसतीं हैं।
सांसें निगोडी जो विरह में तपाये ,तो मेरा क्या कसूर है?
चिर अपलक पल्के मेरी , तनिक ना झपकतीं हैं,
शिवलिंग के घट सदृश,अनवरत टपकतीं हैं,
मेरी आंखों से जो नींद रूठ जाये,तो मेरा क्या कसूर है?
पल -पल ये हृदय मेरा तरंगित क्यों होता?
जिसके लिए इतना तड़प तड़प रोता है?
उसे तडप दिल की समझ में न आये,तो मेरा क्या कसूर है?
उसकी निठुराई हमें जीने और मरने न देती है,
और ये जालिम दुनिया हमें, रोने भी न देती है,
खुश्क हंसी दिल मेरा हंस ही ना पाये,तो मेरा क्या कसूर है?
इकतरफा प्यार में बस ग़म ही पिये जाते हैं।
झूठी उम्मीदों पर, बस हम जिये जाते हैं,
दर्द भरे दिल से जो आह निकल जाये ,तो मेरा क्या कसूर है?
आशाओं की लाशों की कब्र मत उघाड़ना,
बदबू ही उठती है, नक़ाब ना उतारना,
तेरे ही हाथों नक़ाब उतर जाये ,तो मेरा क्या कसूर है?
चोट खाने वाले को मरहम लगाते हैं,
दर्द में जो चीख निकले दिल को बहलाते हैं।
घाव गोद- गोद के तू नमक ही लगाये, तो मेरा कसूर क्या है?
सरला भारद्वाज (पथिक)
१९/३/२१/१२:००pm
Comments
Post a Comment