भरत विरह वचन

 


राम जैसौ भैया मेरौ, सीता जैसी माइ,

 हाय मेरे जियरा की जरनि ना जाइ।

१*कुल कलंक मो सम नहिं कोई,

पहले भयौ न कबहू होई,

पिता मरन भ्राता बनवासी

दोऊ दोषन कौ मैं अपराधी।

बन बन भटकत मेरी सीता जैसी माइ,

हाय मेरे---- 

२*पंख बिना कैसें उडिजाऊं, रूठे भैयनु कैसै मनाऊं,

एकहू न जुगति न मन ठहरावै,

कहा करूं कछु समझ न आवै।

रौबै अयोध्या नगरी,करै हाइ! हाइ!

हाय मेरे जियरा की जरनि ना जाइ।

सरला भारद्वाज (पथिक)

१९/३/२१ /१:००pm



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