हाले दिल सुनायें?
सच कहें या चुप रह जायें?
कैसे तुम्हें हाले दिल सुनायें?
घावों को उधेड़े या ,चुप्पी की बैंडेज लगायें?
सच कहें या चुप रह जायें?
तड़प क्या कहना , मिलना तो हम भी चाहते हैं।
शक्ल को कहां रख दें, अपनी मनहूसियत से कतराते हैं।
इस मनहूसियत की वज़ह से सालों फोन नहीं आते हैं।
हमेशा गुदगुदाने वाले, पल पल हमें रूलातें हैं।
तड़पा के मारने के लिए नम्बर ब्लाक हो जाते हैं,
और फिर एक दिन अचानक प्यार के बादल उमड़ आते हैं।
अचानक बदले अपने जनाब हमें कंफ्यूजिया जाते है?
तन्हाइयों में गीत मिलन के गाये हैं,
ठोकर खाकर ही तो बेहोशी से होश में आये हैं,
गले लगाकर शुक्रिया भी करना चाहते हैं,
सरल से जटिल तुमने ही तो बनाये हैं।
प्यार तो तब भी था और अब भी है,
कैसे तुम्हें समझायें।
सच कहें या चुप रह जायें।
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