होली में तन मन सब रंग लूं


 


  मन रंगा है ,रंग में तेरे , तन भी मेरा रंग दे,

है नशा, पहले ही ,  थोड़ी प्यार की भी भंग दे।

ओंठ की लाली से, गालों पै, जरा सा रंग मल दे,

मधुकलश   में घोल केशर ,धार पिचकारी का बल दे,

घेर ले तू गैल मेरी, मैं कही जाने न पाऊं।

    ठिठुरता भीगा बदन ले ,टूट कर बाहों में आऊं।

उष्ण स्वांसो  की तपिश से, शीत मेरा दूर कर दे।

 चुम्बनों के मधुर रस से,इस हृदय को तृप्त कर दे।

तू बजा मिरदंग,मेरी सांस केवल फाग गायें।

 भूल के शिकवे  शिकायत ,मधु मिलन का राग गायें।

उम्र थोडी  ही बची है, झूम के होली मनायें 

 है भरोसा   वक्त  का क्या? फिर कभी मिलने न पायें।

रंग दे रंग  रंगरेजवा , चूनर उमर को रंग दे।

आ चुके पतझड़ है,कितने? जीने का भी ढंग दे।

इस बरस बरसाने आजा, कुछ पलों का संग दे।

रंग दे मुझको संवरिया   अपने रंग में रंग दे।

   सरला भारद्वाज

२२/३)२/११/रात्रि




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