सभ्यता और संस्कृति
#सभ्यता और #संस्कृति पर माता कैकई और पुत्र श्रीराम के बीच एक संवाद #रामराज्य से-
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कैकेयी को इस पूरी चर्चा में रस आने लगा था, वे राम के चित्त और चिंतन की गहराई से अभिभूत थीं। उन्होंने राम को थोड़ा और खोलने की मंशा से राम के समक्ष प्रश्न रख दिया- राम संसार में सदा ही संस्कृति को लेकर विवाद होता रहता है, जबकि देखा जाए तो संस्कृति हो या सभ्यता ये विवाद के नहीं संवाद के हेतु होते हैं।
राम अपनी माँ कैकेयी के मंतव्य को बहुत अच्छे से समझ रहे थे। वे जान रहे थे की कैकेयी इस प्रश्न के माध्यम से स्वयं की शंका का निवारण नहीं चाहतीं, अपितु वे चाहती हैं कि राम स्वयं ही बहुत सूक्ष्मता से अपनी विचारधारा का अन्वेषण करे। क्योंकि कोई भी कर्म तब अधिक लाभदायक होता है जब उसे करने से पहले उसके सभी पक्षों पर समग्रता से विचार किया गया हो। प्रत्येक माँ चाहती है कि उसकी संतान द्वन्द से रहित हो इससे उसके मन, वचन, कर्म में एकरूपता आ जाती है, तब उसकी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता।
राम अपनी माँ कैकेयी के उद्देश्य को जान परम संतोष से भरे हुए बोले- माँ, सभ्यता इस तथ्य को प्रकाशित करती है कि मनुष्य के पास क्या है ? और संस्कृति का अर्थ होता है की मनुष्य कैसा है ?
सभ्यता दिखाई देने वाला शरीर होता है, तो संस्कृति ना दिखाई देने वाली आत्मा।
निराकार भाव को साकार करने वाला कलाकार कहा जाता है माँ, इसलिए संस्कृति एक कला है और सभ्यता उसका कौशल।
सभी गुणों को सम्यक् रूप से धारण करना ही संस्कृति है।
सभी गुणों से तुम्हारा तात्पर्य क्या है पुत्र ?
माँ, इस सृष्टि का प्रत्येक कण सत्, रज, तम इन तीन गुणों का योग है, इनका स्वरूप परिवर्तित किए बिना इन तीनों के बीच सुंदर संतुलन स्थापित करने की कला ही संस्कृति कहलाती है।
सभ्यता व संक्रति को प्रभु श्री राम से बेहतर परिभाषित करना एक असंभव सा कार्य है।।।
ReplyDeleteजय श्री राम!!
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