समझ की समझ का भ्रम

 हम तो उसको गुनाहगार ही समझते रहे 

पर वो बड़ा मासूम है।

समझ  न पाये हम उसको,

दिल मेरा मरहूम है।

क्यों लगा बैठा दिल उससे ,समझदारी की आशा।

सिखाई ही नहीं गयी जिसे,सही गलत की परिभाषा।

परिवार की परिवरिश के पालने में झमेला था,

हिला मिला था ना किसी से, खेला सदा अकेला था।

सही और गलत सिखाया था ना  जिसे,

भावनाओं का आदर्श आइना दिखाया था ना जिसे।

बाप के बेटी न थी,  कोई उसकी बहन न है,

बस यही कारण उसे ,मन के धागों की समझ न है।

है जरा सा सत्य ,जो उसके कथन में,

फिर भयानक इससे क्या होगा चमन में।

आहार ,नींद,और भय लिप्सा, जीवन का अर्थ उसकी नजर में।

दूजी  दुनिया का प्राणी वह, जन्मा ही न हो ज्यों किसी गांव शहर में।

उरेका समझदार शब्द जो ,लो जी  पटल से मिटा दिया हमने,

 वो ज़ालिम मासूम  है चित्त पै लिख दिया  हमने।

था कभी जो विश्वास और प्रेम का पात्र,

बेवजह ही बन गया था कोप भाजन।

आज है बस वो दया का पात्र ,

न मीत न अरि न पतझड़ न सावन।

खरपतवार सा ,मासूम वह बन  गया था मीत मेरा।

बन गया है दिल की दवा अब, जीवन में डाले डेरा।

 सरला भारद्वाज 

4/3/21





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